पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Tunnavaaya to Daaruka ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)
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Puraanic contexts of words like Dattaatreya, Dadhi/curd, Dadheechi/Dadhichi, Danu, Danta/tooth etc. are given here. दत्तोत्रि ब्रह्माण्ड १.२.३६.१८(एक पौलस्त्य?, स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) ।
दत्तोलि वायु २८.२२(दत्तालि : प्रीति व पुलस्त्य - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य), विष्णु १.१०.९(प्रीति व पुलस्त्य - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य ) । dattoli
दधि अग्नि ११९.१२(कुश द्वीप में दधिमुख्य विप्रों द्वारा ब्रह्म रूप के यजन का उल्लेख), गरुड २.२२.६२/२.३२.११६(दधि सागर की शोणित में स्थिति, अन्य धातुओं में अन्य), ३.१४.३५(भाद्रपद मास में दधि के निःसार होने का उल्लेख), ३.२९.५८(दधि अन्न भोजनकाल में गोपाल के स्मरण का निर्देश), गर्ग १.१७.२७ (कृष्ण द्वारा दधि चोरी का वर्णन), २.२२.१७ (दधिमण्डोद : पुष्कर द्वीप में समुद्र, हंस मुनि के तप का स्थान), नारद १.११९.६० (औदुम्बर व दधि - १४ यमों में से दो, अन्त्य शुक्ल दशमी में यजन), पद्म ४.२३.१२ (विष्णुपंचक व्रत में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को दधि सेवन का निर्देश), भागवत १०.४६.४४(गोपियों द्वारा प्रातःकाल दधि मन्थन, अक्रूर का आगमन), वराह १०६(दधिधेनु दान की विधि व माहात्म्य), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२१(दधि हरण से बलाका पक्षी योनि प्राप्ति का उल्लेख), शिव २.१.१२.३५ (यक्षों द्वारा दधिमय लिङ्ग की पूजा), स्कन्द १.२.४.८०(कानीयस दान - द्रव्यों में दधि की गणना), २.४.९.३९ (यम के १४ नामों में से एक ) ४.२.६१.१९९ (दधिवामन का संक्षिप्त माहात्म्य- दरिद्रता से मुक्ति), ४.२.९७.१८४ (दधि कल्प ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१४.५( कुश द्वीप में दधि समुद्र की स्थिति का उल्लेख), ५.१.१४.२८(दधिसमुद्र यात्रा विधि व माहात्म्य), ५.३.७९.२ (दधि स्कन्द, मधुस्कन्द तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.८० (दधि स्कन्द तीर्थ का माहात्म्य : नन्दी की तप से सिद्धि), वा.रामायण ५.६१.९ (दधिमुख वानर : सुग्रीव - मातुल, मधुवन का रक्षक, वानरों द्वारा दधिमुख का निग्रह), ६.३०.२२(दधिमुख वानर : सोम - पुत्र), लक्ष्मीनारायण २.१५.२५ (दधि से देवताओं, क्षीर से महेश्वर, आज्य से अग्नि, पयः से पितामह की तृप्ति), २.२४८.८(सोमयाग में पांचवें दिन दधिग्रहप्रचार कृत्य ), अथर्वपरिशिष्ट ३१.६.५(दधि होम से पुत्र, पयः से ब्रह्मवर्चस प्राप्ति का उल्लेख); द्र. सर्पिदधि । dadhi
दधि – गरुड ३.२६.६२(दधिवामन का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८(दधिक्राव : नवम रोहित मन्वन्तर के १२ मरीचि देवों में से एक),वायु १०६.३७/२.४४.३७(दधिपञ्चमुख : गया में गयासुर के शरीर पर यज्ञ करने वाले ऋत्विजों में से एक ) ।
दधिमण्डोद ब्रह्माण्ड १.२.१९.७७(क्रौञ्च द्वीप के चारों ओर दधिमण्डोद समुद्र से आवृत्त होने तथा दधिमण्डोद समुद्र के शाक द्वीप से आवृत्त होने का उल्लेख), ३.४.३१.१९(७ सिन्धुओं में से एक), भागवत ५.१.३३(प्रियव्रत के रथ की नेमि से बने ७ समुद्रों में से एक), ५.२०.२४(शाक द्वीप के दधिमण्डोद समुद्र से आवृत्त होने का उल्लेख), मत्स्य १२२.९२(शाल्मलि द्वीप द्वारा दधिमण्डोद समुद्र को आवृत्त करने का उल्लेख), विष्णु २.४.५७(क्रौञ्च द्वीप के चारों ओर दधिमण्डोद समुद्र से आवृत्त होने तथा दधिमण्डोद समुद्र के शाक द्वीप से आवृत्त होने का उल्लेख ) । dadhimandoda
दधिमुख ब्रह्माण्ड २.३.७.३५(प्रधान काद्रवेय नागों में से एक), वायु ६९.७२/२.८.६९(वही) ।
दधिवाहन ब्रह्माण्ड २.३.७४.१०२ (अङ्ग - पुत्र, बलि - पौत्र, दीर्घतमा के शाप से अनपान उत्पन्न होना), लिङ्ग १.२४.४० (अष्टम द्वापर में शिव का दधिवाहन मुनि के रूप में अवतार), वायु ९९.१०० (अङ्गद - पुत्र, बलि व सुदेष्णा - पौत्र, दीर्घतमा द्वारा सुदेष्णा को प्राप्त शाप के कारण दधिवाहन की मलमार्ग हीनता, अपर नाम अनपान), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४(दधिवाहन राजा की पत्नी कमला के राजमहिषीत्व हेतु का कथन), शिव ३.४.३२(अष्टम द्वापर में शिव का दधिवाहन रूप में अवतार ) dadhivaahana/ dadhivahana
दधीचि कूर्म १.१५ (दधीचि द्वारा दक्ष के यज्ञ में शिव को भाग देने के लिए प्रेरित करना, ब्राह्मणों को शाप), पद्म १.१९.७५(वृत्र वध हेतु दधीचि द्वारा अस्थि दान का प्रसंग), ५.१०५ (दधीचि द्वारा भस्म से करुण को पुन: जीवित करना), ब्रह्म २.४०.५ (गभस्तिनी - पति, देवों के अस्त्रों का पान व अस्थि दान की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.२८(दधीचि की दानियों में उत्कृष्टता का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१.९३(च्यवन व सुकन्या के २ पुत्रों में से एक, सरस्वती - पति, सारस्वत - पिता), भागवत ४.१.४२(दध्यङ : अथर्वा व चित्ति - पुत्र, अपर नाम अश्वशिरा), ६.१० (देवों के वज्र निर्माण हेतु दधीचि द्वारा स्व अस्थियों का दान), लिङ्ग १.३५ (दधीचि का क्षुप से विवाद, क्षुप व विष्णु की पराजय), वायु २१.४१(१९वें वैराजक कल्प में वैराज मनु से दधीचि की उत्पत्ति, गायत्री द्वारा दधीचि की कामना ,उससे पुत्र स्वरूप स्निग्ध स्वर की उत्पत्ति), ३०.१०२(दधीच : दक्ष द्वारा यज्ञ में शिव को निमन्त्रित न करने पर दधीच द्वारा क्रोध, शिव की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ६५.९० (च्यवन व सुकन्या - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७.२३(वृत्र वध हेतु दधीचि द्वारा अस्थि प्रदान का वृत्तान्त), शिव २.२.२७ (दधीचि का दक्ष यज्ञ से निर्गमन), २.२.३८ (स्वश्रेष्ठता विवाद में दधीचि की क्षुब राजा से पराजय, मृत्युज्य मन्त्र से अमरता प्राप्ति), २.२.३९ (क्षुब निमित्त विष्णु का गमन, कलह, दधीचि शव से विष्णु की पराजय), ३.२४ (दधीचि - पत्नी सुवर्चा से शिवांश पिप्पलाद की उत्पत्ति), ७.१.३२.१५(पाशुपत ज्ञान देने वाले ४ योगाचार्यों में से एक), स्कन्द १.१.२ (शिव के अनादर पर दधीचि का दक्ष के यज्ञ से निष्क्रमण), १.१.१६ (दधीचि द्वारा अस्थि दान का प्रसंग), ४.१.३५.५३ (दधीचि की वदान्यों / दाताओं में श्रेष्ठता), ४.२.८७.६८ (दधीचि द्वारा शिव रहित दक्ष यज्ञ की निन्दा, दक्ष द्वारा दधीचि का यज्ञ से निष्कासन), ४.२.९७.११ (दधीचीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.८(दधीचि की अस्थियों से वज्र निर्माण, वृत्र वध का प्रसंग), ७.१.३१+ (सुभद्रा - पति, देवों द्वारा प्रदत्त अस्त्रों का पान, सुभद्रा गर्भ से पिप्पलाद की उत्पत्ति की कथा, दधीचि का देवों के लिए प्राण त्याग), लक्ष्मीनारायण १.४८(दध्यङ्ग द्वारा वृत्र वध हेतु इन्द्र को स्वशरीर की अस्थि दान का उल्लेख), १.१७४.१२०(दक्ष के यज्ञ में शिव की अनुपस्थिति पर दधीचि द्वारा आपत्ति, दक्ष द्वारा दधीचि का यज्ञ से निष्कासन, दधीचि द्वारा यज्ञ में विघ्न का शाप), १.५३७.३८(दधीचि द्वारा देवों के अस्त्रों का पान, दधीचि की अस्त्र रूपी अस्थियों से देवों द्वारा वज्र का निर्माण, दधीचि व सुभद्रा से उत्पन्न बालक से बडवाग्नि की उत्पत्ति का वर्णन), ४.५९.५९(क्षुप तथा दधीचि नामक मित्रों में क्षत्रिय तथा ब्राह्मण में श्रेष्ठता विषयक विवाद का वृत्तान्त । dadheechi/ dadhichi दधिक्रावा : आनन्दमय कोश के आनन्द को पय: या दुग्ध कहते हैं। जब इस पय: या आनन्द का विज्ञानमय कोश में अवतरण होता है तो यह विकृत होकर दधि बन जाता है । वहां जो जीवात्मा इस दधि को धारण करता है उसे दध्यङ्ग कहते हैं। जब यह जीवात्मा विज्ञानमय से निचले - मनोमय, प्राणमय और अन्नमय स्तरों पर दधि रूपी आनन्द बिखेरता है तो वह दधिक्रावा अश्व कहलाता है । दध्यङ्ग ही पुराणों का दधीचि ऋषि है । वह जीवात्मा जो दधिक्रा - दधि से युक्त है, उसकी अस्थियों से वज्र बनता है । अस्थि अर्थात् अस्ति । वज्र: - वर्जनात्, अर्थात् जो अहंकार की वर्जना करता है । - फतहसिंह
दध्यङ्ग ब्रह्माण्ड १.२.१२.१० (अग्नि का नाम, अथर्वण - पुत्र), भागवत ४.१.४२ (अथर्वा व चित्ति - पुत्र, अश्वशिरा उपनाम), मत्स्य ५१.९ (दध्यङ्ग आथर्वणि : अथर्वा अग्नि का पुत्र), वायु २९.९ (अग्नि का नाम, अथर्वा अग्नि का पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.४८.४७ (वृत्र वध हेतु दध्यङ्ग द्वारा अस्थि दान), ३.३२.१० (अथर्वा अग्नि - पुत्र ) । dadhyanga
दनायुषा वायु ६८.३० (दनायुषा के ५ पुत्रों के नाम), ६९.९५ (कश्यप - भार्या, वैर - अनुग्रह शीला प्रकृति ) ।
दनु गरुड १.६.४३ (दनु के पुत्रों के नाम), पद्म १.६.४८ (दनु के पुत्रों के नाम), २.६.१(दनु द्वारा दिति को दानवों व दैत्यों के मारे जाने का समाचार देना), ब्रह्माण्ड २.३.६.१ (दनु के पुत्रों के नाम), २.३.७.४६६ (दनु की मायाशीला प्रकृति का उल्लेख), ३.४.९.३(कश्यप व दिति की पुत्री, धाता - पत्नी, विश्वरूप - माता), मत्स्य ६.१६ (कश्यप - भार्या, पुत्रों के नाम), १४६.१८(दक्ष - कन्या, कश्यप की १३ पत्नियों में से एक), १७१.२९(दक्ष - पुत्री, मारीच कश्यप की १२ भार्याओं में से एक), १७१.५८(दनु से दानवों की उत्पत्ति का उल्लेख), १७९.१९(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), वामन ५५.१ (कश्यप - पत्नी, शुम्भ, निशुम्भ व नमुचि की माता), ६०.३०(कश्यप - पत्नी, मुर - माता), ७८.१३(कश्यप - पत्नी, धुन्धु - माता), वायु ६५.१०५/२.४.१०५(अङ्गिरस व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक), ६८.१ (दनु के पुत्रों के नाम), ६९.९३ (दनु की मायाशीला प्रकृति का उल्लेख), विष्णु १.२१.४ (दनु के पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८(दनु से विप्रचित्ति - प्रमुख दानवों की उत्पत्ति), शिव २.५.२७.८(कश्यप - पत्नी, विप्रचित्ति आदि की माता), स्कन्द ५.३.४०.७ (मरीचि - भार्या, दक्ष - पुत्री, करञ्ज - माता), हरिवंश १.३.८० (दनु के सौ पुत्रों के नाम), वा.रामायण ३.१४.१६(अश्वग्रीव - माता, कश्यप वंश), ४.४.१५ (दिति - पुत्र, शाप के कारण राक्षस भाव को प्राप्ति, राम को सुग्रीव का पता बताना ) लक्ष्मीनारायण १.१६५.१६ (अङ्गिरस व सुरूपा के १० आङ्गिरस पुत्रों में से एक नाम), कथासरित् ८.२.३६३(मय, सुनीथ तथा सूर्यप्रभ का प्रह्लाद की आज्ञा से अन्य असुरों के साथ कश्यप आश्रम में दिति, दनु माताओं के दर्शनार्थ गमन, माताओं द्वारा आशीर्वाद), ८.३.२३४(नमुचि - माता, नमुचि के मरने पर दनु द्वारा पुन: नमुचि को स्वगर्भ से उत्पन्न करने का संकल्प, नमुचि की प्रबल नाम से दनु - गर्भ से उत्पत्ति ) । danu
दन्त गणेश २.१३.२३ (महोत्कट गणेश द्वारा काशी में दन्तुर राक्षस का वध), २.७०.४ (देवान्तक द्वारा गणेश दन्त को भङ्ग करना, गणेश द्वारा दन्त से देवान्तक का वध), गरुड ३.२९.४०(दन्त धावन काल में चन्द्रान्तर्यामी हरि के स्मरण का निर्देश), गर्ग १.१७.११(कृष्ण - मुख में पहले ऊर्ध्व दन्त निकलना मातुल दोषकारक होने का उल्लेख), देवीभागवत ११.२.३५(दन्त धावन विधि), पद्म १.४८.१५९ (गौ के दन्तों में गरुड के वास का उल्लेख), ६.६.२६(बल असुर के दन्तों से मुक्ता की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.५६(नरक में दन्त कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), ३.४.३६ (दन्त सौन्दर्य हेतु श्रीहरि को मुक्ता समर्पण का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.१.५.१६(यज्ञवाराह के क्रतु दन्त, इष्टि दंष्ट्र होने का उल्लेख), २.३.४२.४ (भार्गव द्वारा गणेश के दन्त का परशु द्वारा छेदन), ३.४.३३.३६(महादन्त : वैदूर्यशाल में स्थित नागों में से एक), ५.७२.२१(रङ्गवेणी के दन्तों में चित्र शोण बिन्दुओं की स्थिति का उल्लेख), भविष्य १.२२.८(गणेश द्वारा कार्तिकेय के कार्य में विघ्न करने पर कार्तिकेय द्वारा गणेश के एक दन्त का छेदन, शिव के कहने पर दन्त को पुन: प्रदान करना, कार्तिकेय की शर्त के अनुसार गणेश द्वारा हाथ में सदैव दन्त धारण करना), भागवत १०.६१.३७(बलराम द्वारा कलिङ्गराज के दन्त तोडने का उल्लेख), मार्कण्डेय ५१.३/४८.३(दन्ताकृष्टि : दुःसह व निर्मार्ष्टि की १६ सन्तानों में से एक दन्ताकृष्टि के कार्य का कथन), ९१.४१/८८.४१(शुम्भ - निशुम्भ के भक्षण से विन्ध्यवासिनी देवी का रक्तदन्ता होने का कथन), वामन ७२.५७(दन्तध्वज/ऋतध्वज : तामस मनु - पुत्र दन्तध्वज द्वारा पुत्र उत्पन्न करने हेतु अग्नि में स्वमांसादि का होम, मरुतों की उत्पत्ति), ९२.२६(वामन विराट रूप में दशनों में सर्व सूक्त होने का उल्लेख), वायु ६९.२२१/२.८.२१५(पुष्पदन्त हाथी के षड्दन्त व दन्त पुष्पवान् होने का उल्लेख), ७२.१६/२.११.१६(दन्तकाण्वोशना : उमा व महादेव - पुत्र ?), विष्णु ५.२८.९(बलराम द्वारा कलिङ्गराज के दन्त तोडने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.१० (विराट् पुरुष के दन्तों में मासों व ऋतुओं की तथा दंष्ट्रों में वत्सर स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.५७.९४(दन्तहस्त गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.५७.१००(चतुर्दन्त विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.३९.२८ (कपिला गौ के दन्तों में सर्पों की स्थिति), ५.३.८३.१०६(गौ के दन्तों में मरुद्गणों की स्थिति), ५.३.१५९.१२(कर्मविपाक वर्णन के अन्तर्गत मद्यपायी के श्यावदन्त होने का उल्लेख), ५.३.१९३.२७(वसन्तकामा अप्सराओं को श्रीहरि के विराट रूप का दर्शन, देवों की दन्तों में स्थिति), हरिवंश २.८०.२४(सुन्दर दन्त प्राप्ति हेतु व्रत विधान), ३.७१.५१ (भगवान् वराह के विराट् स्वरूप के अन्तर्गत दशन में छन्दों की स्थिति), योगवासिष्ठ १.१८.५ (दन्त की पुष्प के केसरों से उपमा), १.२३.१३ (काल रूपी महागज के शुभाशुभ फल रूपी दन्त), ६.१.९१.२ (वैराग्य व विवेक की हस्ती के २ दन्तों से उपमा), ६.१.१२६.८०(इच्छा रूपी करिणी के कर्म दन्त द्वय का उल्लेख), ६.२.१८५ (कुन्द दन्त : द्विज, वसिष्ठ प्रोक्त मोक्षोपाय नामक संहिता का श्रवण, तत्त्वज्ञान प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.३८८( राजा नन्दसावर्णि द्वारा वराह की दन्तास्थि के प्रभाव से धन का संग्रह, पत्नी द्वारा अस्थि को भस्म करने पर मरण की कथा ), २.१५.२७(गौ के दन्तों में मरुत् की स्थिति), कथासरित् १२.८.८२ (दन्तवैद्य : कलिङ्गदेशीय कर्णोत्पल राजा का कृपापात्र सङ्ग्रामवर्धन नामक दन्तवैद्य, पद्मावती - पिता), महाभारत शान्ति ३४७.५२(भगवान हयग्रीव के दन्तों के रूप में सोमपा पितरों का उल्लेख ) ; द्र. एकदन्त, कुन्ददन्त, पुष्पदन्त । danta |