पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Tunnavaaya to Daaruka ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)
|
|
Puraanic contexts of words like Daksha, Dakshasaavarni, Dakshina/south/right, Dakshinaa/fee, Dakshinaagni, Dakshinaayana, Danda/staff etc. are given here. दक्षजवंगर लक्ष्मीनारायण २.१०६.५०(उष्णालय देश का राजा, दक्ष का मानस पुत्र, विष्णु याग का आयोजन ) ।
दक्षता महाभारत वन ३१३.७३(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में यक्ष द्वारा दक्षता को धन्यों में उत्तम कहना ) ।
दक्षसावर्णि गरुड १.८७.३५ (नवम मनु दक्ष सावर्णि के पुत्रों के नाम), भविष्य ३.४.२५.३८(ब्रह्माण्ड वक्त्र से उत्पन्न जीव द्वारा दक्षसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), भागवत ८.१३.१८(नवें मनु, वरुण से उत्पत्ति, दक्ष सावर्णि मन्वन्तर में देवताओं आदि के गणों का कथन), विष्णु ३.२.२०(नवम दक्ष सावर्णि मनु के काल में देव गणों आदि का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.२१ (राजा धनवर्मा का तप से जन्मान्तर में दक्षसावर्णि मनु बनना ) ; द्र. मन्वन्तर । dakshasaavarnee/dakshasaavarni
दक्षिण ब्रह्माण्ड १.२.२१.५१(मेरु के सबसे उत्तर व लोकालोक पर्वत के सबसे दक्षिण में होने का उल्लेख), १.२.२७.१२५(श्मशान साधना से दक्षिण पन्थ द्वारा शिव को प्राप्त करने का कथन ?), १.२.३५.१४७(वही), २.३.३.५३(३ वीथियों के अनुसार २७ नक्षत्रों का उत्तम, मध्यम व दक्षिण मार्गों में वर्गीकरण), वायु ६१.१२३(श्मशान साधना से दक्षिण पन्थ को प्राप्त करने का उल्लेख?), १११.६/२.४९.६(दक्षिणमानस : गया में स्थित दक्षिणमानस तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ३.१.१० (दक्षिणोदधिस्थ गन्धमादन पर्वतवर्ती तीर्थ का माहात्म्य),३.१.१४(दक्षिणोदधिस्थ गन्धमादनवर्ती ब्रह्मकुण्ड का माहात्म्य), हरिवंश ३.३५.१६(वाराह भगवान् द्वारा दक्षिण दिशा में पर्वतों और नदियों का निर्माण), वा.रामायण ७.१.४(राम के अभिनन्दन हेतु दक्षिण दिशा के ऋषियों का आगमन), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१९(राजा नागविक्रम के यज्ञ में दाक्षिणात्य विप्रों द्वारा हवन व जप कार्य करने का उल्लेख), कथासरित् ६.७.२५(दक्षिण भूमि में गोकर्ण नगरस्थ राजा श्रुतसेन की कथा ) ; द्र. सुदक्षिण । dakshina
दक्षिणा कूर्म १.८.१२ (रुचि प्रजापति व आकूति - सन्तान, दक्षिणा से उत्पन्न १२ पुत्रों की स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम देवता नाम से प्रसिद्धि), गर्ग १.३.३८ (यज्ञ - पत्नी, लक्ष्मणा रूप में अवतार), देवीभागवत ९.१.९८, ९.४५.३५ (गोलोक से निष्कासित सुशीला के दक्षिणा बनने का वृत्तान्त, यज्ञ को पत्नी रूप में दक्षिणा की प्राप्ति, स्तोत्र व पूजा विधि में दक्षिणा का महत्त्व, दक्षिणा देवी का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.४२ (दक्षिणा की उत्पत्ति व पूजा विधान का वर्णन), २.४२.९२(दक्षिणा देवी के स्तोत्र में ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं का उल्लेख), ३.७.१५ (सनत्कुमार पुरोहित द्वारा पार्वती से शिव को दक्षिणा में मांगने का वृत्तान्त), ४.८७.७१( सनत्कुमार प्रोक्त दक्षिणा की धन्यता), ४.१२३ (दक्षिणा काल के बारे में सनत्कुमार का वसुदेव को प्रबोध), भविष्य २.२.३ (विविध कर्मों में देय दक्षिणा ; दक्षिणा रहित यज्ञादि कार्य का निषेध), भागवत २.७.२(अनन्त भगवान् द्वारा सुयज्ञ रूप में अवतार ग्रहण कर दक्षिणा नामक पत्नी से सुयम नामक देवताओं की उत्पत्ति), ४.१.६ (रुचि व आकूति - पुत्री, यज्ञ - पत्नी, १२ पुत्रों के नाम), ११.१९.३९(दक्षिणा की परिभाषा), मत्स्य २४८.७२(यज्ञवराह के दक्षिणाहृदय होने का उल्लेख), मार्कण्डेय ४७.१८/५०.१८ (रुचि प्रजापति व आकूति - कन्या, यज्ञ व दक्षिणा से याम नामक १२ पुत्रों की उत्पत्ति), वायु ६.२१ (दक्षिणा का वराह के ह्रदय से साम्य), १०.१२(रुचि प्रजापति व आकूति से उत्पन्न दक्षिणा व यज्ञ से याम नाम से प्रसिद्ध १२ देवों की उत्पत्ति), विष्णु १.७.२०(रुचि प्रजापति व आकूति से यज्ञ तथा दक्षिणा की उत्पत्ति, यज्ञ व दक्षिणा से याम नाम से प्रसिद्ध १२ पुत्रों की उत्पत्ति), १.१५.२२टीका(दक्षिणा की परिभाषा - या गौरवं भयं प्रेम सद्भावं पूर्वनायके । न मुञ्चति अन्यचित्तापि सा ज्ञेया दक्षिणा बुधै:), विष्णुधर्मोत्तर १.१०३(पृथक् - पृथक् ग्रहों के लिए देय दक्षिणा का कथन), ३.२९३ (दाक्षिण्य लाभ निरूपण), स्कन्द ७.१.३५३.२२(यज्ञ वराह के संदर्भ में दक्षिणा के ह्रदय होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ७९.७(युधिष्ठिर - भीष्म संवाद के अन्तर्गत यज्ञ में सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देने का प्रश्न), आश्वमेधिक २५.१५(अपवर्ग/मोक्ष के दक्षिणा होने का उल्लेख ) । dakshinaa
दक्षिणाग्नि गरुड १.२०५.६६/१.२१३.६६(त्रिलोचन शिव का रूप ; अन्य अग्नियों का कथन), पद्म १.१४.८० (अग्निहोत्र हेतु गृहीत तीन प्रकार की अग्नियों में से एक), ब्रह्म २.९१.५७(विष्णु के आहवनीय पर श्वेत, दक्षिणाग्नि पर श्याम व गार्हपत्य पर पीतवर्ण होने का उल्लेख), भविष्य ४.६९.३६(गौ के जठर में गार्हपत्याग्नि, ह्रदय में दक्षिणाग्नि, कण्ठ में आहवनीयाग्नि तथा तालु में सभ्याग्नि की स्थिति), भागवत ६.१७.३८ (त्वष्टा की दक्षिणाग्नि से वृत्र के जन्म का उल्लेख), वायु १०४.८५(दक्षिणाग्नि का ऊर्ध्वोष्ठ में न्यास), १११.१५ (दक्षिणाग्नि से फल्गु तीर्थ की उत्पत्ति का कथन), १११.५०/२.४९.५९(गया में दक्षिणाग्नि पद पर श्राद्ध से पितरों को ब्रह्मपुर प्राप्ति का उल्लेख), विष्णु ५.३४.३२ (कृष्ण की हत्या हेतु दक्षिणाग्नि से कृत्या की उत्पत्ति), २.३७.५६(माता के दक्षिणाग्नि व पिता के गार्हपत्य अग्नि होने का उल्लेख), स्कन्द २.१.३६.६ (दक्षिणाग्नि के यज्ञवराह का उदर होने का उल्लेख), ५.१.३.५९ (धनुषाकार दक्षिणाग्नि में विष्णु की पूजा का निर्देश), महाभारत शान्ति १०८.७(माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख ), द्र. अन्वाहार्यपचन dakshinaagni
दक्षिणापथ ब्रह्माण्ड २.३.१०.९८(नर्मदा के दक्षिणापथ गामिनी होने का उल्लेख), २.३.६३.१०(इक्ष्वाकु के ५० पुत्रों के उत्तरापथ व ५० पुत्रों के दक्षिणापथ के रक्षक होने का कथन), भागवत ९.१.४१(दक्षिणापथ में सुद्युम्न के उत्कल आदि ३ पुत्रों के राज्य का उल्लेख), मत्स्य १५.२८(नर्मदा के दक्षिणापथ गामिनी होने का उल्लेख), ११४.२९(वही), विष्णु ५.२३.२(दक्षिणापथ में गार्ग्य का पुत्रार्थ तप, कालयवन पुत्र की प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.६(दक्षिणापथ में प्रद्युम्न की पूजा का निर्देश ) । dakshinaapatha
दक्षिणामूर्ति नारद १.८६.२ (दक्षिणामूर्ति ऋषि द्वारा त्रिपुरा बाला देवी की आराधना), १.८७.४४ (दक्षिणामूर्ति ऋषि द्वारा त्रिपुर भैरवी की आराधना), १.९१.१३० (शिव का नाम, शुक द्वारा दक्षिणामूर्ति शिव की आराधना), स्कन्द २.२.३२ (वासुदेव आदि की दक्षिण मुखस्थ मूर्ति के दर्शन का फल), २.२.३९.१५(दक्षिणामूर्ति के दर्शन से पापनाश का उल्लेख ) । dakshinaamoorti/ dakshinamurti
दक्षिणायन अग्नि २१४.१७ (सूर्य की गति से घटित अयन, विषुव आदि दस दशाओं की शरीर में भी स्थिति के अन्तर्गत उत्तरायण की वामनाडी से तथा दक्षिणायन की दक्षिण नाडी से तुलना), ब्रह्माण्ड १.२.२१.३५, ६७(सूर्य की दक्षिणायन व उत्तरायण में गतियों का वर्णन), वायु ५०.९२(सूर्य की दक्षिणायन में गति का वर्णन), ५०.२०१(दक्षिणायन के ६ मासों के नाम), स्कन्द २.२.३७ (दक्षिणायन में पुरुषोत्तम पूजा का फल ) ; द्र. उत्तरायण । dakshinaayana
दग्ध लक्ष्मीनारायण २.१७६.६५(ज्योतिष में दग्ध योग ) ।
दण्ड अग्नि २२७ (अपराध अनुसार दण्ड की व्यवस्था), २४५.३ (प्रशस्त दण्ड / यष्टि के लक्षण), नारद १.६६.११५(दण्डीश की शक्ति भद्रकाली का उल्लेख), पद्म १.३७.१४ (वैवस्वत मनु - पुत्र, इक्ष्वाकु - अनुज, अरजा पर आसक्ति, शुक्राचार्य के शाप से दण्ड के राज्य का दग्ध होना), ४.२३.१७(दुष्ट विप्र दण्डकर द्वारा विष्णु पञ्चक व्रत से श्रीहरि के रूप को प्राप्त करने का कथन), ७.१३.१४०(निर्दयी शबर के दण्डी, दण्डायुध आदि ६ भ्राताओं के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.२९.६३(प्रियव्रत व उत्तानपाद के प्रथम दण्डधारी राजा होने का उल्लेख), २.३.६३.९(इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों में से एक), ३.४.१७.४(दण्डनाथा देवी की सेना का एक भैरव), भविष्य ४.१३८.७९ (कनक दण्ड मन्त्र), भागवत ६.१.४२(सूर्य आदि साक्षियों द्वारा द्रष्ट अधर्म के अनुसार दण्ड प्राप्त होने का कथन), ११.१८.१७ (तीन दण्डों की परिभाषा : चेतः/मन, वाक् एवं शरीर के लिए क्रमश: प्राणायाम, मौन तथा अनीहा/निश्चेष्ट स्थिति रूप दण्डों की आवश्यकता ), ११.१९.३७(दण्डन्यास/अभयदान का श्रेष्ठ दान के रूप में उल्लेख), मत्स्य ५.२२ (आप नामक वसु के ४ पुत्रों में से एक, यज्ञ रक्षा का अधिकारी), १२.३२(कुवलाश्व के ३ पुत्रों में से एक), १८३.६५(दण्डचण्डेश्वर : अविमुक्त क्षेत्र के रक्षक गणेश्वरों में से एक), २२५(दण्ड नीति का वर्णन, अदण्डी देवों की पूजा न होने का कथन), २२७ (पृथक् - पृथक् अपराधों के लिए पृथक् - पृथक् दण्ड का निरूपण), मार्कण्डेय ४१.२२/३८.२२ (वाग्दण्ड, कर्मदण्ड, मनोदण्ड नामक त्रिदण्डों को वशीभूत करने वाले की त्रिदण्डी संज्ञा), ५०.२६/४७.२६ (धर्म व क्रिया - पुत्र), वामन ६३.१९ (राजा दण्ड की शुक्राचार्य - कन्या अरजा पर आसक्ति , चित्राङ्गदा का वृत्तान्त), ६६ (अरजा का शील भङ्ग करने पर शुक्राचार्य द्वारा दण्ड को सप्त रात्रियों में राष्ट्र सहित विनष्ट होने का शाप), ८९.४६(मरीचि द्वारा वामन को पालाश दण्ड देने का उल्लेख), ९०.२९(लोहदण्ड में विष्णु की हृषीकेश नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु १०.३५(क्रिया व धर्म के ३ पुत्रों में से एक), १७.६ (त्रिदण्डी की परिभाषा, वाक् दण्ड, कर्मदण्ड व मनोदण्ड का उल्लेख), ४४.२२(दण्डा : केतुमाल देश की एक नदी), ८५.८/२.२३.८(मनु के दण्डधर होने का उल्लेख), ८८.९/२.२६.९(इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों में से एक), १०५.२५/२.४३.२३(भिक्षु द्वारा गया में पिण्डदान के बदले दण्ड प्रदर्शन का विधान), विष्णु १.७.२९ (दक्ष - पुत्री क्रिया व धर्म के तीन पुत्रों में से एक), ४.२.३(इक्ष्वाकु के ३ ज्येष्ठ पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.७०+ (दण्ड की प्रशंसा), २.७२ (राजा द्वारा विविध अपराधों के अनुसार दण्ड का प्रणयन), २.१११(पाप अनुसार नरक गमनादि दण्ड का विधान), ३.२३८ (राजा द्वारा अनुशासनार्थ दण्ड व्यवस्था का वर्णन), स्कन्द १.२.६.४५ (तप सामर्थ्य से नारद का दण्ड के अग्रभाग पर द्विजों को स्थापित कर महीसागर सङ्गम पर आगमन), ४.२.६४.५ (काशी में ब्राह्मणों के दण्ड द्वारा खातित दण्डखात तीर्थ), ५.३.१५९.७७ (वैतरणी नामक महादान के अन्तर्गत यम को लौहदण्ड से युक्त करने तथा उडुप/नौका को इक्षुदण्डमय बनाने का निर्देश), ५.३.२१८.२० (क्रुद्ध जमदग्नि द्वारा ब्रह्मदण्ड सदृश महादण्ड धारण, दण्ड प्रहार से कार्त्तवीर्य का भूमि पर पतन), ६.२६३.१६ (योगी द्वारा धारित दण्ड का प्रतीकार्थ), ७.१.११.२०० (विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के शातित तेज से प्रेतपति के दण्ड का निर्माण), ७.३.२.४१ (उत्तङ्क द्वारा तक्षक से कुण्डल प्राप्ति के लिए दण्ड की सहायता से भूमि खनन, दण्डाग्र पर वज्र का आरोपण), वा.रामायण १.५५.२८ (वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र के विरुद्ध ब्रह्मदण्ड का प्रयोग), ७.५.४० (निशाचर सुमाली व केतुमती के अनेक पुत्रों में से एक), ७.७९ (इक्ष्वाकु - पुत्र, मधुमन्त नगर का राजा, शुक्र - कन्या से बलात्कार पर शुक्र द्वारा शाप, राज्य का नाश), लक्ष्मीनारायण १.३००.५३ (दण्ड द्वारा ताडन पर दुन्दुभि से घोष का उल्लेख), १.३२३.५१(धर्म व क्रिया के ३ पुत्रों में से एक), २.२२.११०(पराजित पुरुष द्वारा जेता को दण्ड प्रदान का उल्लेख), २.४१.४(शिवाराधना से कन्थाधर नामक राजा को कालदण्ड की प्राप्ति, दण्ड की सहायता से यमपुर में गमन और विप्र - पुत्र के आनयन का वृत्तान्त), २.५०(राजा, शुक्र - पुत्री अरजा पर आसक्ति, शुक्र - शाप से नाश को प्राप्ति की कथा), २.१८२.२६(श्रीहरि द्वारा दण्ड का विधान, दण्ड - भय से सम्पूर्ण जगत् की नियम में स्थिति ; राजदण्ड, धर्मदण्ड, यमदण्ड, देवदण्ड आदि की महिमा), ४.६६.१९(दण्डारणि : दण्डारणि नामक कौलिक को हिंसादि कर्म से गृध्र योनि की प्राप्ति, गृध्र जन्म में भगवत् प्रसाद भक्षण से मुक्ति), ४.८०.१४ (दण्डायन : नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में प्रतिहर्त्ता), महाभारत शान्ति १४.१४(तप युक्त ब्राह्मण तथा दण्डयुक्त क्षत्रिय के शोभा पाने का श्लोक), १४.२१(युधिष्ठिर द्वारा जम्बू आदि द्वीपों को दण्ड द्वारा मर्दित करने का कथन), १५(अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर हेतु संसार राजदण्ड की महत्ता का वर्णन), १२१(भीष्म द्वारा युधिष्ठिर हेतु दण्ड के स्वरूप, नाम , लक्षण व प्रभाव का वर्णन), ३०१.६३(तप दण्ड का उल्लेख ) । danda
|