Pros and cons of drinking milk
यह समझा जाता है कि दुग्ध एक सम्पूर्ण आहार है और मांस का सेवन न करने वाले (निरामिष) व्यक्तियों के लिए दुग्ध का सेवन अनिवार्य है। इस कथन में कितनी सत्यता है, दुग्ध पीने अथवा न पीने या क्या लाभ या हानियां हो सकती हैं, यह देखना इस ब्लांग का उद्देश्य है।
1.जब व्यक्ति युवावस्था में हो, उसकी देह में वृद्धि हो रही हो तो हो सकता है दुग्ध पान लाभदायक हो। लेकिन वृ्द्धावस्था में दुग्धपान को लाभदायक नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि दुग्ध तुरन्त हजम होकर शक्ति देने वाला है, जबकि वृद्धावस्था में इतनी शक्ति की आवश्यकता नहीं होती ।
2. चाहे युवा हो अथवा वृद्ध, शाकाहारियों के लिए दुग्ध पान के बिना एक बडी कठिनाई आती है। वह यह कि रात को सोते समय आंखों में कड़कडाहट होती है। इस कारण से जो लोग दुग्ध पान नहीं भी करना चाहते, उन्हें भी करना पडता है। इसका आंशिक उपाय यह हो सकता है कि चार मगजों(खरबूजा, तरबूज, खीरा व कद्दू की गिरियां) को पीसकर रख लें। इन्हें दाल या रोटी में मिलाकर खाएं। चार मगजों से दूध नहीं बनाया जा सकता, लेकिन इनका अन्य प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।
3. निम्नलिखित वैबसाईट में उल्लेख है कि दुग्ध के कुछ प्रोटीन ऐसे होते हैं जिनमें फास्फोरस होता है । यह फास्फोरस एक्यूट माइलायड ल्यूकीमिया रोग में रोगयुक्त रक्त सैल बनाता है।
A.P.John Cancer Institute
अतः रोग की स्थिति में यह आवश्यक है कि फास्फोरस रखने वाले प्रोटीनों का दुग्ध से निष्कासन कर दिया जाए। उबलते हुए दुग्ध में नींबू आदि का रस डालकर उसे फाड दिया जाता है। श्वेत भाग में फास्फोरस रह जाता है जबकि द्रव भाग में गंधक युक्त प्रोटीन रह जाते हैं (देखें कोर्नेल युनिवर्सिटी वैबसाईट)।आयुर्वेद के ग्रन्थों जैसे भावप्रकाश में इतना ही उल्लेख मिलता है कि तक्र जितना पतला होगा, उतना ही वह गुणकारी होगा। इससे संकेत मिलता है कि पूर्व काल में भी दुग्ध की हानियों का पता था।
4.भारत में शाकाहारी भोजन में दुग्ध से निर्मित मिष्टान्न खाने का बहुत प्रचलन है। ए.एम.एल. कैंसर की स्थिति में यह मिठाईयां हानिकारक हो सकती हैं। इसका उपाय यह हो सकता है कि फटे हुए दुग्ध के श्वेत भाग का प्रतिस्थापन बादाम के दुग्ध से कर दिया जाए। इस प्रकार बादाम के दुग्ध से मिश्रित दुग्ध द्वारा काम चलाया जा सकता है। उपयुक्त यह होगा कि छिलका उतरे हुए बादामों को मिक्सी में डालकर पीस लिया जाए। फिर उसमें फटे हुए दूध का पानी मिला दिया जाए और फिर उसे मिक्सी में अच्छी तरह पीस लिया जाए। इस दुग्ध को उबाला जा सकता है, इसमें गाजर डालकर और गाढा करके इसका गाजर का हलवा बनाया जा सकता है इत्यादि।चार मगजों - खरबूजा, तरबूज, खीरा व कद्दू की गिरियां प्रायः बाजार में मिल जाती हैं। इनको भी दूध के पानी के साथ मिक्सी में पीस कर दूध बनाया जा सकता है। यह अभी ज्ञात नहीं है कि उबालने पर भी यह दूध ही रह पाता है या नहीं।
5. दुग्ध के श्वेत भाग का निष्कासन कर देने पर उसमें से सारा कैल्शियम भी कैल्शियम फास्फेट के रूप में निकल जाता है। अतः जिन लोगों को कैल्शियम की मात्रा का ध्यान रखना पडता है, उनके लिए A.P.John Cancer Institure की वैबसाईट में कैल्शियम ग्लूकोनेट लेने का निर्देश दिया गया है।
6.भारतीय समाज में शाकाहारियों के भोजन में दधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लेकिन बादाम के दुग्ध से दधि नहीं बनायी जा सकती । दधि को ए.एम. एल. आदि कैंसरों की स्थिति में निरापद बनाने के लिए इतना तो किया ही जा सकता है कि उसमें थोडा सा त्रिफला मिला दिया जाए, थोडी सी बायबिडंग मिला दी जाए। इसका न तो कोई वैज्ञानिक प्रमाण है, न अनुभव के आधार पर कोई प्रमाण है कि ऐसा करने से दुग्ध में उपस्थित फास्फोरस कितना निरापद बन गया होगा। हो सकता है कि वह अभी भी उतना ही हानिकारक बना हुआ हो। भारतीय साहित्य में केवल इतना ही उल्लेख मिलता है कि रात्रि में दधि का सेवन न करे। यदि करे भी तो उसमें आमले का चूर्ण मिला ले।बायबिडंग के बारे में धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक में उल्लेख मिलता है कि यदि बच्चों को दूध हजम न होता हो या बच्चा सूखा रोग से ग्रस्त हो तो10 दाने बायबिडंग के दूध के साथ उबाल कर वह दूध पीने को दिया जाना चाहिए।
7.. अबसे लगभग 50 वर्ष पूर्व जब किसी को फुन्सी - फोडे हो जाते थे तो हकीम लोग उस रोगी को दुग्ध का सेवन न करने का परामर्श दिया करते थे क्योंकि दुग्ध के सेवन से फुन्सी - फोडों में वृद्धि हो जाती है। उन दिनों में एण्टीबायोटिक का तो इतना प्रचलन नहीं था। इस तथ्य से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे शरीर में पहुंच कर दुग्ध क्या हानि - लाभ कर रहा होगा। ऐसा लगता है कि उन दिनों में भी हकीम तो दुग्ध त्याग का परामर्श दे देते होंगे, लेकिन वैद्य लोग तो दुग्ध के दीवाने ही हैं। वह कभी ऐसा परामर्श दे देते होंगे, यह कठिन ही है। अभी कुछ व्यावसायिक केन्द्र ऐसे हैं जहां गोमूत्र युक्त ओषधि का विक्रय किया जाता है - कैंसर समेत सभी रोगों के लिए। लेकिन वे लोग गोमूत्र के साथ - साथ गौ दुग्ध पान का भी परामर्श देते हैं। यदि उनको कोई ऐसा न करने को कहता है तो उन्हें बडा आश्चर्य लगता है और उनका उत्तर होता है कि भारत में तो अनादि काल से गोदुग्ध का सेवन होता चला आया है। आज तक तो कोई गोदुग्ध से रोगी नहीं बना। ऐसी स्थिति में भला गोमूत्र क्या लाभ पहुंचाएगा।
8. कभी युवावस्था के ढलते ही और कभी युवावस्था ढलने के पश्चात् नाडी स्पन्दन में बहुत गिरावट आती है। आधुनिक वैज्ञानिक यन्त्रों में इस गिरावट को जांचने का कोई उपाय नहीं है। और तो और, बहुत से वैद्य भी इससे अनभिज्ञ पाए गए हैं। जितनी गिरावट आएगी, रोगों द्वारा घेरने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। फिर डाक्टर लोग उन रोगों का कारण भिन्न - भिन्न बताते हैं। वास्तविक कारण तो एक ही है - प्रतिरोधक शक्ति का घट जाना। इस आयु में प्रतिरोधक शक्ति को बढाने का एकमात्र उपाय दुग्ध का त्याग ही प्रतीत होता है।
9.ध्यान साधना में दुग्ध से बाधाएं
यदि कोई अपने श्वास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता है तो वह देखता है कि उसके शरीर में श्वास कहां - कहां प्रवेश कर रही है। दुग्ध सेवन पर इस निरीक्षण में असफलता होने की ही अधिक संभावना है। कोई भी साधना हो, वह सफल तभी होती है जब शरीर की सारी अतिरिक्त शक्ति व्यय हो चुकी होती है। बहुत से साधक दण्डवत् प्रणाम करते हुए किसी इष्टदेव के दर्शन के लिए जाते हैं । इसका उद्देश्य यही है कि शरीर में जितनी अतिरिक्त शक्ति है, उसका व्यय हो जाए। तभी शरीर अपनी जमा पूंजी को खोलकर सामने रखता है । साधना काल में जल में कुछ दुग्ध मिलाकर ले लेने मात्र का विधान है, चरणामृत के रूप में । इससे अधिक नहीं । लेकिन साथ ही इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत के ग्रामों में अभी भी फल केवल नाममात्र को उपलब्ध हैं जबकि दुग्ध प्रत्येक को पर्याप्त मात्रा में मिल सकता है। ऐसी स्थिति में साधक को केवल दुग्ध द्वारा ही अपनी साधना पूरी करनी है।
Other references:
Alternative treatment for aml lukemia
Posted by puranastudy
at 4:28 AM EST
Updated: Saturday, 19 March 2011 8:15 AM EDT