पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (From Tunnavaaya to Daaruka ) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar)
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Puraanic contexts of words like Trinetra, Tripura, Trivikrama etc. are given here. त्रिधामा देवीभागवत १.३.२८ (दशम द्वापर में व्यास), ब्रह्माण्ड १.२.३५.११९(१०वें द्वापर में व्यास का नाम), ३.४.४.६१(त्रिधामा द्वारा सारस्वत से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर शरद्वान को सुनाने का उल्लेख), वायु २३.१४७/१.२३.१३६(त्रिधामा नामक दशम व्यास के काल में भृगु अवतार व उनके पुत्रों के नाम), १०३.६१/२.४१.६१(त्रिधामा द्वारा सारस्वत से वायु पुराण सुनकर शरद्वान को सुनाने का उल्लेख), विष्णु ३.३.१३(दशम द्वापर में त्रिधामा के व्यास होने का उल्लेख), शिव ३.५.१ (दशम द्वापर में व्यास ), द्र. धाम । tridhaamaa
त्रिनया लक्ष्मीनारायण २.१९६ (श्रीहरि का तन्तु नृप की त्रिनया नामक नगरी में आगमन, पूजन, उपदेशादि ), द्र. नय ।
त्रिनाभ ब्रह्माण्ड २.३.७.१३५(खशा से उत्पन्न कईं राक्षसों में से एक ) ।
त्रिनेत्र देवीभागवत ५.१८.३१ (महिषासुर - सेनानी, देवी द्वारा वध), वामन ९०.१९ (माहिष्मती में विष्णु का त्रिनयन तथा हुताशन नाम से वास), स्कन्द ७.१.२७५ (त्रिनेत्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), योगवासिष्ठ ६.२.८०.२८(रुद्र के त्रिनेत्रों के त्रिगुण, त्रिकाल, प्रणव के ३ वर्ण आदि का प्रतीक होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५४८.२७ (त्रिनेत्र तीर्थ का वर्णन : शिव के वरदान स्वरूप ऋषियों को तृतीय दिव्य नेत्र की प्राप्ति, मत्स्यों को भी त्रिनेत्रता की प्राप्ति ) । trinetra
त्रिपथ मत्स्य १२६.५२(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
त्रिपथगा पद्म ३.४३.५१(गङ्गा के त्रिपथा नाम का कारण), ब्रह्माण्ड १.२.१८.२७(सोम पाद से प्रसूत त्रिपथगा देवी के सप्तधा विभाजित होने तथा नक्षत्रमण्डल के अनुदिश दृश्यमान भास्वर पथ के त्रिपथगा देवी होने का कथन), २.३.१३.११८(विष्णु पाद से च्युत त्रिपथगा गङ्गा के आकाश में सूर्य सदृश तोरण की भांति दिखाई देने आदि का कथन), २.३.२५.११(त्रिपथगा फेन भासि : शिव की संज्ञाओं में से एक), मत्स्य १०६.५१(त्रिपथगा गङ्गा के त्रिपथगा नाम का कारण), १२१.२८(सोम पाद से प्रसूत त्रिपथगा के सर्वप्रथम बिन्दुसर में प्रतिष्ठित होने का कथन ; रात्रि में दृश्यमान आकाश गङ्गा के ही त्रिपथगा होने का उल्लेख), वायु ७७.१११/२.१५.१११(सोम पाद से प्रसूत त्रिपथगा के आकाश में सूर्य के तोरण के सदृश दिखाई पडने का उल्लेख ) । tripathagaa
त्रिपाद लिङ्ग १.२४.४८ (१०वें द्वापर में व्यास ) ।
त्रिपुण्ड्र देवीभागवत ११.९+ (त्रिपुण्ड्र धारण का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.३८.२२(भाल पर धारणीय ४ पुण्ड्रों में से एक), शिव १.२४ (भस्म धारण के अन्तर्गत त्रिपुण्ड्र की महिमा, त्रिपुण्ड्र धारण की विधि, देवता तथा स्थान आदि का प्रतिपादन), स्कन्द २.५.३ (त्रिविध पुण्ड्र धारण का माहात्म्य), ३.३.१६ (सनत्कुमार - रुद्र संवाद के अन्तर्गत त्रिपुण्ड्र धारण की विधि), लक्ष्मीनारायण २.७१.१०५ (त्रिपुण्ड्रक में अधोरेखा, मध्यरेखा तथा ऊर्ध्वरेखा के ब्रह्मा, विष्णु, शिवात्मक होने का कथन ) । tripundra
त्रिपुर गणेश १.३८.४३ (गृत्समद - पुत्र द्वारा तप करके गणेश से त्रिपुर नाम की प्राप्ति), १.३९.२७ (त्रिपुर का इन्द्र से युद्ध), देवीभागवत ९.४७.७ (शिव द्वारा मङ्गलचण्डी की सहायता से त्रिपुर दैत्य का वध), पद्म १.७४ (त्रिपुर - पुत्र त्रैपुर का गणेश द्वारा वध), ३.१४.८+ (शिव द्वारा बाणासुर के त्रिपुर दहन का प्रसंग, ज्वालेश्वर तीर्थ की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२७(तीसरे तल में त्रिपुर के पुर का उल्लेख), ३.४.४३.१५ (त्रिपुराम्बिका को त्रिपुरसुन्दरी, त्रिपुरवासिनी, त्रिपुरश्री, त्रिपुरमालिनी, त्रिपुरसिद्ध, त्रिपुराम्ब प्रभृति नामों से पुष्पाञ्जलि प्रदान), भविष्य ३.४.१२.४२ (मय के पुत्र मायी द्वारा पालित त्रिपुर का शिव द्वारा दाह), भागवत ७.१०.५४ (मय दानव द्वारा स्वर्ण, रजत व लौह से तीन पुरों का निर्माण, शिव द्वारा त्रिपुर दाह की कथा), मत्स्य २२.४३(पितरों के श्राद्ध हेतु विशिष्ट तीर्थों में से एक), १२९+ (मय द्वारा त्रिपुर के निर्माण का वर्णन), १३३+ (शिव द्वारा त्रिपुर ध्वंस की कथा), १८७.७ (नारद द्वारा बाणासुर के वास स्थान त्रिपुर के ध्वंस का उद्योग), १८८ (बाणासुर के त्रिपुर का शिव द्वारा दहन), २५९.११(त्रिपुर दाह के समय शिव का स्वरूप - षोडशबाहु), लिङ्ग १.७१ (मय द्वारा स्वर्ण, रजत एवं लौहमय पुरों का निर्माण, दैत्यों द्वारा देवों का पराभव, त्रिपुर विनाश हेतु विष्णुमाया द्वारा दैत्यों के धर्म का विनाश), १.७२ (त्रिपुर दाह हेतु शिव रथ का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१९५ (त्रिपुर वध से पूर्व शिव की रक्षा के लिए ब्रह्मा द्वारा पठित विष्णु पञ्जर स्तोत्र का वर्णन), १.२२५.११ (शिव द्वारा त्रिपुर दाह का उल्लेख), शिव २.५.१+ (त्रिपुर निर्माण, शिव से युद्ध , त्रिपुर दाह का वर्णन), २.५.९.३४ (त्रिपुर वधार्थ शिव रथ का अनुसरण करने वाले शिव गणों के नाम), स्कन्द २.४.३५.३४ (त्रिपुर दैत्य द्वारा वर प्राप्ति, शिव द्वारा वध), ३.३.१२.२३ (त्रिपुरारि शिव से दुर्गों में रक्षा की प्रार्थना), ४.२.७२.५५ (त्रिपुरतापिनी देवी द्वारा प्रत्यक् दिशा की रक्षा), ५.१.४३.२६ (त्रिपुर दैत्य द्वारा देवों को त्रास, त्रिपुर के वध हेतु उपाय), ५.३.२६.२७ (नारद द्वारा बाणासुर के त्रिपुर में बाणासुर की स्त्रियों के माध्यम से क्षोभ उत्पन्न करना), ७.१.२७२ (विद्युन्माली, तारक व कपोल द्वारा स्थापित त्रिपुर - त्रय लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश ३.१३३ (त्रिपुर की शोभा तथा शिव द्वारा त्रिपुर के दग्ध होने का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.५३८.२३(शिव द्वारा त्रिपुर विनाशार्थ स्वनेत्र के अश्रु से भौम/मङ्गल को उत्पन्न करना ) । tripura त्रिपुरभैरवी नारद १.८७.४४ (दुर्गा - अवतार, मन्त्र विधान का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.९१(ललिता देवी के रथ की ६ सारथियों में से एक ) ।
त्रिपुरसुन्दरी देवीभागवत ७.३८.१५ (त्रिपुरसुन्दरी देवी की कामरूप में स्थिति), पद्म ५.७४.१८ (त्रिपुरसुन्दरी देवी :गोपी - कृष्ण स्वरूप दर्शन के लिए अर्जुन द्वारा त्रिपुरसुन्दरी देवी के दर्शन, उपासनादि का वर्णन), ३.४.१८.१४(ललिता देवी के २५ नामों में से एक), ३.४.४०.१(कामाक्षी देवी की त्रिपुरसुन्दरी संज्ञा), भविष्य २.२.२.३१ (व्याघ्र के त्रिपुरसुन्दरी का रूप होने तथा प्रतिदिन दर्शन से ग्रहदोष की अनुत्पत्ति का उल्लेख ) । tripurasundari/ tripurasundaree
त्रिपुरा अग्नि ३१३.७ (त्रिपुरा भैरवी पूजा विधि व मन्त्र का वर्णन), गरुड १.१९८ (त्रिपुरा मन्त्र का कथन), देवीभागवत १२.६.६७ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.८६.३ (महालक्ष्मी- अवतार, मन्त्र विधान का कथन ) । tripuraa
त्रिपुष्कर स्कन्द ५.३.१९५.४(अन्तरिक्ष में त्रिपुष्कर के परम तीर्थ होने का उल्लेख ) ।
त्रिप्लक्ष ब्रह्माण्ड २.३.१३.६९(अक्षय श्राद्ध हेतु उपयुक्त तीर्थों में से एक ) ।
त्रिबन्धन भागवत ९.७.४(अरुण - पुत्र, सत्यव्रत/त्रिशङ्कु - पिता ) ।
त्रिभागा मत्स्य ११४.३१(महेन्द्र पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ) ।
त्रिभुवन स्कन्द ४.२.८३.७० (त्रिभुवन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.५३ (३६ तिलक, २८ तलभाग तथा ६५ अण्डकों से युक्त प्रासाद का एक प्रकार), कथासरित् ९.६.२१२ (त्रिभुवनपुर निवासी राजा त्रिभुवन को खड्ग प्राप्ति के साथ ही दिव्य प्रभाव प्राप्ति का वृत्तान्त), १७.५.१०९ (त्रिभुवनप्रभा : त्रैलोक्यमाली - कन्या, पति के कल्याण हेतु तप ) । tribhuvana
त्रिमधु विष्णु ३.१५.२(श्राद्ध में आमन्त्रण योग्य ब्राह्मण हेतु जानने योग्य सूक्तों में से एक ) ।
त्रिमना वायु ५२.५३(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
त्रिमात्रा वायु २०.१ (प्रणव की वैद्युतादि ३ मात्राओं का कथन ) ।
त्रिलोकसुन्दरी भविष्य ३.२.७.३ (चम्पकेश व सुलोचना - पुत्री, स्वयंवर में वर के वरण की कथा), स्कन्द ४.२.७०.६० (त्रिलोकसुन्दरी गौरी का संक्षिप्त माहात्म्य ) । त्रिलोकी अन्नमय कोश, प्राणमय कोश और मनोमय कोशों को मिला कर मानुषी त्रिलोकी कही जाती है । ब्रह्माण्ड के सदृश ही, अन्नमय कोश पृथिवी का तथा मनोमय कोश आकाश का प्रतीक है जबकि प्राणमय कोश अन्तरिक्ष का । आनन्दमय कोश, विज्ञानमय कोश और मनोमय कोश मिलकर दैवी त्रिलोकी कहे जाते हैं। जब मन ऊर्ध्वमुखी होकर विज्ञानमय कोश से जुड जाता है तो दैवी त्रिलोकी का रास्ता खुल जाता है । तब इसका नाम हो जाता है पराशक्ति । तब अद्भुत चमत्कार होते हैं। मानुषी और दैवी त्रिलोकी मिलकर एकजुट हो जाते हैं। - फतहसिंह
त्रिलोचन नारद १.११६.६१ (त्रिलोचन जयन्ती : माघ शुक्ल सप्तमी में करणीय अचला व्रत का अपर नाम), भविष्य ३.४.१५.६५ (धरदत्त वैश्य - पुत्र, कुबेर का अंश, रामभक्ति से राम का त्रिलोचन के गृह व ह्रदय में निवास), स्कन्द ४.२.७५.२६ (त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.७६.२ (त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : पारावत की कथा), ५.२.४५ (त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कलरवी कपोती व सुमेधा कपोत के जन्मान्तरों की कथा), ५.३.८५.२८ (शम्बर -- पुत्र, कण्व - पिता, सोमनाथ तीर्थ माहात्म्य का प्रसंग), ५.३.११७ (त्रिलोचन तीर्थ का माहात्म्य ) । trilochana
त्रिवक्र स्कन्द ३.१.११ (राक्षस, सुशीला - पति ) ।
त्रिवर्ग भागवत ७.६.२६(स्वात्मार्पण में सहायक होने पर ही धर्म, अर्थ, काम से युक्त त्रिवर्ग आदि के सार्थक होने का कथन), ७.१४.१०(गृहमेधी द्वारा त्रिवर्ग हेतु अति कष्ट उठाने का निषेध), ८.१६.११(त्रिवर्ग के साधन हेतु गृहमेधी का गृह ही परम क्षेत्र होने का उल्लेख ) । trivarga
त्रिवर्चा ब्रह्माण्ड १.२.३५.११९(११वें द्वापर के वेदव्यास ) ।
त्रिवर्त लक्ष्मीनारायण २.१०४.२५ (हिमालय पर्वत का एक प्रदेश, त्रिदेवजा प्रजा का स्थान ) ।
त्रिविक्रम अग्नि ३०५.६ (यमुना तीर्थ में विष्णु का नाम), गरुड ३.२२.८२(अन्तरिक्ष में त्रिविक्रम की स्थिति का उल्लेख), ३.२९.४०(शौचकाल में त्रिविक्रम के स्मरण का निर्देश), नारद १.६६.१८८(त्रिविक्रम की शक्ति क्रिया का उल्लेख), पद्म १.३०.६ (त्रिविक्रम के तपोलोक में वास का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३.११८ (विष्णु का एक नाम, नाम हेतु का कथन), भविष्य ३.२.२.२० (त्रिविक्रम द्वारा सञ्जीवनी मन्त्र से मधुमती को जीवित करना), भागवत ६.८.१३ (नारायण कवच के अन्तर्गत त्रिविक्रम विष्णु से आकाश में रक्षा की प्रार्थना), वराह १.२६ (त्रिविक्रम से उर की रक्षा की प्रार्थना), वामन ७८.९(बलि व धुन्धु असुरों के संदर्भ में २ वामन त्रिविक्रमों का उल्लेख), ७८.८१(वामन त्रिविक्रम द्वारा धुन्धु असुर के पराभव का वृत्तान्त), ९०.३ (कालिन्दी में विष्णु का त्रिविक्रम नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.१२ (त्रिविक्रम से समस्त पाशों को गिराने की प्रार्थना), ३.११९.३ (यात्राकाल में त्रिविक्रम की पूजा का उल्लेख), ३.१२०.१०(२७ नक्षत्रों में पूजनीय देवताओं में से एक), ३.१२१.३(शालिग्राम क्षेत्र में त्रिविक्रम की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.२.३०.८० (त्रिविक्रम से ऊर्ध्व दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ४.२.६१.२२७ (त्रिविक्रम की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१४९.१० (ज्येष्ठ मास में त्रिविक्रम देव की पूजा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०(त्रिविक्रम की पत्नी पद्माक्षा का उल्लेख), ४.११०.४३(नागविक्रम राजा द्वारा साधना के अन्त में त्रिविक्रम नाम से वैष्णव दीक्षा लेना), कथासरित् १२.८.२२ (भिक्षु क्षान्तिशील के आग्रह पर राजा त्रिविक्रमसेन का श्मशान में गमन तथा वेताल सहित शव का कन्धे पर स्थापन), १२.३२.१ (राजा त्रिविक्रमसेन का वेताल व शव सहित क्षान्तिशील के समीप आगमन, क्षान्तिशील के शिर भेदन का वर्णन ) । trivikrama |