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Thursday, 19 May 2011
Ayurvedic treatment for Osteoporosis

अस्थि सुषिरता का आयुर्वेदिक उपचार

भैषज्य रत्नावली में अस्थि भंग उपचार हेतु एक योग निम्नलिखित है –

अश्वगन्धा चूर्ण 12 ग्राम, अर्जुन त्वक् चूर्ण 12 ग्राम, अस्थिसंहार(हडजोड) चूर्ण 12 ग्राम, लाक्षा चूर्ण 12 ग्राम तथा  नागबला चूर्ण 12 ग्राम। 60 ग्राम सुनहरे रंग की गुग्गुल लेकर उसका दशमूल क्वाथ में शोधन किया। शोधन विधि इस प्रकार है – दशमूल मिश्रण 100 ग्राम को रात भर पानी में भिगो देते हैं तथा सवेरे उसे कुछ देर उबाल कर क्वाथ बना लेते हैं। ठोस भाग को निकाल कर फेंक देते हैं। गूगल को एक महीन कपडे में पोटली बांध कर इस क्वाथ में लटका देते हैं और क्वाथ को तब तक उबालते हैं जब तक पोटली का गूगल लगभग सारा क्वाथ में न घुल जाए। अब इस घोल में उपरोक्त पांचों चूर्णों को मिला देते हैं और तेज धूप में सुखा लेते हैं। इस योग में बबूल त्वक् चूर्ण भी अतिरिक्त मिलाया जा सकता है। इंटरनेट पर आजकल horsetail नामक ओषधि का बहुत प्रचार हो रहा है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इस ओषधि में विद्यमान कैल्शियम का शरीर में अवशोषण इसलिए हो जाता है क्योंकि इसमें सिलिका विद्यमान है। यही स्थिति बबूल की भी हो सकती है क्योंकि कहा जाता है कि कांटों की उत्पत्ति का कारण सिलिका होता है। उपरोक्त योग की आधा से एक ग्राम मात्रा दुग्ध के साथ ली जा सकती है। इस योग के घटक क्या – क्या विशिष्ट कार्य करते हैं, यह मोटे रूप में अभी अज्ञात ही है।  


Posted by puranastudy at 11:28 PM EDT
Lime pickle

नीबू –हरड का अचार

सादा नीबू का अचार नजला करता है। यदि नीबू के साथ हरड भी मिला दी जाएं तो यह अचार निरापद हो जाता है। विधि इस प्रकार है-

1 किलो नीबू।

200 ग्राम नमक(तीनों नमक-सादा, सेंधा व काला मिलाकर)

नींबू काटकर एक महीने तक नमक में रख दो। बीच-बीच में हिलाते रहो। फिर लगभग 250 ग्राम चीनी डाल दो और एक सप्ताह के लिए रख दो। फिर गर्म मसाला एक चम्मच(2 छोटे चम्मच), 100 ग्राम छोटी हरड, एक छोटा चम्मच अजवायन डाल कर रख दो। 15 दिन में अचार तैयार हो जाएगा।

-     लक्ष्मी अग्रवाल, 268/4, 16 सिविल लाईन्स, रुडकी, जि. हरिद्वार(उत्तराखण्ड), टे. 01332-274335


Posted by puranastudy at 11:05 PM EDT
Saturday, 19 March 2011
Pantocids of Ayurveda

एलोपैथी में अम्लपित्त व्याधि के लिए pantocid नामक ओषधि ने अद्भुत लोकप्रियता प्राप्त की है। लेकिन जितना त्वरित लाभ इस ओषधि से होता दिखाई देता है, अप्रत्यक्ष रूप से उतना ही अधिक हानि भी होने की संभावना है। अच्छा तो यही है कि इस ओषधि के सेवन से बचा जाए। इसके बदले आयुर्वेद के अम्लपित्त निवारक योगों का सेवन किया जा सकता है। कुछ योग निम्नलिखित हैं - 

वासा, गुडूची, नागरमोथा, पित्तपापडा, सोंठ, त्रिफला, भांगरा। नागरमोथा 100 ग्राम, पित्तपापडा 100 ग्राम, सोंठ 50 ग्राम लेकर इनका चूर्ण कर लें। ताजा वासा लेकर उसको कूट कर उसमें पानी मिला कर मिक्सी में पीस लें  और पिष्टी को निचोड कर उसका जल निकाल लें। इस जल में गिलोय के छोटे - छोटे टुकडे करके मिला दें और मिक्सी में पीस लें(मिक्सी भारी कार्य वाली होनी चाहिए, अन्यथा खराब हो सकती है)। पिष्टी को छलनी के ऊपर दबाकर रस निचोड लें। इस रस को उपरोक्त बनाए गए चूर्ण में मिला दें तथा धूप में सुखा लें। इस चूर्ण का सेवन यों ही किया जा सकता है अथवा इसमें त्रिफला मिलाकर सेवन किया जा सकता है।

एक अन्य योग, जिसका नाम पंचभद्र है, को भी पैण्टोसिड की भांति प्रयोग किया जा सकता है। इस योग में निम्नलिखित ओषधियां हैं - चिरायता, नागरमोथा, गिलोय, पित्तपापडा व सोंठ। चिरायता बहुत कडवा होता है, अतः इसकी मात्रा अन्य ओषधियों से आधी या चौथाई ही ली जानी चाहिए। 

इंटरनेट पर आयुर्वेदिक पैण्टोसिड के अन्य योग भी प्रकट हुए हैं । उनमें से एक योग है - गेरु, चन्दन, नागरमोथा, पित्तपापडा व सोंठ। अन्य योग में नेत्रबाला भी सम्मिलित की जा सकती है।

यदि एलोपैथी के pantocid का सेवन करना ही पडे तो अच्छा यह होगा कि आयुर्वेद के पैण्टोसिड और एलोपैथी के पैण्टोसिड को मिलाकर सेवन किया जाए। 


Posted by puranastudy at 8:13 AM EDT
Friday, 17 December 2010
Pros and cons of drinking milk

यह समझा जाता है कि दुग्ध एक सम्पूर्ण आहार है और मांस का सेवन न करने वाले (निरामिष) व्यक्तियों के लिए दुग्ध का सेवन अनिवार्य है। इस कथन में कितनी सत्यता है, दुग्ध पीने अथवा न पीने या क्या लाभ या हानियां हो सकती हैं, यह देखना इस ब्लांग का उद्देश्य है।

1.जब व्यक्ति युवावस्था में हो, उसकी देह में वृद्धि हो रही हो तो हो सकता है दुग्ध पान लाभदायक हो। लेकिन वृ्द्धावस्था में दुग्धपान को लाभदायक नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि दुग्ध तुरन्त हजम होकर शक्ति देने वाला है, जबकि वृद्धावस्था में इतनी शक्ति की आवश्यकता नहीं होती ।

2. चाहे युवा हो अथवा वृद्ध, शाकाहारियों के लिए दुग्ध पान के बिना  एक बडी कठिनाई आती है। वह यह कि रात को सोते समय आंखों में कड़कडाहट होती है। इस कारण से जो लोग दुग्ध पान नहीं भी करना चाहते, उन्हें भी करना पडता है। इसका आंशिक उपाय यह हो सकता है कि चार मगजों(खरबूजा, तरबूज, खीरा व कद्दू की गिरियां) को पीसकर रख लें। इन्हें दाल या रोटी में मिलाकर खाएं। चार मगजों से दूध नहीं बनाया जा सकता, लेकिन इनका अन्य प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।

3. निम्नलिखित वैबसाईट में उल्लेख है कि दुग्ध के कुछ प्रोटीन ऐसे होते हैं जिनमें फास्फोरस होता है । यह फास्फोरस एक्यूट माइलायड ल्यूकीमिया रोग में रोगयुक्त रक्त सैल बनाता है। 

A.P.John Cancer Institute

अतः रोग की स्थिति में यह आवश्यक है कि फास्फोरस रखने वाले प्रोटीनों का दुग्ध से निष्कासन कर दिया जाए। उबलते हुए दुग्ध में नींबू आदि का रस डालकर उसे फाड दिया जाता है। श्वेत भाग में फास्फोरस रह जाता है जबकि द्रव भाग में गंधक युक्त प्रोटीन रह जाते हैं (देखें कोर्नेल युनिवर्सिटी वैबसाईट)।आयुर्वेद के ग्रन्थों जैसे भावप्रकाश में इतना ही उल्लेख मिलता है कि तक्र जितना पतला होगा, उतना ही वह गुणकारी होगा। इससे संकेत मिलता है कि पूर्व काल में भी दुग्ध की हानियों का पता था।

4.भारत में शाकाहारी भोजन में दुग्ध से निर्मित मिष्टान्न खाने का बहुत प्रचलन है। ए.एम.एल. कैंसर की स्थिति में यह मिठाईयां हानिकारक हो सकती हैं। इसका उपाय यह हो सकता है कि फटे हुए दुग्ध के श्वेत भाग का प्रतिस्थापन बादाम के दुग्ध से कर दिया जाए। इस प्रकार बादाम के दुग्ध से मिश्रित दुग्ध द्वारा काम चलाया जा सकता है। उपयुक्त यह होगा कि छिलका उतरे हुए बादामों को मिक्सी में डालकर पीस लिया जाए। फिर उसमें फटे हुए दूध का पानी मिला दिया जाए और फिर उसे मिक्सी में अच्छी तरह पीस लिया जाए। इस दुग्ध को उबाला जा सकता है, इसमें गाजर डालकर और गाढा करके इसका गाजर का हलवा बनाया जा सकता है इत्यादि।चार मगजों - खरबूजा, तरबूज, खीरा व कद्दू की गिरियां प्रायः बाजार में मिल जाती हैं। इनको भी दूध के पानी के साथ मिक्सी में पीस कर दूध बनाया जा सकता है। यह अभी ज्ञात नहीं है कि उबालने पर भी यह दूध ही रह पाता है या नहीं।

5. दुग्ध के श्वेत भाग का निष्कासन कर देने पर उसमें से सारा कैल्शियम भी कैल्शियम फास्फेट के रूप में निकल जाता है। अतः जिन लोगों को कैल्शियम की मात्रा का ध्यान रखना पडता है, उनके लिए A.P.John Cancer Institure की वैबसाईट में कैल्शियम ग्लूकोनेट लेने का निर्देश दिया गया है।

6.भारतीय समाज में शाकाहारियों के भोजन में दधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लेकिन बादाम के दुग्ध से दधि नहीं बनायी जा सकती । दधि को ए.एम. एल. आदि कैंसरों की स्थिति में निरापद बनाने के लिए इतना तो किया ही जा सकता है कि उसमें थोडा सा त्रिफला मिला दिया जाए, थोडी सी बायबिडंग मिला दी जाए। इसका न तो कोई वैज्ञानिक प्रमाण है, न अनुभव के आधार पर कोई प्रमाण है कि ऐसा करने से दुग्ध में उपस्थित फास्फोरस कितना निरापद बन गया होगा। हो सकता है कि वह अभी भी उतना ही हानिकारक बना हुआ हो। भारतीय साहित्य में केवल इतना ही उल्लेख मिलता है कि रात्रि में दधि का सेवन न करे। यदि करे भी तो उसमें आमले का चूर्ण मिला ले।बायबिडंग के बारे में धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक में उल्लेख मिलता है कि यदि बच्चों को दूध हजम न होता हो या बच्चा सूखा रोग से ग्रस्त हो तो10 दाने बायबिडंग के दूध के साथ उबाल कर वह दूध पीने को दिया जाना चाहिए।

7.. अबसे लगभग 50 वर्ष पूर्व जब किसी को फुन्सी - फोडे हो जाते थे तो हकीम लोग उस रोगी को दुग्ध का सेवन न करने का परामर्श दिया करते थे क्योंकि दुग्ध के सेवन से फुन्सी - फोडों में वृद्धि हो जाती है। उन दिनों  में एण्टीबायोटिक का तो इतना प्रचलन नहीं था। इस तथ्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे शरीर में पहुंच कर दुग्ध क्या हानि - लाभ कर रहा होगा। ऐसा लगता है कि उन दिनों में भी हकीम तो दुग्ध त्याग का परामर्श दे देते होंगे, लेकिन वैद्य लोग तो दुग्ध के दीवाने ही हैं। वह कभी ऐसा परामर्श दे देते होंगे, यह कठिन ही है। अभी कुछ व्यावसायिक केन्द्र ऐसे हैं जहां गोमूत्र युक्त ओषधि का विक्रय किया जाता है  - कैंसर समेत सभी रोगों के लिए। लेकिन वे लोग गोमूत्र के साथ - साथ गौ दुग्ध पान का भी परामर्श देते हैं। यदि उनको कोई ऐसा न करने को कहता है तो उन्हें बडा आश्चर्य लगता है और उनका उत्तर होता है कि भारत में तो अनादि काल से गोदुग्ध का सेवन होता चला आया है। आज तक तो कोई गोदुग्ध से रोगी नहीं बना। ऐसी स्थिति में भला गोमूत्र क्या लाभ पहुंचाएगा।

8. कभी युवावस्था के ढलते ही और कभी युवावस्था ढलने के पश्चात् नाडी स्पन्दन में बहुत गिरावट आती है। आधुनिक वैज्ञानिक यन्त्रों में इस गिरावट को जांचने का कोई उपाय नहीं है। और तो  और, बहुत से वैद्य भी इससे अनभिज्ञ पाए गए हैं। जितनी गिरावट आएगी, रोगों द्वारा घेरने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। फिर डाक्टर लोग उन रोगों का कारण भिन्न - भिन्न बताते हैं। वास्तविक कारण तो एक ही है - प्रतिरोधक शक्ति का घट जाना। इस आयु में प्रतिरोधक शक्ति को बढाने का एकमात्र उपाय दुग्ध का त्याग ही प्रतीत होता है।

9.ध्यान साधना में दुग्ध से बाधाएं

यदि कोई अपने श्वास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता है तो वह देखता है कि उसके शरीर में श्वास कहां - कहां प्रवेश कर रही है। दुग्ध सेवन पर इस निरीक्षण में असफलता होने की ही अधिक संभावना है। कोई भी साधना हो, वह सफल तभी होती है जब शरीर की सारी अतिरिक्त शक्ति व्यय हो चुकी होती है। बहुत से साधक दण्डवत् प्रणाम करते हुए किसी इष्टदेव के दर्शन के लिए जाते हैं । इसका उद्देश्य यही है कि शरीर में जितनी अतिरिक्त शक्ति है, उसका व्यय हो जाए। तभी शरीर अपनी जमा पूंजी को खोलकर सामने रखता है । साधना काल में जल में कुछ दुग्ध मिलाकर ले लेने मात्र का विधान है, चरणामृत के रूप में । इससे अधिक नहीं । लेकिन साथ ही इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत के ग्रामों में अभी भी फल केवल नाममात्र को उपलब्ध हैं जबकि दुग्ध प्रत्येक को पर्याप्त मात्रा में मिल सकता है। ऐसी स्थिति में साधक को केवल दुग्ध द्वारा ही अपनी साधना पूरी करनी है।

 Other references:

10 comments a "What are the pros and cons of Soy Milk and Cow Milk?"

 Alternative treatment for aml lukemia

 


Posted by puranastudy at 4:28 AM EST
Updated: Saturday, 19 March 2011 8:15 AM EDT

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