पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Tunnavaaya   to Daaruka )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)

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Tunnavaaya - Tulaa ( words like Tumburu, Turvasu, Tulasi, Tulaa/balance etc.)

Tulaa - Triteeyaa (Tushaara, Tushita, Tushti/satisfaction, Trina/straw, Trinabindu, Triteeya/third day etc. )

Triteeyaa - Taila  (Trishaa/thirst, Trishnaa/craving, Teja/brilliance, Taittira, Taila/oil etc.)

Taila - Trayyaaruna ( Tondamaana, Torana, Toshala, Tyaaga, Trayee, Trayodashee, Trayyaaruna etc.)

Trasadashva - Tridhanvaa  ( Trasadasyu, Trikuuta, Trita, Tridhanvaa etc.)

Tridhaamaa - Trivikrama  (Trinetra, Tripura, Trivikrama etc. )

Trivishta - Treeta (Trivishtapa, Trishanku, Trishiraa, Trishtupa etc.)

Tretaa - Tvishimaan (Tretaa, Tryambaka, Tvaritaa, Twashtaa etc.)

Tvishta - Daksha ( Danshtra/teeth, Daksha etc. )

Daksha - Danda (Daksha, Dakshasaavarni, Dakshina/south/right, Dakshinaa/fee,   Dakshinaagni, Dakshinaayana etc. )

Danda - Dattaatreya (Danda/staff, Dandaka, Dandapaani, Dandi, Dattaatreya etc.)

Dattaatreya - Danta ( Dattaatreya, Dadhi/curd, Dadheechi/Dadhichi, Danu, Danta/tooth etc.)

Danta - Damayanti ( Danta / teeth, dantakaashtha, Dantavaktra / Dantavakra, Dama, Damana, Damaghosha, Damanaka , Damayanti etc. )

Damee - Dashami  ( Dambha/boasting, Dayaa/pity, Daridra/poor, Darpana/mirror, Darbha,  Darsha, Darshana, Dashagreeva etc.)

Dasharatha - Daatyaayani (Dashami/tenth day, Dasharatha, Dashaarna, Dashaashvamedha etc. )

Daana - Daana ( Daana)

Daanava - Daaru (Daana, Daama, Daamodara etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Damayanti, Dambha/boasting, Dayaa/pity, Daridra/poor, Darpana/mirror, Darbha,  Darsha, Darshana, Dashagreeva etc. are given here.

दमी विष्णु २.४.३८(कुशद्वीप में रहने वाले दमी, शुष्मी, स्नेह और मन्देह नामक चार वर्णों के क्रमश: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र होने का उल्लेख ) ।

 

दम्पत्ति लक्ष्मीनारायण ३.८८.५(दाम्पत्य धर्म व अधर्म का वर्णन ) ।

 

दम्भ देवीभागवत ९.२१.३५ (विप्रचित्ति - पुत्र, शङ्खचूड - पिता, दनु वंश), ९.२२.४ (शङ्खचूड - सेनानी, चन्द्रमा से युद्ध), ब्रह्मवैवर्त्त  २.१८.३६(विप्रचित्ति दानव का पुत्र), २.१९.२४(दम्भ का चन्द्रमा के साथ युद्ध), ब्रह्माण्ड १.२.१९.६२(दम्भा : कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक), भागवत ४.८.२(मृषा व अधर्म - पुत्र, माया - भ्राता व पति, लोभ व निकृति - पिता), ७.१५.१३(शब्दों के साथ छल का दम्भ नाम), ७.१५.२३(महत् की उपासना द्वारा दम्भ पर जय प्राप्ति का निर्देश), ११.१७.१८(वैश्य वर्ण के प्रकृतिगत गुणों में  दम्भहीनता का उल्लेख), मत्स्य २४.३५(आयु के ५ पुत्रों में से एक, पुरूरवा वंश), शिव २.५.२७.१० (दानव, विप्रचित्ति - पुत्र, पुत्र प्राप्ति हेतु तप, विष्णु से वर प्राप्ति, शङ्खचूड नामक पुत्र की प्राप्ति), २.५.३६.८ (शङ्खचूड - सेनानी, विष्णु से युद्ध), वा.रामायण ६.२७.१६ (वानर, राम - सेनानी, सारण द्वारा रावण को दम्भ का परिचय), महाभारत वन ३१३.९५(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में महान् अहंकार के दम्भ होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३३६.१०२(विप्रचित्ति व दनु - पुत्र, शङ्खचूड - पिता), १.३३७.४०(शङ्खचूड - सेनानी, चन्द्र से युद्ध ) । dambha

 

दम्भोलि कूर्म १.१३.१० (पुलस्त्य - व प्रीति - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य ) । dambholi

 

दया देवीभागवत ९.१.१०६ (मोह - पत्नी, दया देवी के बिना समस्त लोक की निष्फलता का उल्लेख), नारद १.६६.८८(वामन की शक्ति दयिता का उल्लेख), पद्म २.१२.९८ (भाव - भार्या, धर्म - माता, धर्म  के साथ दुर्वासा के समीप गमन, दया की मूर्ति का स्वरूप), ५.८४.५७ ( पुष्प रूप, श्रीहरि की पूजा के आठ पुष्पों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१९(कृष्ण की सर्वशक्तिस्वरूपा प्रकृतियों में से एक), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८९ (मणिपूर चक्र ? की १० शक्तियों में से एक), भागवत ४.१.४९(धर्म की १३ पत्नियों में से एक, दक्ष व प्रसूति - कन्या), मत्स्य १४५.४५ (दया के लक्षण), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९२ (दया के महत्त्व का वर्णन), ३.३२१.१४ (दया से आदित्य लोक की प्राप्ति), शिव ५.३४.३१(दया - पुत्रों अर्जुन व पंक्ति विन्ध्य द्वारा मेरु पृष्ठ पर तप का उल्लेख? ) , स्कन्द ५.३.५१.३५(श्रीहरि की पूजा के ८ पुष्पों में से एक ), कृष्णोपनिषद १५(रोहिणी दया का रूप ) ।dayaa

 

दरद ब्रह्माण्ड १.२.१६.४९(भारत के उत्तर के देशों में से एक), १.२.१८.४७ (सिन्धु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १२१.४६(सिन्धु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १४४.५७(विष्णु के अवतार प्रमति द्वारा हत जनपद वासियों में से एक), हरिवंश २.४३.५९ (बलराम द्वारा दरद का मुसल से वध ) । darada

 

दरिद्र ब्रह्म २.६७ (दरिद्रा का लक्ष्मी से ज्येष्ठता सम्बन्धी विवाद, गङ्गा द्वारा लक्ष्मी के पक्ष में निर्णय), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६७(सारण के पुत्रों में से एक), भागवत १०.१०.१३ (परपीडानुभव तथा अन्त:करण की शुद्धि में धनी की अपेक्षा दरिद्र की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ११.१९.४४(असन्तुष्ट का दरिद्र रूप में उल्लेख), मत्स्य २१.३ (सुदरिद्र : ब्राह्मण, चार पुत्रों द्वारा धन प्राप्ति का उपाय बताकर तप हेतु निष्क्रमण, ब्रह्मदत्त प्रसंग), वायु ९६.१६५/२.३४.१६५(सारण के ११ पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.४१२.८( दरिद्रता : वर्णसङ्कर की ४ पुत्रियों में से एक, दुःसह - पत्नी, दरिद्रता के स्व भगिनियों बुभुक्षा, कलहा आदि के साथ गृहों में निवास का वर्णन ) । daridra

 

दरी - ब्रह्माण्ड २.३.७.१७८(दरीमुख : श्वेता व पुलह के १० वानर पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.५.३४(दरीश्रवा : दैत्य, बाल प्रभु को मारने का उद्योग ) ।

 

दरुण भागवत १.४.२२( सुमन्तु-पिता)

 

दर्दुर भागवत २.७.३४(बकासुर का अपर नाम), वायु ४५.९०(भारत के ७ कुल पर्वतों के निकटवर्ती पर्वतों में से एक), स्कन्द ५.२.८४ (कन्या प्राप्ति के लिए परीक्षित् द्वारा वापी में दर्दुरों की हत्या, वृद्ध दर्दुर का परीक्षित् से संवाद, पूर्व जन्म की कथा), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ (अलक्ष्मी की दर्दुर सदृश जिह्वा का उल्लेख), २.१४.६५(रुण्ढिका राक्षसी द्वारा दर्दुरी रूप धारण), ४.६३.५१(दर्दुर नगर निवासी धर्मभट नामक अमात्य को हरिकथा श्रवण से मुक्ति प्राप्ति की कथा ) , ४.८१.१४ (दर्दुर रत्न : नन्दिभिल्ल राजा द्वारा नागविक्रम राजा को प्रेषित दूत का नाम), कथासरित् १२.४.७३(दर्दुरक : संगीताचार्य, मेघमाली नामक राजा की पुत्री हंसावली को नृत्य की शिक्षा प्रदान करना ) ; द्र. मण्डूक । dardura

 

दर्प ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१०(चन्द्रमा व तुष्टि - पुत्र), ४.४७+ (इन्द्र, रवि, अग्नि आदि के दर्प का भङ्ग), भागवत ४.१.५१(उन्नति व धर्म - पुत्र), मार्कण्डेय ५०.२५/४७.२५ (धर्म व श्री - पुत्र), कथासरित् ८.१.६०(दर्पभङ्ग : विलासिनी - भ्राता, सूर्यप्रभ - श्याला), ८.२.३४९ (दर्पकमाला : देवल - कन्या, महल्लिका - सखी), ८.५.५३ (दर्पवाह : निकेत पर्वत का राजा, श्रुतशर्मा के अनेक महारथियों में से एक ), कृष्णोपनिषद १४(दर्प कुवलयापीड होने का उल्लेख ) ।darpa

 

दर्पण ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३१(नेत्र दीप्ति हेतु दर्पण दान का निर्देश), ४.५९.४६(काम पत्नी के दर्पण की श्रेष्ठता का उल्लेख) भविष्य १.८.५८ (पुत्र द्वारा दर्पण रूपी असि से कारूष राजा के वध का उल्लेख), भागवत ६.५.१७ (२५ तत्त्वों के पुरुष के अद्भुत दर्पण होने का उल्लेख), मत्स्य १५४.४४७(पार्वती से विवाह हेतु शिव शृङ्गार के समय दर्पण की स्थानपूर्ति हेतु समुद्रों की उपस्थिति), स्कन्द २.२.२५.१४(हस्त तल में नित्य दर्पण की स्थिति से ताल होने का कथन), ४.१.३३.९६ (कलावती द्वारा चित्रपट देखने पर पूर्व जन्म की स्मृति ), कथासरित् ९.३.९१(वीरवर के करतल में चर्म दर्पण का उल्लेख) darpana

 

दर्भ गरुड २.२.२७(आतुर हेतु दर्भ प्रशंसा - मृत्युकाले क्षिपेद्दर्भान्करयोरातुरस्य च । दर्भैस्तु क्षिप्यते योऽसौ दर्भैस्तु परिवेष्टितः ॥), २.१९.१७/२.२९.१८ (दर्भ की विष्णु के लोमों से उत्पत्ति, महिमा - दर्भा मल्लोमसम्भूतास्तिलाः स्वेदसमुद्भवाः ।), २.२९.२०(दर्भ का कुश से एक्य, दर्भ के ३ भाग - अपसव्यादितो ब्रह्मा दर्भमध्ये तु केशवः ।दर्भाग्रे शङ्करं विद्यात्त्रयो देवाः कुशे स्थिताः ॥), भागवत १२.१.६(दर्भक : अजातशत्रु - पुत्र, अजय - पिता, कलियुगी राजाओं में से एक), मत्स्य २४८.६८(यज्ञवराह के दर्भलोमा होने का उल्लेख - अग्निजिह्वो दर्भलोमा ब्रह्मशीर्षो महातपाः।),  वायु ६.१६ (दर्भ का वराह के रोमों से साम्य - अग्निजिह्वो दर्भरोमा ब्रह्मशीर्षो महातपाः ।।), ६५.१०४/२.४.१०४(अङ्गिरा व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.१२(स्वेद से तिल तथा रोम से दर्भ की उत्पत्ति), ३.५६.९(अग्नि की मूर्ति में दर्भ के श्मश्रु होने का उल्लेख - श्मश्रु तस्य विनिर्दिष्टं दर्भाः परमपावनम् ।।),  शिव ३.५.२९(दार्भायणी : २१वें द्वापर में शिव - अवतारी दारुक के ४ शिष्यों में से एक), स्कन्द ३.१.७.५९ (सेतु की पश्चिम कोटि का दर्भशय्या नाम - सेतोस्तु पश्चिमा कोटिर्दर्भशय्या प्रकीर्तिता ।। ), ५.३.१४६.९१ (अस्माहक तीर्थ में स्नान करके दर्भग्रन्थि बांधने का निर्देश - स्नात्वा तु विमले तोये दर्भग्रन्थिं निबन्धयेत् । मस्तके बाहुमूले वा नाभ्यां वा गलकेऽपि वा ॥ ), ६.२५२ .३८(चातुर्मास में केतु की दर्भ में स्थिति का उल्लेख - केतुना स्वीकृतो दर्भो याज्ञिकेयो महाफलः॥), वा.रामायण ५.३८.३०(काक द्वारा सीता पर चञ्चु से आघात करने पर राम द्वारा ब्रह्मास्त्र मन्त्र से अभिमन्त्रित दर्भ का काक पर प्रयोग - स तं प्रदीप्तं चिक्षेप दर्भं तं वायसं प्रति । ततस्तं वायसं दर्भः सो ऽम्बरे ऽनुजगाम ह ।।), लक्ष्मीनारायण १.७३.३४(दर्भ के मूल, मध्य व अग्र में त्रिदेवों की स्थिति - दर्भमूले स्थितो ब्रह्मा दर्भमध्ये तु केशवः । दर्भाग्रे शंकरश्चास्ते त्रयो देवाः कुशे स्थिताः ।), १.४४१.९१(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु केतु के दर्भ स्वरूप होने का उल्लेख - शनैश्चरः शमीवृक्षो राहुर्दुर्वात्मकोऽभवत् । केतुर्दर्भस्वरूपोऽभूत्तथा फलद्रुमोऽपि सः ।।), ४.२८.१००(निगडभ्रम कैवर्त्त के ज्ञानदर्भि, प्रभादर्भि आदि ५ पुत्रों के नाम - पुत्राः पञ्च ज्ञानदर्भिः प्रभादर्भिर्विदर्भिकः । विष्णुदर्भिः कृष्णदर्भिस्त्वेते भागवतोत्तमाः ।।), कथासरित् १.५.११०(चाणक्य ब्राह्मण द्वारा दर्भ उन्मूलन हेतु भूमि खनन का उल्लेख - दर्भमुन्मूलयाम्यत्र पादो ह्येतेन मे क्षतः ।। ) ; द्र. विदर्भ, वृषादर्भि, वैदर्भी । darbha

References on Darbha

दर्भि लक्ष्मीनारायण ४.२८.१०० (वैष्णव भक्त कैवर्त्त के ज्ञानदर्भि, प्रभा दर्भि आदि ५ पुत्रों का उल्लेख - पुत्राः पञ्च ज्ञानदर्भिः प्रभादर्भिर्विदर्भिकः । विष्णुदर्भिः कृष्णदर्भिस्त्वेते भागवतोत्तमाः ।।) ।

 

दर्व ब्रह्माण्ड १.२.१६.६७(विन्ध्य पर्वत के आश्रित जनपदों में से एक), २.३.७४.१८२०(दर्वा : राजा उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, सुव्रत - माता), मत्स्य ११४.५६(विन्ध्य पर्वत के आश्रित देशों में से एक), वायु ४५.१३६(वही),

९९.१९/२.३७.१९(राजा उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, सुव्रत - माता ) । darva

 

दर्श गर्ग ७.२८.२६ (कालिन्दी - पुत्र), ब्रह्माण्ड २.३.३.६(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट १२ जयदेवों में से एक), २.३.४.२(वही), भागवत ६.१८.३ (धाता व सिनीवाली - पुत्र), १०.६१.१४(कृष्ण व कालिन्दी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४८.१६(दर्शा : उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, सुव्रत - माता), १४१.४२(अमावास्या को चन्द्र व सूर्य द्वारा एक दूसरे का दर्शन करने से दर्श नाम प्रथित होने का उल्लेख), वायु २१.६७/१.२१.६१ (२७वें भाव कल्प के दर्श नाम पडने के हेतु का कथन : ब्रह्मा द्वारा अदृश्य सूर्य को सम्पूर्णता से देखने के कारण दर्श नाम की सार्थकता), ५६.५२ (दर्श की वषट् क्रिया हेतु अमावास्या काल का निर्धारण), ६६.६/२.५.६(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट १२ जयदेवों में से एक), ६७.५/२.६.५(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट १२ जयदेवों में से एक, ब्रह्मा द्वारा शाप ) । darsha

 

दर्श - पूर्णमास वायु २१.६७(भाव कल्प में सूर्य के संदर्भ में दर्श व चन्द्रमा के संदर्भ में पौर्णमास की व्याख्या), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३४(मूर्ति में न्यास के अन्तर्गत नेत्रों में दर्शपूर्ण का न्यास ) ।

References on Darshapurnamasa

 

दर्शन ब्रह्मवैवर्त्त ४.७६ (शुभ - अशुभ दर्शन व उसका फल), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२५ (दर्शनीय : यक्ष , पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.३.१५९.३६(पित्त से दर्शन शक्ति बनने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.९३ (जीवन्मुक्त की समदर्शन स्थिति), महाभारत अनुशासन ९८.३५(पुष्पों के दर्शन से यक्षों - राक्षसों की तृप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१४३.४६ (त्रेता में दर्शन से सृष्टि होने का उल्लेख), ४.१०१.५ (दर्शन द्वारा सृष्टि का कथन, त्रेता में दर्शन द्वारा सृष्टि ) ; द्र. सुदर्शन । darshana

Comments on Dasma

 

दल ब्रह्माण्ड १.२.३५.९४(प्रत्यूष - पुत्र, देवर्षियों में से एक), २.३.६३.२०४ (पारियात्र - पुत्र, बल - पिता, कुश वंश), वायु ८८.२०४/२.२६.२०४(पारियात्र - पुत्र, बल - पिता, कुश वंश ) ; द्र. विदल । dala

 

दवशद शिव ३.५.११(१४वें द्वापर में शिव - अवतार गौतम के ४ पुत्रों में से एक )

 

दशग्रीव मत्स्य १६१.८१(हिरण्यकशिपु की सभा का एक असुर), वराह २१६(रावण का नाम, शंकर उपासना से त्रैलोक्य विजय रूप वर की प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१८६ (दशग्रीवा : शक्र पीडक, स्त्री रूपी विष्णु द्वारा वध), वा.रामायण ७.९.२९(विश्रवा व कैकसी - पुत्र, कुम्भकर्ण, विभीषण व शूर्पणखा - भ्राता, दशग्रीवा से युक्त होकर जन्म लेने पर पिता विश्रवा द्वारा दशग्रीव नामकरण, दशग्रीव के जन्म पर प्रकृति के उत्पात का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.६७(धर्म सावर्णि नामक एकादश मनु के काल में दशग्रीव नामक महादैत्य को वश में करने के लिए नारी रूपवान् श्री हरि के अवतार का कथन ) । dashagreeva/ dashagriva

 

दशमी अग्नि १८६ (दशमी व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य - दशम्यामेकभक्ताशी समाप्ते दशधेनुदः ॥ दिशश्च काञ्चनीर्दद्याद्ब्राह्मणाधिपतिर्भवेत् ।), गरुड १.११६.६ (दशमी को यम व चन्द्रमा की पूजा का उल्लेख - दुर्गाष्टम्यां नवम्यां च मातरोऽथ दिशोऽर्थदाः । दशम्यां च यमश्चन्द्र एकादश्यामृषीन्यजेत् ॥), १.१३५.३ (दिग्दशमी व्रत- दशम्यामेकभक्ताशी समान्ते दशधेनुदः । दिशश्च काञ्चनीर्दत्त्वा ब्रह्माण्डाधिपतिर्भवेत् ॥), गर्ग २.१४.१३/२.११.१२(आश्विन् शुक्ल दशमी को नीलकण्ठ व मयूर के दर्शन के महत्त्व - तेषां तु दर्शनं पुण्यं सर्वकामफलप्रदम् । शुक्लपक्षे मैथिलेंद्र दशम्यामाश्विनस्य तत् ॥), नारद १.८८.१५८(दशमी का स्वरूप - इत्येषा दशमी नित्या प्रोक्ता ते कुलसुन्दरी ॥ नित्यानित्यां तु दशमीं त्रिकुटां वच्मि सांप्रतम् ॥), १.११९ (दशमी तिथि व्रत व पूजा का वर्णन : विजय दशमी, दशहरा, यम, विश्वेदेव, अङ्गिरसों, अवतारों की पूजा आदि), २.४३.४२ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : गङ्गा पूजन विधि , दशहरा), वराह २९.१४ (दशमी को दश दिशाओं की उत्पत्ति की कथा ; दशमी तिथि का दिशाओं को दान, दिशाओं द्वारा भर्तृ प्राप्ति, दशमी को दधिभक्षण का माहात्म्य) ३९.२६(मार्गशीर्ष मास की दशमी से प्रारम्भ कर द्वादशी तक करणीय मत्स्यद्वादशी व्रत के विधान एवं फल का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७६ (दशमी में करणीय विश्वेदेव, अङ्गिरा व्रतों का वर्णन), ३.२२१.७५(दशमी को १० विश्वेदेवों, १० दिशाओं तथा धर्म की पूजा का निर्देश), स्कन्द ४.१.२७.१७९ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : गङ्गा दशहरा स्तोत्र), ५.१.६३.५३ (आश्विन् शुक्ल दशमी में अष्टसिद्धिशमी देश में गणेश्वर पूजा का माहात्म्य), ५.२.७४.५८(दशमी में राजस्थलेश्वर तीर्थ के दर्शनादि का माहात्म्य), ५.३.२६.११९(दशमी में इक्षुदण्ड रस का दान व उसका फल - इक्षुदण्डरसं देवि दशम्यां या प्रयच्छति ॥ लोकपालान्समुद्दिश्य ब्राह्मणे व्यङ्गवर्जिते ।), ५.३.५१.५(शूलभेद तीर्थ में आषाढ दशमी में श्राद्ध की प्रशस्तता, मन्वन्तरादि तिथियों में एक), ५.३.१८०.५४(सरस्वती नदी का आश्विन् दशमी में दशाश्वमेध तीर्थ में पापप्रक्षालन हेतु आगमन), लक्ष्मीनारायण १.२७५(विभिन्न मासों की दशमी तिथियों के महत्त्व का वर्णन), १.३०२(अधिमास दशमी व्रत का माहात्म्य : पृथिवी का भगवान की सेविका बनना व पृथिवी पर भार रूप प्रजा का नष्ट होना), १.३१७.६७(अधिमास दशमी व्रत का माहात्म्य : राधा - पुत्री विकुण्ठा का ६/१० रूप धारण कर पुरुषोत्तम - पत्नी बनने का वृत्तान्त), २.२७.६२ (दशमी को सर्पों का शयन - कात्यायनी तथाऽष्टम्यां नवम्यां कमलालया । दशम्यां भुजगेन्द्राश्च स्वपन्ति वायुभोजनाः ।।), २.२११(श्री हरि द्वारा दशमी में अध्वर देवता का पूजन, होमादि), २.२४६(सोमयज्ञ के तृतीय दिन दशमी में करणीय यज्ञ विधान), ३.६४.११(तिथि देवताओं के संदर्भ में यम के दशमी तिथि के देवता होने का उल्लेख), ३.१०३.७ (शुक्ल पक्ष की विभिन्न तिथियों में दान फलों के संदर्भ में दशमी को दान से कामधेनु युक्त होने का उल्लेख - दशम्यां तु तथा दत्वा कामधेनुयुतो भवेत् । एकादश्यां तथा दत्वा रूप्यशेवधिमान् भवेत् ।।), ३.१३८.२२ (आषाढ शुक्ल दशमी को आर्द्रानन्द रमा नारायण व्रत का वर्णन ) । dashami/dashamee