पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Tunnavaaya   to Daaruka )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)

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Tunnavaaya - Tulaa ( words like Tumburu, Turvasu, Tulasi, Tulaa/balance etc.)

Tulaa - Triteeyaa (Tushaara, Tushita, Tushti/satisfaction, Trina/straw, Trinabindu, Triteeya/third day etc. )

Triteeyaa - Taila  (Trishaa/thirst, Trishnaa/craving, Teja/brilliance, Taittira, Taila/oil etc.)

Taila - Trayyaaruna ( Tondamaana, Torana, Toshala, Tyaaga, Trayee, Trayodashee, Trayyaaruna etc.)

Trasadashva - Tridhanvaa  ( Trasadasyu, Trikuuta, Trita, Tridhanvaa etc.)

Tridhaamaa - Trivikrama  (Trinetra, Tripura, Trivikrama etc. )

Trivishta - Treeta (Trivishtapa, Trishanku, Trishiraa, Trishtupa etc.)

Tretaa - Tvishimaan (Tretaa, Tryambaka, Tvaritaa, Twashtaa etc.)

Tvishta - Daksha ( Danshtra/teeth, Daksha etc. )

Daksha - Danda (Daksha, Dakshasaavarni, Dakshina/south/right, Dakshinaa/fee,   Dakshinaagni, Dakshinaayana etc. )

Danda - Dattaatreya (Danda/staff, Dandaka, Dandapaani, Dandi, Dattaatreya etc.)

Dattaatreya - Danta ( Dattaatreya, Dadhi/curd, Dadheechi/Dadhichi, Danu, Danta/tooth etc.)

Danta - Damayanti ( Danta / teeth, dantakaashtha, Dantavaktra / Dantavakra, Dama, Damana, Damaghosha, Damanaka , Damayanti etc. )

Damee - Dashami  ( Dambha/boasting, Dayaa/pity, Daridra/poor, Darpana/mirror, Darbha,  Darsha, Darshana, Dashagreeva etc.)

Dasharatha - Daatyaayani (Dashami/tenth day, Dasharatha, Dashaarna, Dashaashvamedha etc. )

Daana - Daana ( Daana)

Daanava - Daaru (Daana, Daama, Daamodara etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Tretaa, Tryambaka, Tvaritaa, Twashtaa etc. are given here.

Comments on Twashtaa

 

Comments on Twishi

त्रेता गणेश २.७३+ (त्रेता युग में मयूरेश्वर गणेश के वर्णन का आरम्भ : सिन्धु असुर का वध आदि), ब्रह्माण्ड १.२.७.५९(त्रेतायुग में यज्ञ की प्रतिष्ठा होने का उल्लेख, अन्य युगों में अन्य गुणों की प्रतिष्ठा), भविष्य ४.१२२.१ (कृत का ब्रह्मयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्ययुग तथा कलियुग का शूद्रयुग रूप में उल्लेख), भागवत ५.१७.१२(भारतवर्ष में सर्वदा त्रेतायुग के समान काल होने का उल्लेख), ९.१४.४३(त्रेता की संप्रवृत्ति पर पुरूरवा के मन में वेद त्रयी के प्राकट्य का कथन), ११.५.२४(चार युगों के मनुष्यों के गुणों के संदर्भ में त्रेता में विष्णु व मनुष्यों के स्वरूप का कथन), ११.१७.१२(त्रेता के आरम्भ होने पर भगवान के ह्रदय में विद्यात्रयी के प्राकट्य का कथन), १२.३.२०(त्रेतायुग में धर्म की स्थिति का कथन), मत्स्य १४२.१७(त्रेता आदि में वर्षों व सन्ध्याओं के परिमाण का कथन), १६५.६(त्रेतायुग के वर्ष परिमाण व धर्म - अधर्म के पादों का कथन), वायु ८.६५/१.८.७५(त्रेता युग में धर्म की स्थिति का वर्णन), ८.१४६/ १.८.१४०(त्रेता में पृथिवी द्वारा ओषधियों को ग्रस लेने पर पृथिवी के दोहन का वर्णन), ५७.३९ (त्रेतायुग में धर्म की स्थिति का वर्णन), स्कन्द ७.१.१३.९ (त्रेता में सूर्य का सविता नाम), ७.१.७४.८ (शाकल्येश्वर तीर्थ का ही त्रेता में सावर्णिकेश्वर नाम), लक्ष्मीनारायण २.२१९.१०७ (श्रीहरि का त्रेताकर्कश राजर्षि आदि के साथ फान्कलाशी पुरी में गमन), २.२२०.६(बालावित्तक राष्ट्र का राजा), ३.११०.११(शिष्यों, सुता, दारा आदि को भोजन प्रदान से त्रेताग्नि के प्रीणन का उल्लेख ) । tretaa

त्रेता- कृतयुग या सत्ययुगके बाद द्वितीय युग । हनुमान जी द्वारा इसके धर्म का वर्णन – त्रेता में यज्ञकर्म का आरम्भ होता है, धर्म के एक पाद का ह्रास हो जाता है और भगवान् विष्णु का वर्ण लाल हो जाता है ( वन० १४९ २३-२६ )। मार्कण्डेयजी द्वारा त्रेता का वर्णन । त्रेतायुग तीन हजार दिव्य वर्षों का है, इसकी संध्या और संध्यांश के भी उतने ही सौ दिव्य वर्ष होते हैं । इस प्रकार यह युग छत्तीस सौ दिव्य वर्ष का होता है। ( वन० १८८ २३ ) ।

 

त्रैपुर मत्स्य ४७.४४(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में सप्तम त्रैपुर सङ्ग्राम में त्र्यम्बक द्वारा त्रिलोकी में दानवों के वध का कथन), वायु ९७.७५/२.३५.७५(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में सातवें त्रैपुर सङ्ग्राम का उल्लेख ) । traipura

 

त्रैलोक्य - अग्नि १३४ (सर्वयन्त्रविमर्दिनी त्रैलोक्यविजया विद्या का वर्णन), नारद १.६६.१११(त्रैलोक्यविद्या : एकरुद्र की शक्ति त्रैलोक्यविद्या का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३२.५६(शिव द्वारा परशुराम को त्रैलोक्यविजय कवच प्रदान करने का उल्लेख), २.३.३३.१(शिव द्वारा परशुराम को प्रदत्त त्रैलोक्यविजय कवच का वर्णन), ३.४.४४.५८(त्रैलोक्यविद्या : ३३ वर्णों की शक्तियों में से एक), मत्स्य १७९.६७(त्रैलोक्यमोहिनी : नृसिंह द्वारा शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं के शमनार्थ सृष्ट ३२ मातृकाओं में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१४०.९३ (त्रैलोक्यभूषण : प्रासाद का एक रूप, ४१ अण्ड से युक्त) कथासरित् १७.५.८० (दैत्यराज त्रैलोक्यमाली का मुक्ताफलध्वज के साथ युद्ध), १७.५.१०९ ( त्रैलोक्यप्रभा : त्रैलोक्यमाली - कन्या, पिता के कल्याण हेतु तप ) । trailokya

 

त्र्यक्षकुल शिव ३.१९.३(अत्रि के तप का स्थान )

 

त्र्यम्बक नारद २.४९.७ (कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग का सत्ययुग में त्र्यम्बक नाम), २.७२.२४ (गौतम के तप से संतुष्ट त्र्यम्बक / शिव द्वारा गौतम को वर प्रदान, वर प्राप्ति रूप में गौतमाश्रम के निकट पर्वत पर त्र्यम्बक का निवास, पर्वत की त्र्यम्बक नाम से प्रसिद्धि), पद्म १.२०.११८ (त्र्यम्बक व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य व विधि), ब्रह्माण्ड १.२.९.६ (पुरोडाश की संज्ञा, कारण), १.२.१३.१४४ (भगवान् के त्र्यम्बक नाम हेतु का कथन), १.२.१३.१४५ (गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती का त्र्यम्बका नाम), ३.४.८.५७ (शिव का नाम), भविष्य १.५७.११(त्र्यम्बक के लिए तिल बलि का उल्लेख), मत्स्य ५.२९(११ रुद्रों में से एक), ४७.५०(सातवें त्रैपुर नामक देवासुर सङ्ग्राम में त्र्यम्बक द्वारा त्रिलोकी के दानवों के वध का उल्लेख), १०१.६७ (त्र्यम्बक व्रत का विधान), १९१.१२०(त्र्यम्बक तोय से पकाए चरु से पितरों की तृप्ति का उल्लेख), वायु ३१.४६ (त्र्यम्बक नाम का निरूपण), ६९.१७३/२.८.१६७(नैर्ऋत् राक्षस गण के त्र्यम्बक अनुचर होने क उल्लेख), विष्णु १.१५.१२२(११ रुद्रों में से एक), शिव २.२.३८.२१(शुक्र द्वारा दधीचि को त्र्यम्बकं यजामहे मन्त्र का उपदेश),  ४.२४.१०+ (त्र्यम्बकेश्वर माहात्म्य के आरम्भ में गौतम द्वारा वरुण से जलराशि की प्राप्ति, अन्य ऋषियों द्वारा जलराशि का उपयोग व गौतम को बहिष्कृत करना, गौतम द्वारा शिव को प्रसन्न करके गङ्गा की प्राप्ति), ४.२६.५४ (गौतम द्वारा स्थापित लिङ्ग के त्र्यम्बक नामक लिङ्ग होने का कथन), स्कन्द १.१.७.३२(ब्रह्मगिरि पर त्र्यम्बक लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ३.३.१२.१९ (त्र्यम्बक से दिन के तृतीय भाग में रक्षा की प्रार्थना), ४.१.१३.३४ (विश्रवा - पुत्र वैश्रवण द्वारा त्र्यम्बक की आराधना से अलकापुरी के आधिपत्य की प्राप्ति), ४.२.९७.७४ (त्र्यम्बक सिद्ध द्वारा विमलेश कुण्ड पर सिद्धि प्राप्ति), ६.१०९.१५ (त्रिसन्ध्या तीर्थ में लिङ्ग), ६.१५३.२८ (पार्वती द्वारा शिव के दोनों नेत्रों का निरोध करने पर तीसरे नेत्र की सृष्टि, त्र्यम्बक नाम प्राप्ति), ७.१.९१ (त्र्यम्बक रुद्र का माहात्म्य, युगान्तरों में नाम, शिखण्डी रुद्र से तादात्म्य ), अन्त्येष्टिदीपिका पृ. २०(त्र्यम्बक का कपर्दी से साम्य?) tryambaka

 References on Tryambaka

 

त्र्यष्टकारु लक्ष्मीनारायण २.७४.१७ (श्री हरि की भक्ति से त्र्यष्टकारु नामक अन्त्यज को स्त्री सहित मुक्ति की प्राप्ति ) ।

 

त्र्युषण मत्स्य ४९.३९(उरुक्षव व विशाला के ३ पुत्रों में से एक, जनमेजय वंश ) ।

 

त्वचा अग्नि ८७.६(त्वचा के कृकल व कूर्म वायु के आधीन होने का उल्लेख), गरुड २.३०.५२/२.४०.५२(मृतक की त्वचा में मृगत्वचा देने का उल्लेख), भागवत २.१०.३१(त्वक्, चर्म आदि ७ धातुओं की भूमि, आप: व तेज से उत्पत्ति का उल्लेख), ३.१२.२३(भृगु की ब्रह्मा की त्वचा से उत्पत्ति का उल्लेख), ३.१२.२३(ब्रह्मा की त्वचा से क्रतु की उत्पत्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.८(त्वचा में विद्युत के न्यास का उल्लेख ), वामन ८७.२५(वनस्पति के ब्राह्मण मूल, क्षत्रिय स्कन्ध, वैश्य शाखा और शूद्र त्वचा होने का कथन), ; द्र. चर्म । tvachaa

 

त्वरिता अग्नि १४७.४ (त्वरिता देवी के मन्त्र का कथन), ३०९ (त्वरिता विद्या पूजा व ध्यान की विधि), ३१० (त्वरिता देवी का स्वरूप व मन्त्र), ३११ (त्वरिता मन्त्र दीक्षा विधि), ३१२ (त्वरिता विद्या से प्राप्त होने वाली सिद्धियों का वर्णन), ३१४.१ (त्वरिता मन्त्र प्रयोग की महिमा), नारद १.८८.१२८ (राधा की नवम कला, स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५८(आनन्द महापीठ में रथ के मध्यम पर्व पर स्थित १५ तिथिनित्या देवियों में से एक), ३.४.२५.९७ (ललिता - सहचरी, पुण्ड्रकेतु का वध), ३.४.३७.३४(नित्यान्तर धिष्ण्य पर स्थित १५ नित्या देवियों में से एक), मत्स्य ५०.३६(त्वरितायु : भौम - पुत्र, अक्रोधन - पिता, कुरु वंश ) । twaritaa/tvaritaa

 

त्वष्टा अग्नि १०७(मनस्यु - पुत्र, विरज - पिता, स्वायम्भुव वंश), देवीभागवत ५.९.२० (त्वष्टा द्वारा देवी को कौमोदकी गदा भेंट), ६.१.२९ (प्रजापति, विश्वरूप त्रिशिरा – पिता, त्रिशिरा के देवविरुद्ध कार्यों का कथन ), ब्रह्म १.२९/३१.१७ (द्वादश आदित्यों में से एक, फाल्गुन मास में तपना, ११०० किरणों से दीप्त होने का कथन), १.३०.४८/३२.८० (संज्ञा - पिता, सूर्य - श्वसुर ; त्वष्टा द्वारा सूर्य - तेज शातन का वृत्तान्त), २.९८.१९/१६८.१९ (त्वष्टा द्वारा अभिष्टुत राजा के हयमेध की असुरों से रक्षा का उद्योग), ब्रह्माण्ड १.२.१४.७०(भौवन - पुत्र, विरज - पिता, नाभि वंश), १.२.२४.३६(कार्तिक मास में त्वष्टा सूर्य के तपने का उल्लेख ; त्वष्टा सूर्य के अष्ट सहस्र रश्मियों द्वारा तपने का उल्लेख), २.३.१.७८ (शुक्र व गौ के ४ पुत्रों में से एक ) २.३.१४.६(त्वष्ट्रा यजमान के सोम का पान करते हुए इन्द्र के सोम के अंश के भूमि पर गिरने पर श्यामाक के उत्पन्न होने का उल्लेख), २.३.५९.१७(अष्टम वसु प्रभास व वरस्त्री से उत्पन्न विश्वकर्मा के रूपों का त्वष्टा होने का कथन), २.३.५९.३३(त्वाष्ट्री संज्ञा व सूर्य का वृत्तान्त, सूर्य के तेज को सहन करने में असमर्थ संज्ञा का पिता त्वष्टा के पास जाना आदि), २.३.५९.६५(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के कर्तन का वृत्तान्त), भविष्य ३.४.९.३३(माघ मास में त्वष्टा नामक सूर्य के कलियुग में जयदेव रूप में अवतरण का वृत्तान्त), भागवत ३.६.१५(विराट् पुरुष में अक्षियां प्रकट होने पर रूपों के ज्ञान हेतु त्वष्टा के प्रवेश का कथन), ४.१५.१७(त्वष्टा द्वारा राजा पृथु को रूपाश्रय रथ प्रदान का उल्लेख), ५.१५.१५ (भौवन व दूषणा - पुत्र, विरोचना - पति, विरज - पिता, प्रियव्रत वंश), ६.६.३९(१२ आदित्यों में से एक, कश्यप व अदिति - पुत्र), ६.६.४४(रचना/चरमा - पति, संनिवेश व विश्वरूप - पिता), ६.१४.२७(अङ्गिरा द्वारा चित्रकेतु को पुत्र हेतु त्वाष्ट्र चरु प्रदान का उल्लेख), ६.१७.३८(त्वष्टा की दक्षिणाग्नि से चित्रकेतु के वृत्र रूप में जन्म का उल्लेख), ८.१०.२९ (देवासुर संग्राम में त्वष्टा के शम्बरासुर के साथ द्वन्द्व युद्ध का उल्लेख), ११.१५.२० (सूर्य का एक नाम), १२.११.४३(इष/आश्विन् मास में त्वष्टा नामक सूर्य के रथ के साथ स्थित गणों के नाम), मत्स्य ६.४(चाक्षुष मन्वन्तर के तुषित नामक देवों का वैवस्वत मन्वन्तर में इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा आदि १२ आदित्यों के रूप में जन्म का उल्लेख), ११.२७(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के कर्तन का वृत्तान्त), १५९.१०(त्वष्टा द्वारा कुमार कार्तिकेय को क्रीडा हेतु कुक्कुट प्रदान करने का उल्लेख), १७१.५६(कश्यप व अदिति के १२ आदित्य पुत्रों में से एक), १७३.१८(तारकामय सङ्ग्राम के प्रसंग में त्वष्टा असुर के अष्टगज वाले घोर यान का उल्लेख), मार्कण्डेय ५.१ (प्रजापति, त्रिशिरा - पिता, इन्द्र द्वारा त्रिशिरा का वध कर देने पर क्रुद्ध त्वष्टा के तेज से वृत्रासुर की उत्पत्ति), वराह २०.६ (त्वष्टा द्वारा स्व - कन्या संज्ञा को मार्तण्ड को प्रदान करना), वामन ५७.६६ (त्वष्टा द्वारा स्कन्द को चक्र तथा अनुचक्र नामक गण भेंट करने का उल्लेख), वायु ३३.५९(भौवन - पुत्र, अरिज - पिता, नाभि वंश), ५२.२०(शिशिर ऋतु में त्वष्टा सूर्य के रथ पर स्थित गणों के नाम), ६५.७७/२.४.७७ (शुक्र व अङ्गी के ४ पुत्रों में से एक- त्वष्टा, वरूत्री, शण्ड, अमर्क), ६५.८५/२.४.८५(त्वष्टा के पुत्रों त्रिशिरा विश्वरूप व विश्वकर्मा यम का उल्लेख), ६६.६६/२.५.६७(१२ आदित्यों में ११वें आदित्य त्वष्टा का उल्लेख, आदित्यो के पूर्व जन्मों का कथन), ८४.१७ /२.२२.१७ (धर्म - पौत्र, प्रभास व वरस्त्री – पुत्र, देवों के शिल्पी, विरोचना - पति, मय – पिता, पुत्री संज्ञा का कथन), विष्णु १.१५.१२१(रुद्रों में एक?, विश्वरूप - पिता) १.१५.१३०(वैवस्वत मन्वन्तर में कश्यप व अदिति से उत्पन्न १२ आदित्यों में से एक), २.१.४०(मनस्यु - पुत्र, विरज - पिता), २.१०.१६(माघ मास में त्वष्टा सूर्य के रथ के साथ स्थित गणों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.३ (१२ खण्डयुगेश्वरों में से एक), २.१३२.१० (२१ आथर्वण शान्तियों में से एक त्वाष्ट्री शान्ति के शुक्ल वर्णा होने का उल्लेख), स्कन्द १.१.१६.४९ (इन्द्र द्वारा त्रिशिरा विश्वरूप की हत्या करने तथा ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाने पर त्वष्टा द्वारा वृत्र को उत्पन्न करने का उद्योग, इन्द्र द्वारा वृत्र वध का उद्योग), ५.२.३५.२ (प्रजापति, पुत्र कुशध्वज का स्वर्ग से निष्कासन करने पर त्वष्टा द्वारा जटा होम से वृत्र की उत्पत्ति), ५.३.१९१.१३ (प्रलयकाल में १२ आदित्यों में से एक त्वष्टा के नैर्ऋत दिशा में तपने का उल्लेख), हरिवंश १.४३.१७ (तारकामय संग्राम में दैत्य सेना का एक महारथी, यान में १८ हय), ३.५५.२५ (देवासुर संग्राम में देवों के विश्वकर्मा त्वष्टा का दैत्यों के विश्वकर्मा मय से युद्ध, त्वष्टा की पराजय), लक्ष्मीनारायण १.४७७.३ (प्रजापति, विश्वकर्मा - पिता), कथासरित् ८.५.९६ (त्वष्टा की महौघ नाम से पृथिवी पर अवतीर्णता, श्रुतशर्मा - सेनानी ) । tvashtaa/twashtaa

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त्वाष्ट्री वायु ८४.९/२.२२.९(कलि - भार्या त्वाष्ट्री हिंसा के अपर नामों व ४ पुत्रों के नाम ) ।

 

त्विषा / त्विषि ब्रह्माण्ड १.२.११.१२(त्विषा : मरीचि व सम्भूति की ४ पुत्रियों में से एक), भागवत ८.१८.२, १०.३.१०, १०.६.५, १०.१८.२७, १०.४६.४५(कर्ण कुण्डल की दीप्ति अर्थ में  त्विषि शब्द का प्राकट्य), वायु २८.९(त्विषा : मरीचि व सम्भूति की ४ पुत्रियों में से एक), ५३.८१(बुध के त्विषि पुत्र होने का उल्लेख), ५३.८५(त्विषि : सूर्य के त्वेष के स्थान व गृह का कथन ) । tvishaa/twishi

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त्विषिमान् ब्रह्माण्ड १.२.२४.८८(त्विषिनामा? : धर्म - पुत्र सोम वसु की संज्ञा), वायु ३१.१० (स्वायम्भुव मन्वन्तर में एक देवगण), ५३.८०(धर्म - पुत्र सोम वसु की संज्ञा), ५३.१०५(चाक्षुष मन्वन्तर में धर्म - पुत्र त्विषिमान् /सोम की कृत्तिका नक्षत्र में उत्पत्ति का उल्लेख ) । tvishimaan