पुराण विषय अनुक्रमणिका

PURAANIC SUBJECT INDEX

(From Tunnavaaya   to Daaruka )

Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)

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Tunnavaaya - Tulaa ( words like Tumburu, Turvasu, Tulasi, Tulaa/balance etc.)

Tulaa - Triteeyaa (Tushaara, Tushita, Tushti/satisfaction, Trina/straw, Trinabindu, Triteeya/third day etc. )

Triteeyaa - Taila  (Trishaa/thirst, Trishnaa/craving, Teja/brilliance, Taittira, Taila/oil etc.)

Taila - Trayyaaruna ( Tondamaana, Torana, Toshala, Tyaaga, Trayee, Trayodashee, Trayyaaruna etc.)

Trasadashva - Tridhanvaa  ( Trasadasyu, Trikuuta, Trita, Tridhanvaa etc.)

Tridhaamaa - Trivikrama  (Trinetra, Tripura, Trivikrama etc. )

Trivishta - Treeta (Trivishtapa, Trishanku, Trishiraa, Trishtupa etc.)

Tretaa - Tvishimaan (Tretaa, Tryambaka, Tvaritaa, Twashtaa etc.)

Tvishta - Daksha ( Danshtra/teeth, Daksha etc. )

Daksha - Danda (Daksha, Dakshasaavarni, Dakshina/south/right, Dakshinaa/fee,   Dakshinaagni, Dakshinaayana etc. )

Danda - Dattaatreya (Danda/staff, Dandaka, Dandapaani, Dandi, Dattaatreya etc.)

Dattaatreya - Danta ( Dattaatreya, Dadhi/curd, Dadheechi/Dadhichi, Danu, Danta/tooth etc.)

Danta - Damayanti ( Danta / teeth, dantakaashtha, Dantavaktra / Dantavakra, Dama, Damana, Damaghosha, Damanaka , Damayanti etc. )

Damee - Dashami  ( Dambha/boasting, Dayaa/pity, Daridra/poor, Darpana/mirror, Darbha,  Darsha, Darshana, Dashagreeva etc.)

Dasharatha - Daatyaayani (Dashami/tenth day, Dasharatha, Dashaarna, Dashaashvamedha etc. )

Daana - Daana ( Daana)

Daanava - Daaru (Daana, Daama, Daamodara etc.)

 

 

Puraanic contexts of words like Danshtra/teeth, Daksha etc. are given here.

Remarks on Daksha

Esoteric aspect of story of Daksha

त्विष्ट गरुड १.८७.५५ (दिवस्पति इन्द्र - शत्रु , मयूर रूपी हरि द्वारा वध ) ।

 

थर्कूट लक्ष्मीनारायण २.१२२.८(कर्कर्षि द्वारा थर्कूटस्थ राजा को हरि नाम ग्रहण का उपदेश, देवायतन ऋषि का थर्कूटस्थ राजा के पास गमन, मन्त्रादि प्रदान), २.१२३.२१(थर्कूटस्थ राजा के राज्य में द्वितीय यज्ञ के आयोजन हेतु विचार), २.१२६(थर्कूटस्थ द्वारा द्विकला सरोवर तट पर द्वितीय विष्णु यज्ञ करना), २.१२७.२१(बालकृष्ण द्वारा थर्कूटस्थ राजा को राजनीति और सद्धर्म का उपदेश ) । tharkoota/tharkuuta

 

थुक्लस ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८ (भण्डासुर के १५ सेनानायकों में से एक ) ।

 

थुरानन्द लक्ष्मीनारायण २.१२७.७६(श्रीहरि द्वारा थर्कूट राजा को थुरानन्दमय होने का उपदेश), ३.७.४०(प्राणायाम नामक वत्सर में दृढध्रुव - पुत्र थुरानन्द द्वारा ब्रह्मा से अवध्यत्व वर की प्राप्ति, केवल असुरों द्वारा थुरानन्द का स्वागत करना, लक्ष्मी का थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्ना के रूप में जन्म लेना), ३.८१(स्वयंवर में थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्ना द्वारा विष्णु का वरण, युद्ध में विष्णु द्वारा थुरानन्द का पाशों से बन्धन व मोक्षण ) । thuraananda

द लक्ष्मीनारायण ३.१७४.६८(ब्रह्माण्ड में सर्पादि विभिन्न योनियों के लिए द अक्षर के अर्थ का वर्णन ) ।

 

दंश भविष्य १.१८४.४८(शुन: दंशन व कृमि दंशन के प्रायश्चित्त का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(मधु हरण से दंश योनि प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९१ (नरक में दंश कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) । dansha

 

दंष्ट्र ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२(दंष्ट्रा : क्रोधवशा की १२ पुत्रियों में से एक, पुलह - पत्नी), २.३.७.२३३(दंष्ट्री : प्रधान वानर नायकों में से एक), २.३.७.४१२ (दंष्ट्रा : सिंह आदि की माता), भविष्य १.३३.२५(सर्प के ४ विषवह दंष्ट्रों के देवता), मत्स्य १७९.२३(दंष्टाला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), वराह ११.१००(आग्निदंष्ट्र : गौरमुख मुनि व राजा दुर्जय के युद्ध के प्रसंग में गौरमुख - सेनानी सुमना का अग्निदत्त/अग्निदंष्ट्र से युद्ध), वायु ६.१६ (वराह दंष्ट्र का यूप से साम्य), ६९.२०५/२.८.१९९(क्रोधवशा की १२ पुत्रियों में से एक, पुलह - पत्नी), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.१० (विराट् पुरुष के दंष्ट्रों में वत्सर की स्थिति का उल्लेख), २.८.२२(चतुर्दंष्ट्र पुरुष के लक्षण), स्कन्द १.१.१७.१३९(वृत्र व इन्द्र के सङ्ग्राम में वरुण के महादंष्ट्र से युद्ध का उल्लेख), १.२.६२.२७(एकदंष्ट्रिक : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक), ५.१.५२.४३ (यूप - दंष्ट्र यज्ञ वराह का उल्लेख), ५.१.५२.४९ (वराह रूप धारी विष्णु द्वारा दंष्ट्र से पृथिवी का उद्धार), ७.१.३५३.२०(यज्ञ वराह के संदर्भ में यूप के दंष्ट्र होने का उल्लेख), महाभारत भीष्म १४.१०(भीष्म के दंष्ट्रों की शरों से उपमा, चाप मुख ), द्र. उग्रदंष्ट्री, मकरदंष्ट्र, यमदंष्ट्र, वज्रदंष्ट्र danshtra

 

दक्ष अग्नि १८.२७ (प्रचेता एवं मारिषा से दक्ष की उत्पत्ति, दक्ष द्वारा मन से चर, अचर, द्विपद, चतुष्पद तथा स्त्रियों की सृष्टि), कूर्म १.८.१४ (दक्ष व प्रसूति से २४ कन्याओं की उत्पत्ति, नाम, विवाह व सन्तति का वर्णन), १.१४.६३ (दक्ष को शिव से शाप प्राप्ति, स्वायम्भुव दक्ष का प्रचेतस दक्ष बनना), १.१५ (दक्ष यज्ञ विध्वंस की कथा), १.१६ (दक्ष कन्याओं व उनकी प्रजा का वर्णन), गणेश १.९.३३ (यज्ञ ध्वंस से दुःखी दक्ष द्वारा मुद्गल से गणेश पुराण श्रवण का उल्लेख), १.२०.२ (वल्लभ व कमला - पुत्र, जन्म से रोगयुक्त), १.२६.४ (गज द्वारा कण्ठ में माला डालने पर दक्ष के राजा बनने का वृत्तान्त), गरुड १.८७.३८ (नवें दक्षसावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), १.८७.४९ (१२वें दक्ष - पुत्र मनु के १२ पुत्रों आदि के नाम), ३.७.१४(दक्ष द्वारा हरि स्तुति) गर्ग १.५.२४ (दक्ष के अक्रूर रूप में अवतरण का उल्लेख), देवीभागवत ७.१.११ (ब्रह्मा के अङ्गुष्ठ से दक्ष की तथा वामङ्गुष्ठ से दक्ष - पत्नी वीरिणी की उत्पत्ति, नारद द्वारा दक्ष - पुत्रों की प्रजोत्पादन से निवृत्ति करने पर दक्ष - शाप से नारद की पुन: दक्ष व वीरिणी से उत्पति, पुन: दक्ष से ६० कन्याओं की उत्पति का वर्णन), ७.३०.३० (दक्ष द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त दिव्य माला के तिरस्कार से सती व शंकर से द्वेष की उत्पत्ति), ८.३.१२ (स्वायम्भुव मनु द्वारा स्वकन्या प्रसूति दक्ष को प्रदान, दक्ष व प्रसूति से देव, तिर्यक् व नरादि लोक की उत्पत्ति), नारद २.६६.५(गङ्गाद्वार माहात्म्य के अन्तर्गत दक्ष द्वारा यज्ञ का आयोजन, सती का गमन, पति - अपमान से सती द्वारा देह - त्याग, शिव द्वारा उत्पन्न वीरभद्र द्वारा यज्ञ का नाश, ब्रह्मा की प्रार्थना पर शिव द्वारा पुन: विकृत यज्ञ को प्रकृतिस्थ करने की कथा), पद्म १.३.१८२ (दक्ष - कन्याओं और उनकी प्रजा का वर्णन), १.५ (दक्ष यज्ञ विध्वंस की कथा), १.४०.७१ (ब्रह्मा से उत्पन्न विश्वेदेवों /प्रजापतियों में से एक), २.२७.७ (ब्रह्मा द्वारा दक्ष की प्रजापतियों के गणेश्वर पद पर  नियुक्ति), ब्रह्म १.१.१०३ (दक्ष कन्याओं व उनकी प्रजा का वर्णन), १.३२ (दक्ष यज्ञ में सती का निधन, दक्ष व शिव का शाप - प्रतिशाप), १.३७ (वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस, शिव से दक्ष को वर प्राप्ति), १.३८(दक्ष कृत शिव स्तुति, स्तुति फल का कथन), २.२८.३(मधु दैत्य द्वारा जातवेद तथा दक्ष के वध का उल्लेख), २.३९ (दक्ष यज्ञ में शिव  निन्दा श्रवण से दाक्षायणी द्वारा देह विसर्जन, वीरभद्र द्वारा विष्णु के चक्र का निगरण, दक्ष द्वारा शिव की स्तुति), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.७ (दक्ष द्वारा चन्द्रमा को शाप, श्रीहीन चन्द्रमा को शिव मस्तक पर स्थान की प्राप्ति, दक्ष द्वारा शिव से चन्द्रमा की याचना), ब्रह्माण्ड १.१.५.७०(ब्रह्मा के ९ मानस पुत्रों में से एक), १.१.५.७४ (दक्ष का ब्रह्मा के प्राण से प्राकट्य), १.२.१३.४०(स्वायम्भुव दक्ष  का त्र्यम्बक के शाप से चाक्षुष मनु के पुत्र रूप में जन्म तथा उसके कारण का वृत्तान्त), १.२.१३.६८ (चाक्षुष मन्वन्तर में शिव द्वारा दक्ष को शाप - प्रतिशाप, वैवस्वत मन्वन्तर में मानुष जन्म ग्रहण करना), २.३.२ (दक्ष द्वारा असिक्नी से प्रजा की सृष्टि), २.३.५.३८(बाष्कल असुर के ४ पुत्रों में से एक), ३.४.४.६५(दक्ष द्वारा तृणबिन्दु से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर शक्ति को सुनाने का उल्लेख), भविष्य ३.४.५.१२ (ब्रह्मा के चरणों से शूद्रराज दक्ष की उत्पत्ति, दक्ष से शूद्रों की उत्पत्ति), ४.२५.७ (विष्णु के वक्ष:स्थल में स्थित सौभाग्य में से अर्ध सौभाग्य का ब्रह्मा - पुत्र दक्ष प्रजापति द्वारा पान, रूप लावण्य, बल व तेज में अभिवृद्धि, पीत सौभाग्य से दक्ष से सती नामक कन्या की उत्पत्ति), भागवत ३.१२.२३(ब्रह्मा के अङ्गुष्ठ से दक्ष के जन्म का उल्लेख), ४.१.४७ (दक्ष का प्रसूति से विवाह, कन्याएं व उनकी प्रजा), ४.२ (दक्ष द्वारा शिव को यज्ञ भाग प्राप्त न होने का शाप, नन्दी द्वारा दक्ष को तत्त्व ज्ञान विमुखता का शाप), ४.३(सती का पिता के यज्ञोत्सव में जाने का आग्रह, शिव द्वारा समझाना व स्वयं द्वारा दक्ष की उपेक्षा का कारण बताना), ४.४(सती द्वारा पिता दक्ष से शिव की महिमा का कथन व देह त्याग), ४.५ (वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस व दक्ष वध), ४.७(दक्ष यज्ञ की पूर्ति), ४.३०.४९ (प्रचेता व मारिषा - पुत्र, चाक्षुष मन्वन्तर में प्रजा की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा दक्ष को प्रजापतियों का नायक बना कर सृष्टि रक्षार्थ नियुक्त करना), ६.४.१८ (प्रचेतागण - पुत्र, अघमर्षण  तीर्थ में तप, हंस गुह्य स्तोत्र का कथन, असिक्नी से विवाह), ६.६ (दक्ष की कन्याएं व उनकी प्रजा), ९.२३.३(उशीनर के ४ पुत्रों में से एक, अनु वंश), मत्स्य ४.५०+ (प्रचेता व मारिषा - पुत्र, सृष्टि का वर्णन), ५.३ (दक्ष के पूर्व व पश्चात् सृष्टि की उत्पत्ति), ५.४ (दक्ष द्वारा पाञ्चजनी के गर्भ से सहस्र पुत्रों की उत्पत्ति), ५.१२ (दक्ष द्वारा वीरिणी से साठ कन्याओं की उत्पत्ति), १३.१२ (दक्ष यज्ञ में शिव के अनिमन्त्रित रहने पर सती का क्रोध, सती शाप से प्रचेता गण के पुत्र रूप में क्षत्रिय वर्ण में उत्पत्ति), १३.२२ (दक्ष की ६० कन्याओं के सती का अंश होने का उल्लेख), ५०.३७( देवातिथि - पुत्र, भीमसेन - पिता, कुरु वंश), १७१ (दक्ष की बारह कन्याओं का वृत्तान्त), १९५.१३(भृगु व पौलोमी के १२ भार्गव पुत्रों में से एक), १९६.२(सुरूपा व अङ्गिरा के १० पुत्रों में से एक), २०३.१३(धर्म व विश्वा के १० विश्वेदेव पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय  ५०.५/४७.५  (ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष द्वारा प्रसूति पत्नी से श्रद्धा, लक्ष्मी प्रभृति २४ कन्याओं की उत्पत्ति), १०४.४/१०१.४ (दक्ष की अदिति, दिति प्रभृति १३ कन्याएं कश्यप को प्रदान, उनसे देवता, दैत्य, उरगादि अनेक पुत्रों की उत्पत्ति), लिङ्ग १.६३.२(दक्ष द्वारा मैथुनी प्रजा की सृष्टि, प्रजा में वैराग्य उत्पत्ति से प्रजा का नष्ट होना , पुन: दक्ष द्वारा वैरिण्या से ६० कन्याएं उत्पन्न करना, कन्याओं के विवाह तथा वंश का वृत्तान्त), १.७०.३७७ (वैराज एवं शतरूपा - पुत्री प्रसूति का दक्ष से विवाह, प्राण का रूप), १.१००.२ (दक्ष द्वारा शिव की अवज्ञा से क्रुद्ध सती का सदेह भस्म होना, वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), २.२७.१३५ (दक्ष व्यूह का वर्णन), वराह २१.१३ (दक्ष यज्ञ के ऋत्विजों के नाम, रुद्र व विष्णु में संघर्ष, शान्ति, दक्ष द्वारा गौरी रूप दाक्षायणी रुद्र को प्रदान), वामन २.७ (दक्ष यज्ञ के ऋत्विज, शिव व सती का तिरस्कार), ४ (कपाली होने से दक्ष द्वारा शिव व सती का तिरस्कार, सती द्वारा प्राण त्याग, वीरभद्र आदि शिव गणों द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), वायु १०.१२(स्वायम्भुव मनु द्वारा स्वपुत्री प्रसूति को दक्ष को प्रदान करने का उल्लेख), २५.८२ (ब्रह्मा द्वारा सृष्ट सात मानस पुत्रों में से एक, रुद्रों के साथ मिलकर दक्ष का सृष्टि हेतु उद्धत होना), ३०.६१ (दक्ष का शिव शाप से चाक्षुष मन्वन्तर में प्रचेतागण - पुत्र बनना), ३०.६९ (गृहपति अग्नि का नाम), ३०.१३९ (दक्ष यज्ञ विध्वंस), ३०.१८१ (दक्ष द्वारा शिव - स्तुति, प्रसन्न शिव से पाशुपत - व्रत के फल की प्राप्ति), ४४.१९(दक्षा : केतुमाल देश की नदियों में से एक), ५२.२३(माघ व फाल्गुन में सूर्य के साथ रहने वाले राक्षसों में से एक, अपर नाम यज्ञोपेत), ६३.३५/२.२.३५(सोम व प्रचेताओं के अंश से मारिषा - पुत्र के रूप में दक्ष के जन्म व दक्ष द्वारा प्रजा की सृष्टि का वर्णन), ६५.१०५/२.४.१०५(सुरूपा व अङ्गिरा के १० पुत्रों में से एक), ६५.१३०(दक्ष द्वारा असिक्नी से हर्यश्व, शबलाश्व व ६० कन्याओं की सृष्टि), ६६.३१/२.५.३१(धर्म व विश्वा के १० विश्वेदेव पुत्रों में से एक), ६७.७८/२.६.७८(जम्भ के ३ पुत्रों में से एक), १००.४२/२.३८.४२(दक्ष द्वारा स्व कन्या सुव्रता से दक्ष सावर्ण मनु को उत्पन्न करने का वृत्तान्त), विष्णु १.७.२२ (दक्ष व प्रसूति से २४ कन्याओं की उत्पत्ति, विवाह व उनकी प्रजा), १.१५.७४ (प्रचेतागण व मारिषा - पुत्र, मानसी व मैथुनी सृष्टि का उद्योग), १.१५.१०२ (दक्ष व वैरुणी से ६० कन्याओं की उत्पत्ति, सन्तति का वर्णन), ४.१.६(ब्रह्मा के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष प्रजापति की, दक्ष से अदिति व अदिति से विवस्वान् की उत्पत्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७ (प्रजापति के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष तथा वाम अङ्गुष्ठ से दक्ष भार्या की उत्पत्ति, दक्ष सन्तति, दक्ष यज्ञ में सती के अनादर से क्रुद्ध शिव द्वारा मनुष्य योनि प्राप्ति का शाप), १.११० (मारिषा से दक्ष का जन्म, वीरिणी से उत्पन्न पुत्रों का नारद उपदेश से विनाश, दक्ष प्रजा का वर्णन), १.२४८.३१(सुपर्णों में से एक), १.२४९.५ (ब्रह्मा द्वारा प्राचेतस दक्ष की प्रजापतियों के अध्यक्ष पद पर  नियुक्ति), शिव २.१.१६ (दक्ष - कन्याएं तथा उनका वंश), २.२.४.४(दक्ष के स्वेद बिन्दुओं से उत्पन्न कन्या का रति नाम, कामदेव को प्रदान), २.२.१३ (दक्ष का असिक्नी से विवाह, मैथुनी प्रजा की सृष्टि, नारद द्वारा प्रजा में वैराग्य उत्पन्न करने के कारण नारद को दक्ष का शाप), २.२.१४ (दक्ष की ६० कन्याएं तथा उनकी प्रजा), २.२.२६+ (दक्ष के शिव से विरोध का कारण, यज्ञ की कथा), ५.४.२६(ब्रह्मा - पुत्र, शिव माया से मोहित होने का उल्लेख), ५.३१.४ (दक्ष द्वारा वीरिणी से उत्पन्न हर्यश्वों तथा सुबलाश्वों की सृष्टि निर्माण से निवृत्ति, पुन: दक्ष द्वारा वीरिणी से ६० कन्याओं की उत्पत्ति, कन्याओं की सन्तति आदि), ५.३१.१४ (दक्ष द्वारा नारद को अस्थिरता, कलहकारी होने का शाप), ७.१.१८ (शिवा का सती नाम से दक्ष के घर में जन्म, दक्ष के रुद्र से द्वेष का कारण), ७.१.१९ (दक्ष के शिव द्वेष के कारण सती द्वारा देह त्याग) ७.१.२०(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), स्कन्द १.१.१ (दक्ष द्वारा नन्दी को शाप, नन्दी द्वारा प्रतिशाप), १.१.२+ (दक्ष यज्ञ के विध्वंस का वृत्तान्त), १.१.५ (दक्ष के शिर का यज्ञाग्नि में होम, छाग शिर का संयोजन), २.७.८.१५ (दक्ष यज्ञ की कथा), २.७.१९.३९(दक्ष प्रजापति की गुह्य स्थान में स्थिति, गुह्य देश से दक्ष के निष्क्रमण पर भी देह पात न होने का कथन, शरीरस्थ सर्व देवों की अपेक्षा प्राण देव के प्राधान्य का प्रसंग), ४.१.१५ (दक्ष प्रजापति की ६० कन्याओं में रोहिणी प्रभृति २७ कन्याओं द्वारा पति प्राप्ति हेतु शिवलिङ्ग स्थापना, सोम रूप पति की प्राप्ति), ४.२.६७.२१८ (दाक्षायणीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८७ (दक्ष यज्ञ में वीरभद्र का उत्पात, दक्ष को मेष शीर्ष का संयोजन), ५.१.६७.३(दक्ष द्वारा प्रजा प्राप्ति हेतु कुटुम्बेश्वर तीर्थ में तप), ५.२.९ (दक्ष - कृत अपमान से क्रुद्ध शिव की आज्ञा से वीरभद्र आदि शैवगणों का विष्णु आदि देवों से युद्ध), ५.२.२६.५ (रोहिणी में ही विशेष प्रीति होने से क्रुद्ध दक्ष द्वारा सोम को अन्तर्हित होने का शाप), ५.२.८२(कायावरोहण तीर्थ के संदर्भ में दक्ष की ब्रह्मा से उत्पत्ति का कथन ; दक्ष यज्ञ विध्वंस का वर्णन), ५.३.८५ (दक्ष द्वारा सोम को २७ कन्याएं प्रदान करना, सोम की रोहिणी में ही प्रीति होने से दक्ष द्वारा क्षय प्राप्ति रूप शाप), ५.३.१९२.६ (ब्रह्मा के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष की उत्पत्ति), ७.१.१९ (ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में प्राण से दक्ष की उत्पत्ति), ७.१.२१ (दक्ष - कन्याओं से सृष्टि), ७.१.१९९ (दक्ष - कन्याओं का वृत्तान्त, सती द्वारा देह त्याग, दक्ष यज्ञ का वृत्तान्त), ७.२.९ (दक्ष द्वारा सती से शिव की निन्दा करना, शिव शाप से स्वायम्भुव ब्राह्मण दक्ष से क्षत्रिय कुल दक्ष बनना), ७.२.९ (दक्ष यज्ञ में दधीचि द्वारा शिव की अनुपस्थिति पर आपत्ति, शिव गणों द्वारा यज्ञ का विध्वंस), हरिवंश १.२.४६ (दक्ष का दस प्रचेताओं व मारिषा से जन्म), १.३ (दक्ष - कन्याएं व उनकी प्रजा), ३.१४.२८ (ब्रह्मा के १३ पुत्रों में से एक, दक्ष द्वारा प्रजा की उत्पत्ति, दक्ष की कन्याएं), ३.२२ (दक्ष - कन्याओं व प्रजा का वर्णन), ३.३२.२४ (दक्ष - यज्ञ का मृग रूप में पलायन, शिव द्वारा पीछा, मृगशिरा नाम धारण), ३.३६.२० (ब्रह्मा के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष तथा वाम अङ्गुष्ठ से दक्ष - भार्या की उत्पत्ति, दक्ष कन्याएं व प्रजा), महाभारत वन ३१३.६९(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दाक्ष्य के एकपदधर्म होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४३.१८(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को प्रदत्त रोहिणी - प्रमुखा २७ कन्याओं के नाम), १.४४.४(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को स्वपत्नियों में समभाव की शिक्षा), १.४५.१(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को दिए गए शाप का हरण), १.१६५.१६ (अङ्गिरस व सुरूपा - पुत्र, १० आङ्गिरस गण में से एक), १.१६९(ब्रह्मा द्वारा तारकासुर वध हेतु स्कन्द को उत्पन्न करने के लिए निशा देवी को दक्ष व असिक्नी की पुत्री सती बनने का निर्देश ; कन्या सती द्वारा दक्ष को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराना, दक्ष द्वारा स्तुति), १.१७२.६७(दक्ष द्वारा सती के शिव से साथ विवाह उत्सव का वर्णन), १.१७४.३(दक्ष का जामाता शम्भु के घर तीन बार गमन, तीनों बार जामाता द्वारा श्वसुर की अवमानना), १.१७४.१५(शिव से सम्मान पाने के इच्छुक दक्ष को शिव द्वारा प्राचेतस दक्ष रूप में क्षत्रिय योनि में जन्म लेने का शाप), १.१७४.३६(शिव द्वारा कैलास पर भवन निर्माण उत्सव में प्रजापति दक्ष की अवमानना), १.१७४.४८(नैमिषारण्य में दीर्घ सत्र में रुद्र द्वारा दक्ष की अवमानना पर दक्ष का कोप तथा रुद्र को वेदबाह्य होने का शाप, नन्दी द्वारा दक्ष आदि को शाप), १.१७४.६४(कनखल में आयोजित दक्ष यज्ञ में दक्ष द्वारा शिव को आमन्त्रित न करना, स्वपत्नी असिक्नी से रुद्र की निन्दा), १.१७४.१२०(दक्ष यज्ञ में शिव की अनुपस्थिति पर दधीचि ऋषि द्वारा आपत्ति, रुद्र को आमन्त्रित करने का आग्रह, दक्ष द्वारा दधीचि का यज्ञ से निष्कासन, दधीचि द्वारा दक्ष को शाप, दधीचि के साथ बहिर्गमन करने वाले अन्य ऋषियों के नाम), १.१७५.११(सती के स्व - पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए हठ का वर्णन), १.१७५.७१(दक्ष से शिव की निन्दा सुनकर सती द्वारा ब्रह्मरन्ध्र की अग्नि में स्व देह को भस्म करने का वर्णन), १.१७६.२४(दक्ष द्वारा यज्ञ नाश के सम्बन्ध में आकाशवाणी का श्रवण), १.१७६.२२(सती के नाश के पश्चात् दक्ष यज्ञ की पूर्ति हेतु यज्ञ का पुनरारम्भ), १.१७६.५६(नारद से सती का नाश सुनकर रुद्र द्वारा जटाओं से वीरभद्र तथा अन्य शक्तियों को उत्पन्न करना, वीरभद्र आदि का दक्ष यज्ञ में अवतरण, दक्ष यज्ञ में अपशकुन), १.१७७.१(वीरभद्र व अन्य गणों द्वारा दक्ष यज्ञ व दक्ष के विनाश का वर्णन), १.१७७.१०९(शिव द्वारा दक्ष यज्ञ में मृत जनों का पुन: संजीवन, मेष मुख द्वारा दक्ष का संजीवन, शिव द्वारा दक्ष को भक्ति का वरदान), १.३०३.१३९(ब्रह्मा के वक्ष से उत्पन्न मूर्ति देवी का दक्ष की पुत्री बनकर धर्म को पति रूप में प्राप्त करना), १.३१४.३(सृष्टि आरम्भ में ब्रह्मा द्वारा दक्षादि ऋषियों की मानसी सृष्टि करने का कथन), १.३१४.१७(दक्षादि के युवती सन्ध्या को देखकर मोहित होने का कथन), १.५४३.६१ (हरद्वार में दक्ष यज्ञ में रुद्र हेतु चतुर्दशी तिथि अर्पित करने का व्रत ; दक्ष द्वारा विभिन्न देवताओं को अर्पित १०० कन्याओं के नाम), ३.१३५(ललिता देवी द्वारा दक्ष हेतु अपने शतद्वय नामरूपों का कथन ) , ३.१८३.२७(दक्षगर्व राजा द्वारा दण्ड स्वरूप वनेचर भक्त सागर की पाद अस्थियों का भञ्जन ; राजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में गजरक्षक सागर का हस्ती आदि), कथासरित् १.१.३४(पार्वती का पूर्वजन्म में दक्ष - कन्या होना, पिता द्वारा पति के अपमान से शरीर त्याग कर हिमालय - सुता के रूप में उत्पत्ति ) ; द्र. सुदक्ष । daksha

दक्ष वेदों में दक्ष से अदिति उत्पन्न होती है और अदिति से दक्ष उत्पन्न होता है । अदिति अखण्ड बुद्धि है । दिति खण्डित बुद्धि है । अदिति रूपी आत्मा की शक्ति जीवात्मा में आए तो जीवात्मा में दक्षता आएगी और दूसरी ओर, जीवात्मा पूर्णत: दक्ष हो तभी परमात्मा की अदिति शक्ति उसे प्राप्त होगी । अत: दक्ष अदिति का पुत्र भी है और पिता भी । - फतहसिंह

Remarks on Daksha

Esoteric aspect of story of Daksha