पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Tunnavaaya to Daaruka ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)
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Puaanic contexts of word Daana are given here. दान अग्नि ६४.४४ (तोयदान से सर्वदानों का फल प्राप्त करके स्वर्गगमन का उल्लेख), ६६.२८ (मठदान से स्वर्ग व इन्द्रलोक, प्रपादान से वरुण लोक तथा गृहदान से स्वर्गलोक प्राप्ति का उल्लेख), १६४ (धेन्वादि दान), १८८.६ (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी में लवण दान से सर्व रस प्रदान फल की प्राप्ति का उल्लेख), १८८.९(फाल्गुन कृष्ण द्वादशी में ब्राह्मणों को तिल दान का उल्लेख), १९०.२ (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को यव व व्रीहियुक्त पात्र दान का निर्देश), १९१.८ (त्रयोदशी तिथि के वार्षिक व्रतों की समाप्ति पर स्वर्ण निर्मित शिवलिङ्ग तथा गौ, शय्या, छत्र, कलश, पादुका तथा रसपूर्ण पात्र दान का उल्लेख), १९६.१२ (नक्षत्र व्रत में कृशरा व पायस दान का निर्देश), १९६ (अन्न दान), १९८.२(वैशाख में पुष्प लवण त्याग से गोदान फल की प्राप्ति का उल्लेख), १९८.३ (आषाढ आदि चातुर्मास में वैष्णव होकर प्रात: स्नान से गुड धेनु दान के फल की प्राप्ति का उल्लेख), १९९.१(वर्षा में इन्धन आदि दान से अग्निव्रती होने का कथन), २०० (द्वीप दान व्रत का माहात्म्य), २०४(मासोपवास व्रत की समाप्ति पर वस्त्र, पात्र, आसन, छत्र आदि विविध वस्तुओं के दान का माहात्म्य),२०८.६ (दान के संकल्प का मन्त्र), २०९ (दान के इष्ट व पूर्त भेद, प्रशस्त दानकाल, दान पात्र विचार तथा दान विधि का वर्णन), २१० (१६ महादानों के नाम, १० मेरु दान, १० धेनु दान, विविध गो दान विधि व माहात्म्य), २११ (विविध द्रव्य दानों की महिमा), २१२ (१२ प्रकार के मेरु दानों का वर्णन), २१३(पृथिवी दान तथा गो दान की महिमा), कूर्म २.२६ (भूमि, तिल आदि दान का माहात्म्य व फल), गरुड १.५१ (विविध दानों का फल), १.९८ (दान की विधि व महिमा), २.२१/२.३० (नाना दान फल का निरूपण), २.३१(मृतक की सद्गति हेतु दान), २.४२.५(गावः, पृथिवी, सरस्वती रूप में तीन अतिदानों के उल्लेख), गरुड २.४.४(गो, भू, तिल आदि १० दानों के नाम), २.३०.१३(तिल, लौह, हिरण्य, कार्पास आदि दान के फलों का कथन), गर्ग ६.१९.२४ (द्वारका मण्डल के अन्तर्गत दान तीर्थ का माहात्म्य), देवीभागवत ९.२९+ (विभिन्न दानों के फलों का कथन : यम - सावित्री संवाद), नारद १.१२.१ (दान पात्र - अपात्र निर्णय ; सनक द्वारा नारद को उपदेश, उत्तम, मध्यम व अधम दान प्रकार), १.१३ (अन्न, रत्न व पशु आदि दानों के फल का वर्णन), १.४३.१००(दान के २ प्रकारों का कथन), १.१२४.६५ (कार्तिक पूर्णिमा तिथि को क्षीर सागर दान की विधि), २.२२.६७ (चातुर्मास्य व्रत के उद्यापन में दान), २.४१.४५ (गङ्गा तट पर विविध दानों का माहात्म्य), २.४२.५ (गुड धेनु दान विधि, दस प्रकार की धेनुओं का दान), २.४४.५० (गया में पिण्ड दान का माहात्म्य, वणिक् द्वारा पिण्डदान से प्रेतगणों का उद्धार), २.४५.२१(गया में पिण्डदान की विधि), पद्म १.१८.६९(पुष्कर के अन्तर्गत सरस्वती में स्नान दानादि की प्रशंसा), १.२१.८०(गुडादि दशविध धेनुदान तथा धान्यादि दशविध शैलदान की विधि), १.३४+ (पुष्करादि तीर्थ में नानाविध दान की महिमा), १.५०.२७ (चन्द्र- सूर्य ग्रहण के समय दान का महत्त्व), १.५७ (जल दान का महात्म्य), १.५८.५२ (धर्म घट दान से प्रपादान फल की प्राप्ति), १.५९.६५(घृतप्रदीप, धूप आदि विविध दानों का महत्त्व), १.७७.४८ (तुलादि विविध दानों की महिमा), १.८०.२९ (चन्द्र को उद्देश्य कर दिए गए दान का महत्त्व), १.८२.३९(कृतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ तथा कलियुग में दान का महत्त्व), २.१३.९(दान के स्वरूप का कथन), २.३९.४० (दान का माहात्म्य, दानोपयोगी काल, देश, दान के पात्र व अपात्र का वर्णन), २.६९.१९(अन्न दान की प्रशंसा ; प्रेत हेतु प्रशस्त ८ दानों के नाम), २.९४.३८(जैमिनी द्वारा सुबाहु को दान के महत्त्व का कथन), २.९५.२४(दान की श्रेष्ठता), ३.३१ (पुण्य दान : स्वकृत सुकृत दान से विकुण्डल द्वारा श्रीकुण्डल का उद्धार), ३.५७ (दान धर्म तथा विविध दानों का माहात्म्य), ४.१०(चन्द्र व सूर्य ग्रहण में दान का महत्त्व), ४.१६(आश्विन् पूर्णिमा में श्रीहरि को लाजादि दान का महत्त्व), ४.२० (विविध दानों का फल), ४.२४(विविध दान माहात्म्य व फल का वर्णन), ५.९७(विविध दानों का वर्णन), ५.११४ (कलियुग में दान की प्रशंसा), ६.२६ (अन्न दान की प्रशंसा), ६.३२ (भूमि, वस्त्र, जल, दीप आदि दान का वर्णन), ६.७४ (दान धर्म का माहात्म्य), ६.८८ (सत्यभामा द्वारा तुला पुरुष दान), ६.११८ (तिल धेनु आदि दान का वर्णन), ६.१२१(पिण्ड, दीप दान विधि का वर्णन), ७.१९.३५( दान की गई वस्तु के भविष्य में स्वयं उपयोग का निषेध), ७.२० (विविध दानों का माहात्म्य : ब्रह्मा व हरिशर्मा ब्राह्मण संवाद, अन्न दान का माहात्म्य), ७.२२(एकादशी में पापपुरुष के निवास हेतु अन्न रूप स्थल दान), ब्रह्म १.१०९.१०(सर्वदानों में अन्नदान की प्रशंसा, अन्नदान से उत्तम लोक की प्राप्ति), २.८५.१४(कपिला सङ्गम तीर्थ में दान का भूमि दान सदृश फल), ब्रह्मवैवर्त्त २.९ (भूमि दान के फल का वर्णन), ४.७६.५४ (गज दानादि नानाविध दानों के फलों का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.११.२६ (दानाग्नि : पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र, सुजङ्घी - पति, जन्मान्तर में अगस्त्य), २.३.१६ (श्राद्ध में दान का फल), ३.४.१.१९(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० सुखदेव गण में से एक), भविष्य १.११८ (दीप दान के फल का कथन), १.१७२.४४ (विभिन्न दानों के फलों का कथन ; दान के पात्र ), १.१८७ (धेनु दान), १.१८९ (दान हेतु पात्र - अपात्र का निर्णय तथा दान का महत्त्व), २.१.१७.६ (महादान में अग्नि का नाम हविर्भुज), २.२.१३ (अर्घ्य दान विधि), ४.१००.१५(ब्राह्मणों की अपेक्षा अन्यों को दान देने के श्रेष्ठ फल का कथन), ४.१३० (दीप दान विधि व माहात्म्य), ४.१४१.१३ (नवग्रह यज्ञ में भिन्न - भिन्न ग्रहों के लिए भिन्न - भिन्न दानों का विधान), ४.१५० (वृष दान), ४.१५० (विविध दान व उनकी महिमा), ४.१५१ (धेनु दान), ४.१५२ (तिल धेनु दान), ४.१५३ (जल धेनु दान), ४.१५४ (घृत धेनु दान), ४.१५५ (लवण धेनु दान), ४.१५६ (काञ्चनधेनु दान), ४.१५७ (रत्न धेनु दान), ४.१५८ (उभयमुखी गौ दान), ४.१५९ (गो सहस्र दान), ४.१६० (वृषभ दान), ४.१६१ (कपिला दान), ४.१६२ (महिषी दान), ४.१६३ (अवि दान), ४.१६४ (भूमि दान), ४.१६५ (सौवर्ण पृथिवी दान), ४.१६६ (हल पंक्ति दान), ४.१६७ (आपाक दान), ४.१६८ (गृह दान), ४.१६९ (अन्न दान), ४.१७० (गौ दान), ४.१७० (स्थाली दान), ४.१७१ (दासी दान), ४.१७२ (प्रपा दान), ४.१७३ (अग्नीष्टका दान), ४.१७४ (विद्या दान), ४.१७५ (तुला पुरुष दान), ४.१७६ (हिरण्यगर्भ दान), ४.१७७ (ब्रह्माण्ड दान), ४.१७८ (कल्पवृक्ष दान), ४.१७९ (कल्पलता दान), ४.१८० (गज अश्वरथ दान), ४.१८१(कालपुरुष दान), ४.१८३ (महाभूतघट दान), ४.१८२ (सप्त सागर दान), ४.१८४ (शय्या दान), ४.१८५ (आत्मप्रकृति दान),४.१८६ (हिरण्याश्व दान), ४.१८७ (हिरण्याश्वरथ दान), ४.१८८ (कृष्णाजिन दान), ४.१८९ (हेम हस्ति रथ दान), ४.१९० (विश्वचक्र दान), ४.१९२ (नक्षत्र दान), ४.१९३ (तिथि दान), ४.१९४ (वराह दान), ४.१९५ (धान्य पर्वत दान), ४.१९६ (लवण पर्वत दान), ४.१९७ (गुडाचल दान), ४.१९८ (हेमाचल दान), ४.१९९ (तिलाचल दान), ४.२०० (कार्पासाचल दान), ४.२०१ (घृताचल दान), ४.२०२ (रत्नाचल दान), ४.२०३ (रौप्याचल दान), ४.२०४ (शर्कराचल दान), भागवत ५.२०.२७(दानवृत : शाकद्वीप के निवासियों का वर्ग), ११.१७.१८(वैश्य वर्ण के प्रकृतिगत गुणों में दाननिष्ठा का उल्लेख), ११.१९.३७(दण्डन्यास का परम दान के रूप में उल्लेख), मत्स्य ८२ (गुड धेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), ८३.२(पर्वत दान के दस भेदों का कथन), ८३.९ (धान्य शैल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८४ (लवणाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८५ (गुड पर्वत दान की विधि एवं माहात्म्य), ८६ (सुवर्णाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८७ (तिल शैल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८८ (कार्पासाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८९ (घृताचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ९०(रत्नाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ९१ ( रजताचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ९२ (लवणाचल दान), ९२ (शर्करा शैल दान की विधि एवं माहात्म्य), १२७.२७(तिलधेनु दान एवं वृक्ष दान का माहात्म्य), २०५ (धेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), २०६ (कृष्ण मृगचर्म /कृष्णाजिन दान की विधि एवं माहात्म्य), २७४.६ (१६ महादानों के नाम, तुला दान की विधि एवं माहात्म्य), २७५ (हिरण्यगर्भ दान की विधि एवं माहात्म्य), २७६ (ब्रह्माण्ड दान की विधि एवं माहात्म्य), २७७ (कल्पपादप दान की विधि एवं माहात्म्य), २७८ (गो सहस्र दान की विधि एवं माहात्म्य), २७९ (कामधेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), २८० (हिरण्याश्व दान की विधि एवं माहात्म्य), २८१ (हिरण्याश्व रथ दान की विधि एवं माहात्म्य), २८२ (हेम हस्ति रथ दान की विधि एवं माहात्म्य), २८३ (पञ्चलाङ्गल दान की विधि एवं माहात्म्य), २८४ (हेमधरा दान की विधि एवं माहात्म्य), २८५ (विश्व चक्र दान की विधि एवं माहात्म्य), २८६ (कनक कल्पलता दान की विधि एवं माहात्म्य), २८७ (सप्त सागर दान की विधि एवं माहात्म्य), २८८ (रत्नधेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), २८९ (महाभूत घट दान की विधि एवं माहात्म्य), वराह १४ (अन्न व पिण्ड दान), ३९.५२ (मत्स्य द्वादशी व्रत के अन्तर्गत ४ कुम्भों की स्थापना तथा ब्राह्मणों को दान का कथन), ५५ (शुभ नामक व्रत के अन्तर्गत रौप्य दान, मही दान आदि), ५७ (कान्ति व्रत के अन्तर्गत राजत निर्मित चन्द्र प्रतिमा का दान), ९९(तिलधेनु दान का माहात्म्य), १००(जलधेनु दान की विधि), १०१ (रस धेनु दान का माहात्म्य), १०२(गुडधेनु दान का माहात्म्य), १०३ (शर्करा धेनु दान का माहात्म्य), १०४ (मधु धेनु दान का माहात्म्य), १०५ (क्षीर धेनु दान विधि), १०६ (दधि धेनु दान का माहात्म्य), १०७ (नवनीत धेनु दान का माहात्म्य), १०८ (लवण धेनु दान का माहात्म्य), १०९ (कार्पास धेनु दान का माहात्म्य), ११० (धान्य धेनु दान का माहात्म्य), १११ (कपिला धेनु दान का माहात्म्य), ११२ (उभयमुखी गौ दान तथा हेमकुम्भ दान की प्रशंसा), १८० (ध्रुव तीर्थ में पिण्ड दान तथा श्राद्ध आदि से पितरों की तृप्ति), २०७.४६ (नानाविध दानों से नाना फलों की प्राप्ति का उल्लेख), वामन ९४ (मास अनुसार दान), वायु ८० (श्राद्ध में विभिन्न दानों का फल), १००.१८/२.३८.१८(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० मुख्य नामक देवगण में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.६९(दान का माहात्म्य), ३.१६ (दान हेतु पात्र विशेष), ३.२८८.२५ (विभिन्न दान व उनका फल), ३.२८८.४५ (पितरों हेतु श्राद्ध में किए गए विभिन्न दानों का फल), ३.२९८ (प्रपा दान, यात्रा उपस्कर दान व उनका फल), ३.३०० (संक्रान्ति काल में दान, तीर्थादि में दान व उसका फल), ३.३०१ (दान / प्रतिग्रह विधि), ३.३०५ (भूमि दान का फल), ३.३०६ (गौदान व उसका फल), ३.३०८ (तिल धेनु दान विधि का वर्णन), ३.३०९ (जल धेनु दान विधि का वर्णन ), ३.३१० (सुवर्ण दान व उसकी विधि), ३.३११ (अनेक वस्तुओं का दान व उनके फल का वर्णन), ३.३१२ (वाहन, दास, दासी आदि के दान का माहात्म्य), ३.३१३ (वस्त्र दान की महिमा), ३.३१४ (धान्य दान की महिमा), ३.३१५ (अन्न दान का माहात्म्य), ३.३१७ (ऋतु, मास, नक्षत्र, तिथि अनुसार दान तथा दान फल का वर्णन), ३.३१८ (नक्षत्र अनुसार दान), ३.३१९ (पूर्णिमा, द्वादशी में दान फल का वर्णन), ३.३४१ (देवालय में विभिन्न धर्म द्रव्य, पुष्पादि दान का फल), शिव १.१५.३६ (विभिन्न पात्रों को अन्न दान के समय बुद्धि के अपेक्षित रूप का कथन), १.१५.४७ (कामना अनुसार दान द्रव्य का कथन), १.१६.५१(भिन्न - भिन्न दानों के भिन्न - भिन्न फलों का कथन), ५.११ (यम लोक के मार्ग में सुविधा - प्रदायक विविध दानों का वर्णन), ५.१२(जल दान की महिमा), ५.१४.१ (दान का माहात्म्य व दान के भेद), स्कन्द १.१.१८ (साढे तीन घटिका मात्र के लिए इन्द्र पद प्राप्त होने पर कितव द्वारा ऐरावतादि दान), १.२.२ (दान के माहात्म्य का वर्णन), १.२.३ (दान का स्थान, दर्श श्राद्ध दान), १.२.४ (धर्म, अर्थ, काम, लज्जा, दर्प, भय के अनुसार दान का निरूपण), १.२.४.१७, ७८ (दान के २ हेतु, ६ अधिष्ठान, ६ उत्स, २ पादादि का निरूपण), १.२.५० (विविध दान, यम लोक में फल), २.१.१६ (वेंकटाद्रि पर जल दान की प्रशंसा), २.१.२० (भूमि दान की महिमा), २.१.२२ (दान योग्य सत्पात्र का निर्णय), २.१.४० (वेंकटाचल पर करणीय दान की प्रशंसा), २.२.३० (ज्येष्ठ मास में दान का माहात्म्य), २.३.५ (बदरी क्षेत्र में दान का माहात्म्य), २.४.२.४२.५२ (गौ दान, शालिग्राम शिला दान का माहात्म्य), २.५.१४+ (द्वादशी में करणीय मत्स्योत्सव में मत्स्य रूप स्वर्ण मूर्ति दान का माहात्म्य), २.५.१५ (मार्गशीर्ष में विविध दानों का माहात्म्य), २.७.२ (वैशाख मास में विविध दानों का माहात्म्य), २.७.१० (वैशाख मास में छत्र दान, हेमकान्त व त्रित की कथा), ३.१.५२ (दान पात्र योग्यता : दिलीप - वसिष्ठ संवाद), ४ + (दान के पात्र), ५.१.८ (महाकालवन में दान का माहात्म्य ),५.२.८३.१५(बिल्व व कपिल के परस्पर वाद विवाद में बिल्व द्वारा दान व तीर्थ की तथा कपिल द्वारा ब्रह्म व तप की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ५.३.२६.९७(विविध दान व उनका फल), ५.३.३४ (रवि तीर्थ में दान का माहात्म्य), ५.३.३५ (मेघनाद तीर्थ में दान का माहात्म्य), (दान पात्र - अपात्र विचार), ५.३.५६ (तीर्थ में स्नान दानादि का फल, माहात्म्य), ५.३.१५३.१०(भिन्न -भिन्न अवसरों पर दान का आपेक्षिक महत्त्व), ५.३.१९५.११(सोम को वस्त्र, भार्गव को मौक्तिक तथा सूर्य को स्वर्ण दान से दान की अनन्तता का उल्लेख), ७.१.५ (पिण्ड दान), ७.१.२०७+ (श्राद्ध में वस्त्र, अन्नादि दान का फल, पात्र - अपात्र विचार), ७.१.२०८ (दान पात्र ब्राह्मण विचार), हरिवंश ३.१७.६७(कर्म के फल के आदान और अनादान का कथन), महाभारत वन ३१३.६४(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान के मुमूर्षु मनुष्य का मित्र होने का उल्लेख), ३१३.७०(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान के एकपद यश होने का उल्लेख), ३१३.७२(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान के मनुष्य के परायण होने का उल्लेख), ३१३.७९(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में ब्राह्मण, नट - नर्तक, भृत्यों व राजाओं को दान देने के हेतुओं का कथन), ३१३.९५(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में भूतरक्षण के ही दान होने का उल्लेख), शान्ति ३६.३६(दान ग्रहण योग्य पात्र - अपात्र का विचार), १६५.३(ब्राह्मणेतर जातियों हेतु बहिर्वेदी में अकृत अन्न दान का निर्देश), २३४.१६(विभिन्न राजर्षियों द्वारा ब्राह्मणों को दिए गए विशिष्ट दानों का कथन), २५१.११(दम का उपनिषत् दान व दान का तप होने का उल्लेख), २९२.३(प्रतिग्रह की अपेक्षा दान की श्रेष्ठता का कथन), अनुशासन २२दा.पृ.५५४५(चार वर्णों द्वारा मन्त्रहीन हव्य - कव्य दान के असुरों, राक्षसों , प्रेतों व भूतों को प्राप्त होने का कथन), २२.१(हव्य - कव्य दान ग्रहण हेतु सुपात्रों व कुपात्रों के लक्षण), ५७(विभिन्न दानों के फलों का वर्णन), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ६३५२(अन्न, तिल, गृह आदि दानों का फल), लक्ष्मीनारायण १.७३.२८(मृतक हेतु तिल, दर्भ लवण व धान्य दान का महत्त्व), १.७४.१ (अन्तकाल व एकादशाह में गौ, उपानह, छत्र, अङ्गुलीयक आदि के दान के महत्त्व का कथन), १.७५.१७(मृतक हेतु एकादशाह में दान योग्य वस्तुओं का कथन), १.७६.३४(नारी हेतु सम्यक् दान कथन : देह का पति को दान, अहंकार पुत्र को, सौन्दर्य जरा को आदि आदि), १.१४६.२५(१६ वृथा दानों/दान के अयोग्य पात्रों के नाम), १.१५१.४०(तीर्थ में गौ, वृष आदि दान के फल का कथन), १.२६५(३१(एकादशी उद्यापन के संदर्भ में दशविध धेनु दान, मेरु दान, अन्य अद्रियों के दान का वर्णन), १.३६१(मृत्यु पश्चात् अन्न, गौ आदि दान फल के उदय का वर्णन : विभिन्न लोकों की प्राप्ति आदि), १.४०४.१(दान ग्रहण के योग्य व अयोग्य पात्रों के नाम), १.४३०.१०(दानक : निर्भयवर्मा - पुत्र, सिंह रूप धारी ऋषि के वध पर हत्या दोष की प्राप्ति, त्रित ऋषि की सेवा से दोष से मुक्ति, यम मार्ग में श्रीहरि के कीर्तन से यम लोक के प्राणियों की मुक्ति आदि), १.४९८.२०(विप्र पत्नियों द्वारा पतियों की अनुमति के बिना दान ग्रहण करने पर विप्रों की व्योमचर गति के रोधन का वृत्तान्त), २.६९.२३ (मास अनुसार दान), २.७७.३० (हस्ति दान का माहात्म्य), २.११२.५३(नदी रूप कृष्ण - पत्नियों को भिन्न - भिन्न वस्तुओं का दान), २.१७०.७९(यज्ञ भूमि में दान का माहात्म्य), २.२४५.५७ (द्वापर युगी जनों के दान - धर्मपर होने का उल्लेख), ३.१८.९ (अन्न, वस्त्र, धन आदि दानों की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता का वर्णन), ३.४५.१२ (दाताओं द्वारा सोम लोक प्राप्ति का उल्लेख), ३.७४.४८(अन्न दान, वारिदान, ज्ञानदान, ब्रह्मदान, मोक्ष दान, आत्मदान आदि आदि से मुक्ति प्राप्त करने वाले भक्तों के उदाहरणों का वर्णन), ३.७९.६२(साधु सेवा की अपेक्षा विभिन्न दानों की गौणता का वर्णन), ३.९०.९३(दान ग्रहण योग्य सत्पात्रों के गुणों का वर्णन), ३.१०३.२(शुक्ल पक्ष की विभिन्न तिथियों में स्वर्ण, गो, भूमि आदि दान के विभिन्न फलों का कथन), ३.१०३.११(विभिन्न नक्षत्रों में स्वर्ण, गो, भूमि आदि दान के विभिन्न फलों का कथन), ३.१०३.२६(दान ग्रहण योग्य पात्रों के गुणों का वर्णन), ३.१०३.५२(दान ग्रहण के दोषों के संदर्भ में राजा से प्रतिग्रह ग्रहण के दोष : राजा वृषादर्भि द्वारा सप्तर्षियों को दान देने का प्रयत्न), ३.१०३.८०(प्रेत की मुक्ति के लिए दान योग्य विभिन्न वस्तुओं के नाम), ३.१०३.९६(छत्र व उपानह दान के महत्त्व के संदर्भ में जमदग्नि ऋषि - रेणुका व सूर्य की कथा), ३.१०९.५१(अन्न, दीप आदि वस्तुओं के दान से प्राप्त विभिन्न लोकों का कथन), ३.११०.८(अन्न, भोजन, अभय, पृथिवी, आजीविका आदि आदि दानों के महत्त्व का वर्णन), ३.१११(विभिन्न दानों के महत्त्व का वर्णन : यमराज द्वारा आस्तिक व नास्तिक दीर्घशील नामक विप्रों को दान धर्म का उपदेश), ३.११२(दान का महत्त्व ; देह दान के महत्त्व के संदर्भ में ब्रह्मसती द्वारा स्वदेह को पति व नारायण को समर्पित करने की कथा), ३.१२५(तुला पुरुष आदि १६ महादानों के नाम ; तुला पुरुष दान विधि), ३.१२६.१(हिरण्यगर्भ दान विधि का वर्णन), ३.१२६.५१(ब्रह्माण्ड दान विधि), ३.१२७.१(कल्पपादप दान विधि), ३.१२७.५८(गो सहस्र महादान विधि), ३.१२८.१(हिरण्य कामधेनु दान विधि), ३.१२८.३६(हिरण्याश्व दान विधि), ३.१२८.७१(हिरण्यरथ दान विधि), ३.१२९.१(हेमहस्ति रथ दान विधि), ३.१२९.३९(पञ्चलाङ्गलक महादान विधि), ३.१२९.७७(हेमधरा महादान की विधि), ३.१३०.१(विश्वसुदर्शन चक्र दान विधि), ३.१३१.१(महाकल्पलता दान विधि), ३.१३१.२६(कल्पप्रिया दान विधि व माहात्म्य), ३.१३१.४७(स्वर्णकान्त महादान विधि व माहात्म्य), ३.१३१.६०(पुण्यदान तथा अन्य दानों का महत्त्व), ३.१३२.१(सप्तसागर दान विधि), ३.१३२.२६(रत्न धेनु दान विधि), ३.१३२.५१(महाभूत कलश दान विधि), ३.१३२.७७(लक्ष्मी महादान विधि व माहात्म्य), कथासरित् १२.५.२१८(दान पारमिता की कथा : मलयप्रभ राजा के पुत्र इन्दुप्रभ द्वारा प्रजा के लिए कल्पवृक्ष बनने का वृत्तान्त ), शौ.अ. ५.२४.३(द्यावापृथिवी दातॄणां अधिपत्नी) ; द्र. बकदान, वसुदान । daana/dana |