पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Tunnavaaya to Daaruka ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)
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Puraanic contexts of words like Tondamaana, Torana, Toshala, Tyaaga, Trayee, Trayodashee, Trayyaaruna etc. are given here. तैलङ्ग गर्ग ७.१०.२० (तैलङ्ग देश के अधिपति विशालाक्ष द्वारा प्रद्युम्न को भेंट )
तोटक मत्स्य १८८.६६(बाण द्वारा तोटक छन्द में महादेव की स्तुति ) ।
तोण्डमान स्कन्द २.१.९ (सुवीर व नन्दिनी - पुत्र, पद्मा - पति, पञ्चरङ्गी शुक का पीछा, शुक मुनि से उपदेश प्राप्ति), २.१.१० (ब्राह्मण द्वारा तोण्डमान के पास धरोहर रखी पत्नी की मृत्यु व संञ्जीवन, कुम्भकार से भेंट, मोक्ष), लक्ष्मीनारायण १.४०१.६९ (रङ्गदास का जन्मान्तर में तोण्डमान नामक नृप बनना, नृप द्वारा श्रीवाराह भूमिका में प्राकार व पत्तन का निर्माण ) । tondamaana
तोतला नारद १.८८.१४१(तोतला देवी के ध्यान का कथन, त्वरिता देवी का अपर नाम? ) ।
तोतादरी भविष्य ३.२.३२.१ (तोतादरी निवासी बोपदेव द्विज के प्रति श्रीहरि द्वारा भागवत माहात्म्य का कथन ) ।
तोमर अग्नि २५२.१० (तोमर अस्त्र के कर्म), महाभारत आदि १२३.३१दाक्षिणात्य पृष्ठ ३६९(युधिष्ठिर द्वारा शुक से तोमर अस्त्र विद्या की प्राप्ति का उल्लेख )
तोय/तोया ब्रह्माण्ड १.२.१६.३३(विन्ध्य से प्रसूत नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२८(विन्ध्य से प्रसूत नदियों में से एक), वायु ४५.१०३(विन्ध्य से प्रसूत नदियों में से एक), ४९.४२(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), स्कन्द ५.३.५०.२४ (तोय दान से यमलोक के अदर्शन का उल्लेख ) । toya
तोरण विष्णुधर्मोत्तर ३.९८ (प्रासाद प्रतिष्ठा के संदर्भ में तोरणों के ४ दिशाओं में कृतादि ४ युग होने का कथन), ३.११६ (तोरण उद्धार की विधि का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१४९.४(मण्डप की विभिन्न दिशाओं में तोरण पूजन विधि का वर्णन), ४.१०१.९५ (कृष्ण - पत्नी दोला के युगलापत्य में पुत्र का नाम ) torana
तोशल गर्ग ५.१२.१ (उतथ्य - पुत्र, पिता के शाप से मल्ल बनना), भागवत १०.३६.२१(कंस द्वारा तोशल आदि मल्लों को कृष्ण के हनन का निर्देश), १०.४४.२७(कृष्ण द्वारा शल व तोशल के वध का कथन), वायु ४५.१३३(विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), विष्णु ५.२०.७९(कृष्ण द्वारा वाम मुष्टि प्रहार से तोशल मल्ल का हनन करने का उल्लेख), हरिवंश २.३०.५० (मल्ल, कृष्ण द्वारा वध ) । toshala
तोष/तोषा भविष्य ४.७५ (सूर्य - कन्या, नदी, चन्द्रभागा से सङ्गम), भागवत ४.१.७(दक्षिणा व यज्ञपुरुष से उत्पन्न तोष, प्रतोष आदि १२ पुत्रों के स्वायम्भुव मन्वन्तर में तुषित देव गण बनने का कथन ) ।
त्याग पद्म ५.९९.१८(त्याग के कङ्कण रूप होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३.४५(ज्ञान से त्याग व त्याग से बुद्धि के विरजा होने का कथन), मत्स्य १९५.१३(भृगु व पुलोमा से उत्पन्न १२ भृगु देवों में से एक), वायु ५९.५३(कुशलों व अकुशलों के प्रगण के त्याग होने का उल्लेख), महाभारत उद्योग ४३.२६(६ प्रकार के त्यागों का कथन), शान्ति २५१.१२(तप का उपनिषत् त्याग व त्याग का सुख होने का उल्लेख), ३१९.१७(द्रव्य, भोग व सुख त्याग का निरूपण), योगवासिष्ठ ६.१.९०.५ (सर्वत्याग की चिन्तामणि से उपमा), ६.१.९२ (चूडाला द्वारा शिखिध्वज को सर्वत्याग के लिए प्रबोधन), ६.१.११५.३३(महात्यागी के लक्षण), लक्ष्मीनारायण २.१२४.८३(त्यागिनियों के लिए यज्ञ में श्रौषट् व्याहृति का प्रयोग), २.२४६.७९ (त्यागी पुरुष को हरि की प्राप्ति, अनन्त सुख की उपलब्धि), २.२५०.६ (हरि में सर्वस्व अर्पण रूप त्याग की श्रेष्ठता ), कथासरित् १२.१७.६३ (वणिक् सुता के पति, प्रेमी व चोर में से त्यागी होने का प्रश्न), महाभारत शान्ति १७६(धन आदि त्याग की महिमा के विषय में शम्पाक ब्राह्मण का भीष्म को उपदेश ) । tyaaga
त्रपा ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९४(शङ्कर की ११ कलाओं में से एक )
त्रपु गरुड २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक की कौपीन में त्रपु देने का उल्लेख), वा.रामायण १.३७.२० (गङ्गा द्वारा धारित रुद्र - तेज रूप गर्भ के मल से त्रपु / रांगा धातु की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.३५९.१०९ (नरक में तप्त त्रपु प्रवाहिका यक्ष नदी का उल्लेख ) । trapu
त्रयी ब्रह्माण्ड १.२.१९.१२२(पुष्कर द्वीप में त्रयी विद्या आदि का अस्तित्व न होने का उल्लेख), १.२.३२.४०(शिष्टों व मनुओं द्वारा त्रयी वार्त्ता आदि के आचरण का उल्लेख), भागवत ३.१२.४४(ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न विद्याओं में से एक, द्र. टीका), ९.१४.४८(त्रेतायुग के आरम्भ में पुरूरवा के लिए वेद, नारायण व अग्नि के त्रयी होने का कथन), वायु ४९.११८(महावीत तथा धातकीखण्ड में त्रयी विद्या के होने तथा पुष्कर द्वीप में न होने का उल्लेख), विष्णु २.४.८३(पुष्कर द्वीप की महिमा के संदर्भ में पुष्कर द्वीप के त्रयी वार्ता आदि से रहित होने का कथन), ५.१०.२७(त्रयी वार्त्ता के अन्तर्गत ३ प्रकार की आजीविकाओं का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(गोत्रय की अशुभता का उल्लेख ) । trayee
त्रयीसानु विष्णु ४.१६.३(भानु - पुत्र, करन्दम - पिता, दुर्वसु वंश ) ।
त्रयोदशी अग्नि १९१ (त्रयोदशी तिथि में कामदेव की मासानुसार भिन्न - भिन्न नामों से पूजा), कूर्म २.४१.४४ / २.३९.४३ (अहल्या तीर्थ में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को अहल्या पूजा का माहात्म्य), गरुड १.११७ (अनङ्ग त्रयोदशी व्रत का वर्णन), देवीभागवत ९.४४ (आश्विन् कृष्ण त्रयोदशी में स्वधा की पूजा), नारद १.१२२ (त्रयोदशी तिथि के व्रतों का वर्णन), पद्म ३.१८.९१ (अहल्या तीर्थ के माहात्म्य के अन्तर्गत चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में अहल्या पूजा का कथन), ४.२३.१२ (विष्णु पञ्चक व्रत के संदर्भ में कार्तिक शुक्ल द्वादशी को गोमूत्र, त्रयोदशी को क्षीर, चतुर्दशी को दधि भक्षण का निर्देश), ब्रह्मवैवर्त्त २.४१.२१(शरत्कृष्ण त्रयोदशी को स्वधा का पूजन करके श्राद्ध करने का निर्देश), ३.४.१७ (पुण्यक नामक व्रतारम्भ के लिए माघ शुक्ल त्रयोदशी का शुभ मुहूर्त के रूप में उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.१५(षोडशपत्राब्ज की निवासिनी शक्तियों में से एक), वराह ३२ (त्रयोदशी तिथि के माहात्म्य के प्रसंग में धर्म की उत्पत्ति का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८३+ (शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में करणीय काम व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), स्कन्द २.२.४५.४ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में करणीय दमनक भञ्जन व्रत की विधि का वर्णन), २.३.६.४६ (प्रतिमास शुक्ल त्रयोदशी में द्रवधारा तीर्थ में स्नानादि का माहात्म्य), ५.३.२६.१२४ (त्रयोदशी में स्त्री द्वारा पादाभ्यङ्ग तथा शिरोभ्यङ्ग प्रदान से प्रत्येक योनि में पति से वियोग न होने का उल्लेख), ५.३.६८.२ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में धनद तीर्थ में धनद का पूजन, तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ५.३.१०२.१० (मन्मथेश्वर तीर्थ में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में गोदान करने का उल्लेख), ५.३.२०१.३ (देवतीर्थ में भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी में स्नान, दान, जप, होम आदि का महत्त्व), ६.७७ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी :शिव - पार्वती विवाह), ६.२०६ (माघ शुक्ल त्रयोदशी : इन्द्र द्वारा दिति के तप स्थान में लिङ्ग की स्थापना), ७.१.९६ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी : काम रुद्र पूजा), ७.१.१८४ (माघ त्रयोदशी : मङ्कीश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.१८ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी : यम तीर्थ में श्राद्ध), ७.३.३८ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी : शिव व गङ्गा का मिलन), हरिवंश २.८०.३७ (उत्तम नितम्ब की प्राप्ति हेतु त्रयोदशी तिथि में एक बार अयाचित भोजन रूप व्रत का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.३३.२५ (धन त्रयोदशी तिथि को लक्ष्मी से धन पुत्र की उत्पत्ति), १.२७८ (चैत्रादि १२ मासों की त्रयोदशी तिथि में करणीय व्रतों का निरूपण), १.३०५ (ब्रह्मपुत्रियों जया, ललिता, पारवती व प्रभा को पुरुषोत्तम मास की त्रयोदशी व्रत के प्रभाव से कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति), १.३२०.९३ (कृष्ण - पुत्री सुदुघा का जन्मान्तर में याज्ञसेनी होकर पुरुषोत्तम मास में त्रयोदशी व्रत के प्रभाव से पुरुषोत्तम का दर्शन प्राप्त करना), २.१९४.९२ (त्रयोदशी को श्रीहरि के रायगामल राष्ट्र में गमन आदि का वर्णन), २.२१४ (श्रीहरि का त्रयोदशी में रायनवार्क नृप के राष्ट्र में गमन), ३.६४.१४ (त्रयोदशी में कामदेव की पूजा का उल्लेख), ३.१०३.८ (त्रयोदशी तिथि में स्वर्ण, गो आदि के दान से लोकराजा होने का उल्लेख), ४.५९.३४ (द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी में भांडों को श्रीहरि का दर्शन, पश्चात् मुक्ति की प्राप्ति ) । trayodashee/ trayodashi
त्रय्यारुण देवीभागवत १.३.३० (१५वें द्वापर में व्यास), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२० (त्रैय्यारुणि : १५वें द्वापर में व्यास), २.३.६३.७६ (त्रिधन्वा - पुत्र, सत्वव्रत - पिता, इक्ष्वाकु वंश), भागवत ९.२१.१९(त्रय्यारुणि : दुरितक्षय के ३ पुत्रों में से एक, तीनों के ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का उल्लेख), १२.७.५(६ पौराणिकों में से एक), मत्स्य १२.३७(त्रिधन्वा - पुत्र, सत्यव्रत - पिता, इक्ष्वाकु वंश), लिङ्ग १.२४.६७ (१५वें द्वापर में व्यास), वायु ९९.१६३/२.३७.१५९(उभक्षय व विशाला के ३ पुत्रों में से एक, भरत वंश), १०३.६२/२.४१.६२(त्रय्यारुण द्वारा वर्षी से वायु पुराण श्रवण कर धनञ्जय को सुनाने का उल्लेख), विष्णु ३.३.१५(१५वें द्वापर में व्यास), ४.३.२० (त्रय्यारुणि : त्रिधन्वा - पुत्र, सत्यव्रत / त्रिशङ्कु - पिता, पुरुकुत्स वंश), ४.१९.२५(दुरुक्षय के ३ पुत्रों में से एक), शिव ३.५.१२ (त्र्यारुणि : पन्द्रहवें द्वापर के व्यास), ५.३७.४७ (पुरुकुत्स - पुत्र, सत्यव्रत - पिता), हरिवंश १.१२.११( त्रिधन्वा - पुत्र, सत्यव्रत - पिता, धुन्धुमार वंश), लक्ष्मीनारायण ३.९४.८३ (सत्यव्रत - पिता, धर्म विरुद्ध आचरण करने पर त्रय्यारुण द्वारा पुत्र सत्यव्रत का त्याग ) । trayyaaruna |