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Puraanic contexts of words like Trishaa/thirst, Trishnaa/craving, Teja/brilliance, Taittira, Taila/oil etc. are given here.

तृप्ति वायु ३१.५ (देवों के अनेक गणों में से एक तृप्तिमान् गण), लक्ष्मीनारायण २.१७१.१०५ (अवभृथ स्नान से अवभृथात्मक कुमार व तृप्ति रूप कुमारी का प्राकट्य, श्रीहरि द्वारा कुमारी के लिए कुमार का दान), २.२४६.७८ (ज्ञान से शान्ति, शान्ति से सुख, सुख से तृप्ति, तृप्ति से त्याग, त्याग से हरि में स्थिति ) । tripti

 

तृषा नारद १.९१.७४ (तत्पुरुष शिव की अष्टमी कला), ब्रह्माण्ड ३.४.२८.५० (विशुक्र द्वारा तृषास्त्र के प्रयोग से ललिता की सेना में तृषा की उत्पत्ति, सुधा वर्षण से शान्ति), लक्ष्मीनारायण २.१०५.५४ (रमा व उर्वशी का शिखर पर जल हेतु उग्र तप, दोनों के तृषा योग से श्रीहरि की तृषा का वर्धन, विश्व का तृषा से पीडन, शिखर पर जल प्रापण से तृषा शान्ति का वर्णन), २.२५३.४ (क्षुधा व तृषा की शरीर रूपी शकट के वृषभों से उपमा ) । trishaa

 

तृष्णा गरुड १.२१.४ (वामदेव की १३ कलाओं में से एक), देवीभागवत १२.६.७२ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद २.२८.७२ (तृष्णा की वैतरणी नदी से उपमा), पद्म १.१९.२५०, २५२ (तृष्णा के दोष), विष्णु १.८.३३ (विष्णु व लक्ष्मी की अभिन्नता प्रदर्शक उपमाओं में विष्णु का लोभ तथा लक्ष्मी का तृष्णा रूप से कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.४८.१८ (महादेव - रूप - निर्माण के अन्तर्गत तृष्णा, विशाला, चित्रा के व्याघ्रचर्म होने का उल्लेख ?), महाभारत आश्वमेधिक ३१.२(३ राजस गुणों में से एक), योगवासिष्ठ १.१५.१२, १३, १६ (तृष्णा की कुटजमञ्जरी, तडिल्लता तथा तन्तु से उपमा), १.१७ (तृष्णा के दोषों का वर्णन), १.१८.१३(तृष्णा की भुजङ्गमी से उपमा), ५.१५ (अनर्थ की बीजभूत तृष्णा का वर्णन), ५.२१.५, १७, २७ (तृष्णा - त्याग की आवश्यकता तथा त्याग से लाभ), ५.३५.५२ (तृष्णा करञ्ज कुञ्जों का उल्लेख), ६.१.७८.४(वर्षा में तृष्णा के दीर्घ होने तथा तृष्णा रूपी गृध्र के मांस पर टूट पडने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४ (तृष्णा रूपी यक्षिणी, एषणा रूपी राक्षसी तथा चिन्ता रूपी पिशाची के निरयात्मिका होने का उल्लेख), ३.३०.४६(वितृष्णा के तीन साधनों विद्या, वृत्ति, वशित्व का उल्लेख), ४.२६.५६ (नारायण व राधाकान्त की शरण से तृष्णा से मुक्ति का कथन), महाभारत शान्ति १७७(मङ्कि गीता के अन्तर्गत धन आदि की तृष्णा त्याग का उपदेश), २७६(तृष्णा के परित्याग के विषय में माण्डव्य मुनि व जनक का संवाद ) ; द्र. वितृष्णा । trishnaa

 

तेज अग्नि ५१.१०(तेज के स्वरूप का कथन : चण्ड, महावक्त्र आदि), गरुड १.८७.३२ (तेजस्वी : वैवस्वत मन्वन्तर में इन्द्र), देवीभागवत ५.८.३३ (देवों के शरीर से नि:सृत तेज से महिषासुर वधार्थ देवी की उत्पत्ति), ९.१.१२०(प्रभा व दाहिका - पति), १०.१२.८ (देवों के तेज से महिषासुर मर्दिनी देवी का प्राकट्य), पद्म १.३६.४३(ब्रह्मा द्वारा लोकपालों व देवों के तेज से नृप/राजा के निर्माण का कथन), ५.३० (शत्रुघ्न का अश्व सहित तेज:पुर नामक नगर में आगमन), ६.९.१९ (देवों की प्रार्थना पर शंकर द्वारा सर्व देवों के तेज से चक्र का निर्माण), ६.१८०.२४ (हंसों द्वारा राजा ज्ञानश्रुति के तेज की अपेक्षा रैक्य मुनि के तेज को प्रबल बताना, ज्ञानश्रुति का रैक्य से मिलन), ६.१८०.१००(गीता के छठें अध्याय के पाठ से रैक्य ऋषि की तेजोराशि में वृद्धि का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५२(शोभा गोपी की देह से जनित स्निग्ध तेज का विश्व में विभाजन), २.११.५९(प्रभा गोपी की देह से जनित तीक्ष्ण तेज का विश्व में विभाजन), ब्रह्माण्ड १.२.११.४(बल - पुत्र, नारायण - पौत्र), १.२.१४.६४(तेजस : सुमति - पुत्र, इन्द्रद्युम्न - पिता, नाभि वंश), २.३.३२.३७(वैष्णव तेज के दुर्लङ्घ्य होने का उल्लेख), ३.४.१.१४(तेजोरश्मि : २० सुतपा देवों में से एक), भविष्य १.१२३.७८ (सूर्य के छांटे हुए तेज से ब्रह्मा द्वारा देवों, यक्षों, विद्याधरों के शस्त्रास्त्रों का निर्माण, सूर्य के पास तेज का षोडश भाग शेष रहने का कथन), १.१५३.२९ (ब्रह्मादि देवों के अहंकार से वशीभूत होने पर अहंकार मार्जन हेतु सूर्य तेज का प्राकट्य, देवों द्वारा सूर्य की स्तुति), मत्स्य ३.२४(स्पर्श तन्मात्रा से तेज व तेज विकार से वारि की उत्पत्ति का उल्लेख ; तेज के त्रिगुण होने का उल्लेख), २२६.९(नृप हेतु इन्द्र, अर्क, वात आदि के तेजोव्रत चीर्णन का निर्देश ),  मार्कण्डेय ७९/८२.९ (देवों के शरीर से नि:सृत तेज से देवी के विभिन्न अङ्गों का प्राकट्य), वायु ३४.८४(अग्नि के एकतेज विभु होने का उल्लेख), १००.१५/२.३८.१५(तेजोरश्मि : प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० सुतपा देव गण में से एक), १००.१५०/२.३८.१५०(प्रलय काल में अग्नि के तेज से चतुर्लोक के दहन तथा अतिवृष्टि का वर्णन), १०२.१०/२.४०.१०(प्रत्याहार काल में रसों के तेज में तथा तेज के वायु में लीन होने का कथन), विष्णु २.१.३६(तेजस : सुमति - पुत्र, इन्द्रद्युम्न - पिता), विष्णुधर्मोत्तर १.१७२.३० (समस्त तेजस्वियों में वैष्णव तेज की स्थिति का कथन), शिव ५.४९.८ (गर्वोन्मत्त देवों के समक्ष तेज का प्रकट होना व देवों के गर्व को खण्डित करना, तेज का उमा देवी में रूपान्तरित होना), ७.१.२८.३ (तेज, अमृत व रस में भेद का वर्णन ; तेज के सूर्यात्मक व अनलात्मक होने तथा विद्युन्मय होने का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१७१ (शतरुद्रिय प्रसंग में ऋक्षों द्वारा तेजमय लिङ्ग की भ नाम से पूजा का उल्लेख), ३.१.६.३६(देवों के तेज से दिव्य नारी के विभिन्न अंगों का निर्माण), ५.१.४.४३ (तेज में अकार अग्नि की स्थिति), ५.३.३५.८ (तेजोवती : मय दानव की भार्या, मन्दोदरी - माता), ७.१.११.१४२ (सूर्य तेज का भ्रमि पर कर्तन, अस्त्रों व द्यौ आदि की उत्पत्ति), योगवासिष्ठ ६.२.९१ (तेजस धारणा द्वारा तैजस जगत का वर्णन), ६.२.१३७.२३ (ह्रदन्तर में तेजोधातु में जीव की स्थिति का कथन ; जन्तु के ह्रदय में प्रवेश करके तेज धातु में प्रवेश का कथन), वा.रामायण ७.८५.९ (विष्णु के तेज का वृत्र वध हेतु त्रेधा विभक्त होना), महाभारत वन २९.१७(उत्पन्न क्रोध को प्रज्ञा से बाधित करने वाले की तेजस्वी संज्ञा), २९.२०(तेज के गुण : दक्षता, अमर्ष, शौर्य, शीघ्रत्व), आश्वमेधिक ५०.४६ (तेज के शुक्ल, कृष्ण आदि १२ रूपों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२४५.८० (ध्यान से तेज के वर्धन का कथन), २.२८३.५८( अम्बा द्वारा बालकृष्ण को तेजोमणि देने का उल्लेख), कथासरित् ३.३.३४(राजा विहितसेन की पत्नी तेजोवती द्वारा उपायपूर्वक विहितसेन के जीर्ण ज्वर का उपचार), ३.४.७९ (तेजस्वती : गुणवर्मा की कन्या , आदित्यसेन द्वारा पाणिग्रहण), ६.४.७२ (राजा विक्रमसेन की कन्या तेजस्वती की कथा), ८.२.१७७ (कुबेर - कन्या, सुनीथ - पत्नी), ८.४८५ (विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा तेजिक का वध), ८.५.२२ (तेज:प्रभ : श्रुतशर्मा - सेनानी, सूर्यप्रभ के सेनानी कालकम्पन के साथ द्वन्द्व युद्ध), ८.७.३८ (प्रकम्पन द्वारा तेज:प्रभ का वध ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.९(शिल्प में तेजों के सरल रेखाएं होने का उल्लेख), २.११(प्राजापत्य वृत्त के द्वारा तेज को दर्शाने आदि का कथन) ; द्र. अग्नितेज, शततेजा, वृकतेज । teja

Vedic References on Tejas

 

तेजस/तैजस पद्म ३.२७.५४ (तैजस तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य तैजस तीर्थ में गुह का अभिषेक), वायु ६.५६/१.६.५२(तैजस सर्ग : ब्रह्मा के चतुर्थ अर्वाक् स्रोत अपर नाम वाले मनुष्य साधकों में व्याप्त तेजस सर्ग के गुणों का कथन), ३३.५४(सुमति - पुत्र, इन्द्रद्युम्न - पिता), ६५.३३/ २.४.३३(ब्रह्मा के अर्वाक् तेजस का तम, रज आदि गुणों को प्राप्त करने व तम में स्थित तेज से सब भूतों की उत्पत्ति का कथन), शिव ७.२.३८.२६(तैजस ऐश्वर्य के अन्तर्गत २४ सिद्धियों के नाम), योगवासिष्ठ ६.२.९१ (वसिष्ठ द्वारा तैजस तत्त्व की धारणा से अनुभूत तैजस जगत का वर्णन ) । tejasa/taijasa

 

तेजोवती नारद १.६६.१२९(विरोचन गणेश की शक्ति तेजोवती का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७३(५१ वर्णों के गणेशों की शक्ति देवियों में से एक), वायु ३४.८१(अग्नि की तेजोवती सभा का उल्लेख ) ।

 

तैत्तिर पद्म १.४६.७८ (तैत्तिरी : अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.३५.७५(तैत्तिरीयों के खिलों का परक्षुद्र नाम से उल्लेख), भविष्य ३.४.६.५० (तिमिरलिङ्ग नामक म्लेच्छ राजा का तैत्तिर देश में दुर्ग निर्माण, इन्द्र द्वारा नाश), भागवत १२.६.६४(याज्ञवल्क्य द्वारा छर्दि से विसृष्ट यजुओं को वैशम्पायन - शिष्यों द्वारा तित्तिर बन कर ग्रहण करने का उल्लेख ) मत्स्य ४४.६२ (तैत्तिरि : कपोतरोमा - पुत्र, सर्प - पिता, बभ्रु वंश), ११४.४९(तैत्तिरिक : अपरान्त/पश्चिम के जनपदों में से एक), वायु ६१.६६(तैत्तिरीयों के खिलों का परक्षुद्र नाम होने का उल्लेख), विष्णु ३.५.१३(याज्ञवल्क्य द्वारा छर्दि से विसृष्ट यजुओं को वैशम्पायन - शिष्यों द्वारा तित्तिर बन कर ग्रहण करने का उल्लेख),हरिवंश १.३७.१८ (तैत्तिरि : कपोतरोमा - पुत्र, पुनर्वसु - पिता, बभ्रु वंश), लक्ष्मीनारायण १.५०४.७७ (भरद्वाज - पुत्र, कपिञ्जल - पौत्र, कृष्णद्वैपायन व्यास व शुकी - प्रपौत्र, तैत्तिर द्वारा कामाक्षी देवी की आराधना का वृत्तान्त ) । taittira

 

तैल गरुड १.१७४ (ओषधि - सिद्ध तैल के निर्माण की विधि), नारद २.२३.६९ (षष्ठी तिथि में तैल के व्यवहार से पाप होने का उल्लेख), पद्म २.८६.६९ (अग्नि के संयोग से वर्तिका द्वारा दीपक में स्थित तैल के शोषण के समान कर्म रूपी तैल के शोषण का उल्लेख, काया वर्ति, कर्म तैल), ६.१२२.८ (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रात: काल स्नान के संदर्भ में तैल में लक्ष्मी व जल में गङ्गा की उपस्थिति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.५५ (प्रतप्त तैल कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), भविष्य १.१९७.१७ (घृत, कटुतैल व मधूक तैल युक्त दीपदान का फल), मत्स्य १९७.४(तैलप : आत्रेय गोत्रकार ऋषियों में से एक), २०१.३८(तैलेय : ५ धूम्र पराशरों में से एक), वराह २०७.५२ (घृत से तेज व तैल से प्राणद्युति आदि की प्राप्ति का उल्लेख), शिव १.१६.४९ (तैलदान से कुष्ठ से मुक्ति), स्कन्द २.४.९.३२ (कार्तिक चतुर्दशी को  तैल में लक्ष्मी के निवास का उल्लेख), ५.१.२१.२५ (हनुमत्केश्वर तीर्थ में तैलाभिषेक से रोगनाश तथा ग्रहपीडा की अनुत्पत्ति का उल्लेख), ५.१.३५.३ (स्वर्णक्षुर तीर्थ में बलि को तैल अभिधान प्रदान से सिद्धि प्राप्ति तथा शिवपुर गमन का उल्लेख), ५.३.४४.२९ (शूलभेद तीर्थ में तैलबिन्दु के असर्पण? का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.४.४३(अहं की दु:तैल से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८४ (नरक में प्रतप्त तैल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), कथासरित् ६.१.४३ (वैश्यपुत्र को प्रदत्त तैल पात्र में तल्लीनता के समान मुक्ति हेतु आत्मा में तल्लीनता का कथन), १०.५.१८८ (तैल मूर्ख की कथा ) । taila